विक्रम मिश्र, लखनऊ. कोई भी दल अपनी कार्यकर्ताओं के निष्ठा और उनकी संख्या बल पर ही टिकता है. किसी भी चुनाव का आंकलन कर लीजिए जिस पार्टी में कार्यकर्ता उत्साहित रहते है वो पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है. ताज़ा मामला समाजवादी पार्टी का है, जहां पर राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने के लिए कार्यकर्ताओं को सिफारिश करवानी पड़ती है.
बता दें कि समाजवादी पार्टी की ऐसी रीति कभी रही नहीं है, लेकिन उनके ही कार्यकर्ता अब अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से नहीं मिल पाने के कारण नाराज हो रहे हैं. अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव से पहले पीडीए कार्ड के ज़रिए संसद में सम्मानजनक स्थिति बनाई है. हालांकि, इसी पीडीए के एक नेता लौटानराम निषाद ने राष्ट्रीय अध्यक्ष से नहीं मिल पाने के कारण अपनी क्षुब्धता दिखाई है.
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लौटानराम निषाद के मुताबिक, अखिलेश यादव के निजी सचिव गंगाराम से कई बार समय मांगने पर भी अभी तक उनकी मुलाकात अखिलेश यादव से नहीं हो पाई है. ऐसे ही कई जिलों से आये कार्यकर्ताओं का भी सूरतेहाल है. गाजीपुर के मोहम्मद अंसार भी लौटानराम निषाद के सुर में सुर मिलाते हुए अपनी भावना जाहिर कर रहे हैं. पीडीए कार्ड का मतलब पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक हैं, जिसमें लौटानराम पिछड़े और मुहम्मद अंसार अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं.
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पार्टी के वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में बताया कि पार्टी में अब केवल यादवों का ही बोलबाला है, जबकि मुलायम सिंह यादव के समय मे पार्टी में सभी वर्गों के लोगो को समुचित स्थान मिलता था.
विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस में भी हुई थी टूट
2022 के विधानसभा चुनाव के दरम्यान ऐसा ही नज़ारा कांग्रेस में भी देखने को मिला था, जब प्रियंका गांधी को प्रदेश प्रभारी की ज़िम्मेदारी मिली थी. तब उनके पीएस पर आरोप लगाते हुए पार्टी में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने ये कहते हुए पार्टी का दामन छोड़ दिया था कि प्रियंका गांधी से मिलने का समय नहीं दिया जाता, जबकि सन्दीप सिंह अपने चहेतों को पार्टी में मजबूत पद दे रहे हैं. कार्यकर्ताओं ने अनदेखी का आरोप भी वरिष्ठों पर लगाया था. उस समय कांग्रेस से एक बड़े धड़े के अलग होने का नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा था.
ऐसी सूरत में बिगड़ सकता है गणित
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में यूपी गठबंधन है, लेकिन अगर समाजवादी पार्टी कांग्रेस के इतिहास से सबक नहीं लेती है और कार्यकर्ताओं की ऐसी अनदेखी करती है तो निश्चित ही इसका खामियाजा उसको चुनावी मैदान में उठाना पड़ सकता है.
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