सुप्रीम कोर्ट ने आज पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 (Article 370) को लेकर अहम फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए इसे बरक़रार रखने की बात कही, इसके अलावा यह स्पष्ट किया कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ नेताओं की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है. जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने एक सूर में इस फैसले को गलत बताते हुए नाराजगी जाहिर की है.
उमर अब्दुल्ला ने जताई नाराजगी
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की व्यवहार्यता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से “निराश” हैं, हालांकि, वह हतोत्साहित नहीं हैं. उन्होंने एक्स (पूर्व ट्वीटर) पर लिखा, “निराश हूं लेकिन हतोत्साहित नहीं. संघर्ष जारी रहेगा. यहां तक पहुंचने में बीजेपी को दशकों लग गए. हम लंबी लड़ाई के लिए भी तैयार हैं.”
गुलाम नबी आजाद ने फैसले को बताया दुर्भाग्यपूर्ण
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP) के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को ‘‘दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘हमें इसे स्वीकार करना होगा.’’ उन्होंने कहा कि क्षेत्र के लोग शीर्ष अदालत द्वारा दिये गये इस फैसले से खुश नहीं हैं.
महबूबा मुफ्ती बोली जारी रहेगी लड़ाई
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर के लोग न तो उम्मीद खोने वाले हैं और न ही हार मानने वाले हैं. सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए हमारी लड़ाई बिना किसी परवाह के जारी रहेगी. यह हमारे लिए अंत नहीं है.”
महबूबा मुफ्ती ने कहा, हिम्मत मत हारो, उम्मीद मत छोड़ो, जम्मू-कश्मीर ने बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं. सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला एक पड़ाव है इसे मंजिल समझने की गलती मत करो. ये हमारी हार नहीं है ये इस मुल्क की हार है. ये बात यहां रूकने वाली नहीं है.
जम्मू-कश्मीर में सिंतबर 2024 में कराए जाएं चुनाव
सीजेआई ने अपने फैसले में कहा कि हम चुनाव आयोग को सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देते हैं. साथ ही सीजेआई ने कहा कि केंद्र के इस कथन के मद्देनजर कि जम्मू-कश्मीर को अपना राज्य का दर्जा फिर से मिलेगा, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने की जरूरत नहीं थी.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक नहीं थी. 370 को हटाने का अधिकार जम्मू-कश्मीर के एकीकरण के लिए है. असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ अपील में सुनवाई नहीं कर सकते. सीजेआई ने कहा कि दुर्भावनापूर्ण तरीके से इसे रद्द नहीं किया जा सकता.
राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 खत्म करने की शक्ति
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के पास कोई आंतरिक संप्रभुता भी नहीं थी. इसका संविधान भारत के संविधान के अधीन था. राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 खत्म करने की शक्ति थी. अनुच्छेद 370 को स्थायी व्यवस्था कहने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है.
आर्टिकल 370 को निरस्त करने के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज अपना फैसला सुनाया. साल 2019 में इसके खिलाफ दायर 18 याचिकाओं पर 16 दिन सुनवाई के बाद 5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत समेत पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज इस पर फैसला सुनाया.
अनुच्छेद 370 मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें पेश की.
2019 में प्रावधानों को हटाने लिया गया था फैसला
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने का निर्णय लिया था. केंद्र के इस फैसले के बाद जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छिन गया था और यह केंद्र के अधीन आ गया था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई.
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