Ajmer Sharif Dargah: अजमेर शरीफ दरगाह परिसर को हिंदू मंदिर बताने के दावे पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने प्रतिक्रिया दी है। दरगाह परिसर में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को अदालत द्वारा स्वीकार किए जाने पर ओवैसी ने 1991 के इबादतगाह अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून स्पष्ट रूप से किसी भी धार्मिक स्थल की पहचान बदलने या उससे संबंधित मामलों पर अदालत में सुनवाई करने की अनुमति नहीं देता।
हिंदू सेना ने किया याचिका दायर
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अधिवक्ता ईश्वर सिंह और रामस्वरूप बिश्नोई के माध्यम से दरगाह कमेटी के कब्जे को हटाने संबंधी याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया कि दरगाह की जमीन पर पहले भगवान शिव का मंदिर था, जहां पूजा और जलाभिषेक किया जाता था। इसके साथ ही परिसर में एक जैन मंदिर होने का भी उल्लेख किया गया।
मंदिर के अवशेष होने का दावा
याचिका में अजमेर निवासी हरविलास शारदा द्वारा 1911 में लिखी गई एक पुस्तक का हवाला देते हुए कहा गया कि दरगाह के 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे का उपयोग किया गया है। इसके अलावा, एक तहखाना या गर्भगृह होने का भी दावा किया गया, जहां पहले शिवलिंग स्थापित था और ब्राह्मण परिवार पूजा-अर्चना करते थे।
ओवैसी का बयान और 1991 अधिनियम का जिक्र
कोर्ट द्वारा याचिका स्वीकार करने पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, सुल्तान-ए-हिंद ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (RA) भारत के मुसलमानों के लिए सबसे अहम औलिया में से एक हैं। उनके आस्ताने पर सदियों से लोग आते रहे हैं और आते रहेंगे।
ओवैसी ने आगे कहा, 1991 का इबादतगाह अधिनियम स्पष्ट करता है कि किसी भी धार्मिक स्थल की पहचान बदली नहीं जा सकती। यह अदालतों का कानूनी कर्तव्य है कि वे इस कानून को लागू करें। लेकिन हिंदुत्व संगठनों का एजेंडा पूरा करने के लिए कानून और संविधान को नजरअंदाज किया जा रहा है।
दरगाह कमेटी की प्रतिक्रिया
दरगाह कमेटी के वकील अशोक कुमार माथुर ने कहा, 1000 साल पुरानी दरगाह के अस्तित्व को चुनौती देना 1991 के उपासना अधिनियम और दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट का उल्लंघन है। वहीं, अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा, ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह थी, है और रहेगी।
मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को
अदालत ने प्रतिवादी को नोटिस जारी किया है, और इस मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। यह मामला धार्मिक स्थलों की पहचान और उनके कानूनी संरक्षण को लेकर एक बार फिर चर्चा में आ गया है।
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