Supreme Court decision On AMU: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) का अल्पसंख्यक (Minority) दर्जा अभी बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखने पर ये ऐतिहासिक फैसला दिया है। सीजेआई डीवाई ने कहा कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है। सीजेआई समेत चार जजों ने एकमत फैसला दिया है जबकि तीन जजों ने डिसेंट नोट दिया है. मामले पर सीजेआई और जस्टिस पारदीवाला एकमत हैं। वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का फैसला अलग है। इस तरह से यह फैसला 4:3 से तय किया गया।

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कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 30 का हवाला देते हुए कहा कि धार्मिक समुदाय को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसे चलाने का अधिकार है।

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बता दें कि 2005 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने AMU को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इनकार कर दिया था। AMU ने इसके खिलाफ SC में अर्जी दी थी। 2006 में तत्कालीन UPA सरकार फैसले के खिलाफ SC गई थी। हालांकि 2016 में राज्य सरकार ने याचिका वापस लेने का फैसला लिया था।

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SC ने नए सिरे से निर्धारण के लिए बनाई 3 जजों की बेंच

कोर्ट ने अजीज बाशा वाला फैसला पलट दिया है, लेकिन AMU के स्टेटस पर फैसला 3 जजों की बेच बाद में करेगी।

क्या है इतिहास और क्या है विवाद?

  • अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था। बाद में, 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ रखा गया।
  • अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाए जाने के बाद पहले से बनी सभी कमेटी को भंग कर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से एक नई कमेटी बनी। इसी कमेटी को सभी अधिकार और संपत्ति सौंपी गई।
  • ABVP और दूसरे दक्षिण पंथी संगठनों का कहना है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए 1929 में 3.04 एकड़ जमीन दान दी थी। ऐसे में इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक सिर्फ सर अहमद खान को नहीं बल्कि हिंदू राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी हैं।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 में संशोधन को किया खारिज

सर्वोच्च अदालत के इस फैसले ने एएमयू की अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया। इसके बाद देशभर में मुस्लिम समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किए जिसके चलते साल 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला संशोधन हुआ। साल 2005 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1981 के एएमयू संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया. 2006 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। 2016 में केंद्र ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है। साल 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के पास भेज दिया था. आज इस पर फैसला आने वाला है।

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