राजकुमार भट्ट, रायपुर। पंजाब में इन दिनों आफत की बाढ़ आई है, कईयों के मवेशी बहे, कईयों के घर डुबने से जीवनभर की जमा-पूंजी चली गई, वहीं कईयों के बाढ़ के पानी में जीवन के सपने डूब गए. ऐसे ही टूटे हुए सपनों के साथ वापस घर लौटने वालों में से मुंगेली जिले के रोहराखुर्द निवासी अरविंद जांगड़े भी हैं.

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छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से वापस घर लौट रहे अरविंद जांगड़े कहते हैं कि छत्तीसगढ़ की सीमा में ट्रेन के प्रवेश करते ही दिल को सुकून मिला. ऐसा महसूस करने वाले वे अकेले ही नहीं थे, ट्रेन में उनकी तरह कई लोग, कई परिवार छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के साथ-साथ पंजाब-दिल्ली की ओर से आने वाली ट्रेनों में इन दिनों नजर आ जाएंगे. बाकी के पास तो बोरियों में बंधे हुए घर का सामान है, लेकिन अरविंद के पास तो वह भी नहीं. केवल बस एक-दो जोड़ी कपड़े रखे बैग के साथ घर लौट रहे हैं.

पेशे से ड्राइवरी करने वाले अरविंद बताते हैं कि कभी उनके पास खुद की गाड़ी हुआ करती थी, जिसे लेकर वे कभी-कभी हिमाचल, जम्मू तक चले जाया करते थे, लेकिन गाड़ी के खराब होने के साथ बिगड़ी घर की माली हालत ने नौकरी ढूंढने के लिए मजबूर कर दिया. बिलासपुर आने-जाने के दौरान एक शख्स ने उन्हें पंजाब के ट्रैक्टर फैक्ट्री में ड्राइवर की आवश्यकता बताई. घर-परिवार की अनुमति लेकर पंजाब के लिए निकल पड़े.

पंजाब में ट्रैक्टर फैक्ट्री में वे काम भी करने लगे. तीन टाइम अच्छा खाना मिल रहा था, रहने की भी चिंता नहीं रही. पांच दिन काम करने के बाद लगा कि अब यहां लंबे समय तक काम किया जा सकता है, तो ठेकेदार से पैसे लेकर राशन-पानी भी ले आए. लेकिन जिस दिन राशन-पानी लाए, उसी दिन से मौसम बदलने लगा. बाढ़ के हालात देख शाम ढलते तक वे उनके जैसे 20-25 लोग जान बचाने के लिए मकान की छत पर चढ़ने को मजबूर हो गए.

पांच दिन टोस्ट-बिस्कुट से चलाया काम

पांच दिन-रात छत पर ही काटे, हैलीकॉप्टर से गिराए जाने वाले बिस्कुट-टोस्ट खाकर काम चलाया. इसके बाद उन्हें हैलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया. सब सामान छोड़कर सुरक्षित जगह पहुंचने के बाद उन्हें लगा कि अब जान बच गई है. यहां एक दिन रहने के बाद सरकार ने पता नहीं किसी हिसाब से 520 रुपए थमाए और कहा कि आप अब घर चले जाओ. उन्होंने भी सलाह मानी और जो एक-दो जोड़ी कपड़े बचे थे, उन्हें लेकर जालंधर पहुंचे और छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस पकड़कर घर की ओर निकल पड़े.

लोगों ने दिखाई भलमनसाहत

अरविंद बताते हैं कि ट्रेन में सफर के दौरान लोगों की भलमनसाहत देखने को मिली. पंजाब से बैठे एक सज्जन उनकी स्थिति को देखते हुए खाने-पीने की चीजें देते रहे. वैसे ही भोपाल से नागपुर के लिए चढ़ा एक परिवार भी बीच-बीच में खाने-पीने की चीजें देते रहा. ऐसा व्यवहार पंजाब में भी बाढ़ आपदा के दौरान देखने को मिला. कई लोगों ने तो अपने खजाने प्रभावित लोगों के लिए खोल दिए थे.

अब घर में रहकर कमाएंगे-खाएंगे

पंजाब की त्रासदी झेलकर वापस घर लौट रहे अरविंद अब दोबारा पंजाब या कहीं बाहर कमाने-खाने के लिए जाने से कान पकड़ते हैं. वे कहते हैं कि घर में बीवी है, दो बच्चे हैं, एक पांच तो दूसरा तीन साल का. घर पर ही रहकर जैसे-जैसे बीवी-बच्चों का पेट पाल लूंगा, लेकिन बाहर नहीं जाउंगा.

लेकिन मनीराम ने नहीं मानी हार

अरविंद जांगड़े की तरह पंजाब की त्रासदी झेलकर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से लौटने वाले में जांजगीर-चांपा जिले के रसेड़ा गांव का रहवासी मनीराम पटेल भी था. मनीराम ने बताया कि वह पंजाब के कपूरथला शहर में सेंटरिंग का काम करता था. रोज का 600 रुपए मिल जाता था. महीने भर ही हुए थे पंजाब गए कि बारिश-बाढ़ की वजह से लौटना पड़ा है. लेकिन उसने अरविंद की तरह हार नहीं मानी है, उसका कहना है कि हालात ठीक होते ही मैं फिर पंजाब जाउंगा.

नहीं कोई सुध लेने वाला

पंजाब की त्रासदी झेलने वाले अरविंद और मनीराम ही नहीं है, बल्कि सैकड़ों-हजारोंं परिवार हैं जो हर साल बिलासपुर संभाग के विभिन्न जिलों से पंजाब में कमाने-खाने जाते हैं. बारिश-बाढ़ की वजह से ऐसे सैकड़ों परिवार अपना सबकुछ गंवाकर रोज पंजाब से छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. न जनप्रतिनिधियों की कोई रुचि है, और न ही प्रशासन की. लोगों भी इसे अपनी नियती मानकर चल रहे हैं.