दंतेवाड़ा। हिंसा यात्रा द्वारा नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति का संदेश देने वाले महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज दंतेवाडा जिला मुख्यालय में मंगल पदार्पण हुआ। शांतिदूत के पदार्पण पर जैन ही नहीं अपितु जैनेत्तर समाज में भी विशेष उत्साह, उमंग दिखाई दे रहा था। सूर्योदय की वेला में पूज्यवर का मसेनार गांव से मंगल विहार हुआ। विहार के दौरान विशाल पर्वतीय श्रृंखला एवं वनों की हरीतिमा नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रही थी। लगभग 13 किलोमीटर विहार कर गुरुदेव दंतेवाड़ा के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पधारे।
प्रवचन सभा में प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री ने कहा शब्द का बड़ा महत्व होता है। क्योंकि उसकी अर्थात्मा महत्वपूर्ण होती है। हम भाषा का उपयोग करते हैं, शब्द बोलते हैं। शब्द तो जड़ है लेकिन कौन सा शब्द किस अर्थ में स्थापित है वह अर्थ शब्द का प्राण है। अर्थ को हम शब्द के माध्यम से ग्रहण करते हैं। अर्थ का वाहक शब्द होता है। सतसंगत एक शब्द है इसमें बड़ा अर्थ निहित है। संतों की संगति करना, अच्छों की संगति करना। जो अच्छी संगति में रहता है उसके जीवन पर अच्छा प्रभाव पड़ सकता है। साधुओं की संगति से अच्छी बात ज्ञान की बात सुनने को मिल सकती है। संतों की कल्याणी वाणी से श्रोता को ज्ञान मिल जाता है। पर यह ध्यान दें श्रोता सोता ना बन जाए, सरोता न बन जाए। सुनने वाला जागरूकता से प्रवचन सुने तो कुछ प्राप्त हो सकता है। सरोता सुपारी आदि काटने में काम आता है, कई श्रोता बीच-बीच में बात को काटने वाले होते हैं अपने आप को अधिक ज्ञानी समझते हैं वह भी नहीं होना चाहिए।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि सुनने वाला ग्राहक बुद्धि से सुने तो बहुत ज्ञान मिल जाता है। ज्ञान से विज्ञान बढ़ता है जिससे हेय-उपादेयत का ज्ञान होता है। सुनने के बाद अब जान लिया तो जीवन में क्या अपनाना क्या छोड़ना है इस पर ध्यान देना चाहिए। आदमी बुराइयों को हिंसा आदि को छोड़े और जीवन को अच्छा बनाए। सत्संगति संतों की पर्युपासना से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। सत्संगति से बुद्धि की जड़ता नष्ट होती है, वाणी में सच्चाई का सिंचन होता है और मान-प्रतिष्ठा उन्नति को प्राप्त करती है। सत्संगति पापों को दूर करती है और चित्त को प्रसन्न में बना देती है। सत्संगति से क्या-क्या लाभ नहीं है। अच्छे के पास रहने से जीवन में अच्छे संस्कार मिल सकते हैं। किताबों की संगति भी बहुत अच्छी होती है। अच्छी किताबें अच्छा जीवन बनाती है। चित्त भी चरित्र का निर्माण करने में सहयोग करते है। एक कोई फिल्मी चित्र देखें और वही कोई संतो के, धार्मिक चित्र देखें भावों में कितना अंतर आ जाता है। इसलिए व्यक्ति ध्यान दें अच्छी संगत और अच्छे संपर्क में रहे तो वह आध्यात्मिक दिशा में आगे बढ़ सकता है।