नई दिल्ली. देशभर में रोबोटिक सर्जन की कमी को पूरा करने के लिए अब एम्स (aiims) ने पहल की है. इसके तहत एम्स ने अपने यहां सर्जरी का कोर्स कर रहे रेजिडेंट डॉक्टरों के लिए रोबोटिक सर्जरी की ट्रेनिंग अनिवार्य कर दी है. इसके लिए मंगलवार को एम्स में रोबोटिक ट्रेनिंग प्रोग्राम लॉन्च किया गया है.
एम्स (aiims) के अकैडमिक डीन डॉक्टर मीनू वाजपेयी ने कहा कि चाहे चीरा लगाकर सर्जरी की जाए, लेप्रोस्कोपिक तरीके से की जाए या फिर रोवोट से की जाए, सर्जरी वही होती है. लेकिन जब किसी को चीरा लगाया जाता है, तो उसका हॉस्पिटल स्टे बढ़ जाता
है. चीरा को सूखने में समय लगता है. इस दौरान इन्फेक्शन का खतरा रहता है. मरीज को हाई डोज एंटीबायोटिक देना पड़ता है. दर्द ज्यादा होता है, ब्लड लॉस ज्यादा होता है. लेकिन जब यही सर्जरी रोबोट से की जाती है, तो रिकवरी बहुत फास्ट होती है. मरीज 14 दिन के बजाए दूसरे दिन ही घर चला जाता है. इससे सर्जरी में चार गुणा तेजी आ सकती है. वेटिंग कम हो सकती है. डॉक्टर मीनू ने कहा कि अब धीरे-धीरे पूरे देश में हॉस्पिटल और वेड्स बढ़ रहे हैं, लेकिन इसका फायदा कम हो रहा है, चूंकि अभी देश में रोबोटिक सर्जन कम हैं. ट्रेनिंग के लिए डॉक्टरों को देश से बाहर जाना होता है या फिर अपनी पढ़ाई बीच
में रोक कर दूसरे सेंटर में जाना होता है. चूंकि एम्स का पहला मकसद तो मेडिकल टीचर्स तैयार करना है, इसलिए मिनिस्ट्री की पहल पर एम्स के सभी रेजिडेंट डॉक्टरों को, जो अलग-अलग विभाग की सर्जरी में हैं, उन्हें यहां पर रोवोट से सर्जरी की ट्रेनिंग दी तो इसकी कीमत भी कम होगी.
ये हैं इसके फायदे
रोबोटिक सर्जरी से मरीज की रिकवरी बेहद फास्ट हो जाती है. जहां नॉर्मल तरीके से चीरा लगाकर सर्जरी के बाद पेशंट को ठीक होने में करीब दो हफ्ते लगते हैं तो वहीं रोबोटिक सर्जरी से ऑपरेशन होने पर मरीज को दूसरे दिन ही छुट्टी मिल जाती है. रोबोटिक सर्जरी में सर्जरी के दौरान संक्रमण का खतरा भी कम रहता है. अगर देश में बड़े पैमाने पर इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो सर्जरी की तादाद में 400% की तेजी आ सकती है.