रायपुर. छत्तीसगढ़ बीजेपी की कमान सांसद अरुण साव को सौंप दी गई. विष्णुदेव साय को हटाकर साव को चुने जाने का आलाकमान का फैसला अचानक लिया गया फैसला नहीं है. संगठन में नेतृत्व बदले जाने की चर्चा अरसे से चल रही थी. बीजेपी का एक प्रभावशाली गुट इस उधेड़बुन में जुटा था कि संगठन में व्यापक पैमाने पर बदलाव कर दिया जाए. अरुण साव को दी गई जिम्मेदारी महज एक शुरुआत है. चर्चा है कि अभी कई और चेहरे बदलाव की जद में आ सकते हैं. संगठन के जानकारों का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे विष्णुदेव साय को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे की सबसे बड़ी वजह आदिवासी वर्ग को साधना था. साय सरल, सहज छवि के नेता हैं. उनकी राजनीति में आक्रामकता की कोई जगह नहीं थी. भूपेश सरकार के खिलाफ आक्रामक लड़ाई के वह सेनापति नहीं बन सकते थे. जाहिर था कि नेतृत्व में बदलाव करना ही संगठन के पास एक बड़ा विकल्प था.
अरुण साव के अलावा आलाकमान ने कई दूसरे नामों पर भी चर्चा की थी. बताते हैं कि बस्तर से आदिवासी वर्ग के प्रतिनिधि के रुप में पूर्व मंत्री केदार कश्यप और महेश गागड़ा के नामों पर रायशुमारी हुई थी, वहीं सरगुजा से पूर्व सांसद रामविचार नेताम दौड़ में शामिल थे. मगर तमाम समीकरण साव के पक्ष में रहे. अरुण साव छात्र राजनीति से निकले नेता हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद होते हुए युवा मोर्चा में सक्रिय रहे. रमन सरकार के दौरान वह डिप्टी एडवोकेट जनरल भी रह चुके हैं. साल 2019 जब बीजेपी ने सीटिंग सांसदों की टिकट काटी थी, तब अरुण साव को चुनाव लड़ने का मौका मिला था. मोदी लहर में उन्होंने बड़े अंतर से चुनाव जीता था.
सूत्र बताते हैं कि साव की नियुक्ति मिशन 2023 की चुनावी रणनीति का एक अहम हिस्सा है. बीजेपी को यह मालूम है कि 2023 के चुनाव में ओबीसी और आदिवासी वर्ग एक बड़ा फैक्टर बनेगा. ओबीसी वर्ग में भी वोट बंटे हुए हैं. माना जाता है कि साहू समाज का वोट बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक है, जबकि कुर्मी समाज को लेकर राज्य का सियासी समीकरण बदल गया है. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कुर्मी होने की वजह से यह वोट बैंक पूरी तरह से बीजेपी से खिसक गया है. ऐसे में बीजेपी अब साहू वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी सांसद अरुण साव साहू समाज से आते हैं. समाजिक दखल भी अच्छा है. साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी ने एक तरह से सियासी संदेश दिया है. खबर यह भी है कि साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे आरएसएस की बड़ी भूमिका रही है. साव का बैकग्राउंड आरएसएस का है. उनके पिता अभयराम साव जनसंघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता और संघ के स्वयंसेवक थे.
क्या कार्यकारी अध्यक्ष का फार्मूला होगा लागू?
प्रदेश अध्यक्ष की कमान ओबीसी वर्ग से आने वाले अरुण साव को दिए जाने के बाद अब इस बात को लेकर हलचल तेज हो गई है कि बीजेपी संगठन में आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व कैसे बढ़ाया जाएगा? संगठन सूत्र इस बात की तस्दीक करते हैं कि राज्य बीजेपी में कार्यकारी अध्यक्ष के फार्मूले पर भी विचार किया जा सकता है. लल्लूराम डॉट कॉम ने अगस्त 2021 को प्रकाशित अपनी खबर में इस फार्मूले का जिक्र किया था. कहा जा रहा है कि कार्यकारी अध्यक्ष का फार्मूला यदि लागू किया जाता है, तब ऐसी स्थिति में बस्तर या सरगुजा से आदिवासी चेहरे को जिम्मेदारी दी जा सकती है.
हालांकि बीजेपी में कार्यकारी अध्यक्ष का कोई फार्मूला अब तक सामने नहीं आया है. दूसरे फार्मूले को लेकर चर्चा यह है कि तीन महामंत्रियों में से दो महामंत्री इस वर्ग से शामिल किए जा सकते हैं. बीजेपी में महामंत्री का ओहदा बड़ा माना जाता है. ऐसे में संतुलन बनाने के नजरिए से यह फार्मूला भी बीजेपी के पास है. सबसे दिलचस्प चर्चा नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को लेकर हो रही है. सुनते हैं कि पर्दे के पीछे चल रही रायशुमारी में नेता प्रतिपक्ष बदलने की भी सुगबुगाहट है, फिलहाल संगठन स्तर पर किसी तरह की जानकारी साझा नहीं की गई है. कौशिक ओबीसी वर्ग से आते हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी इसी वर्ग से हैं. कौशिक को जब नेता प्रतिपक्ष बनाया गया, तब पार्टी ने भी यही समीकरण बिठाया था कि ओबीसी चेहरे के जवाब में ओबीसी वर्ग से ही नेता प्रतिपक्ष बनाया जाए. धरमलाल कौशिक का पलड़ा भारी रहा और उनकी ताजपोशी कर दी गई थी.
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