नई दिल्ली. प्रधान न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य सभी न्यायाधीश केरल में बाढ़ राहत कोष में 25-25 रुपये का योगदान कर रहे हैं. यह राशि केरल मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में जमा की जाएगी. प्रधान न्यायाधीश ने एक सुनवाई के दौरान कहा कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश भी केरल बाढ़ राहत कोष में व्यक्तिगत योगदान दे रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश ने यह बयान एक संगठन के खिलाफ मानहानि मामले की सुनवाई के दौरान दिया. संगठन ने प्रधान न्यायाधीश और उनके ‘कजिन’ (जो कि अधिवक्ता और सांसद हैं) के संबंधों के आधार पर ‘हितों के टकराव’ का आरोप लगाया है. याचिका में विधायिका के सदस्य बने वकीलों को उनकी इस सदस्यता के बने रहने के दौरान वकालत से रोकने की मांग की गई है. याचिका पर निर्णय सुरक्षित रख लिया गया है.

मामले से जुड़े एक वकील जो कि संबंधित संगठन के महासचिव भी हैं, उन्होंने कहा कि वे हाथ जोड़कर बिना शर्त के दिल से माफी मांगने को तैयार हैं. लेकिन याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील शेखर नफादे ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है और माफी के साथ-साथ आर्थिक दंड भी लगाया जाना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश जब आर्थिक दंड की राशि के बारे में विचार कर रहे थे, तभी महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि राशि जितनी भी हो, उसे केरल बाढ़ राहत कोष में जमा करना चाहिए। महान्यायवादी ने जैसे ही कहा कि वकील केरल बाढ़ पीड़ित कोष में आर्थिक योगदान कर रहे हैं, प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने तुरंत कहा, “राहत कोष में हम भी थोड़ा योगदान कर रहे हैं।”

यह सुझाव आया है कि मानहानि मामले की सुनवाई का सामना कर रहे संगठन पर माफी मांगने के साथ-साथ पांच लाख रुपये का अर्थ दंड लगाया जाए।