रायपुर. गरुड़ पुराण के अनुसार समयानुसार श्राद्ध करने से पुरे कुल में कोई दुख नहीं रहता है. पितृपक्ष में किए गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है तथा श्राद्धकर्ता को पितृऋण से मुक्ति मिलती है. तालाब, नदी अथवा अपने घर में व्यवस्था अनुसार जवा, तिल, कुशा, पवित्र वस्त्र आदि सामग्री से पितरों की शांति, ऋषियों व सूर्य को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है.

षष्ठी का विधिवत श्राद्ध करने से सकल कार्य सिद्ध होते हैं. षष्ठी श्राद्धकर्म में छ: ब्राहमणों को भोजन कराना चाहिए. श्राद्ध में गंगाजल, कच्चा दूध, तिल, जौ व खंड मिश्रित जल की जलांजलि देकर पितृ पूजन करें. पितृगण के निमित, गौघृत का दीप करें, चंदन धूप करें, सफेद फूल, चंदन, सफेद तिल व तुलसी पत्र समर्पित कर. चावल के आटे के पिण्ड समर्पित करें. फिर उनके नाम का नैवेद्य रखें.

कुशा के आसन में बैठाकर पितृ के निमित भगवान विष्णु के जगन्नाथाय स्वरूप का ध्यान करते हुए गीता के छठे आध्याय का पाठ करें व इस विशेष पितृ मंत्र का यथा संभव जाप करें. इसके उपरांत चावल की खीर, पूड़ी सब्जी, कलाकंद, सफेद फल, लौंग-ईलायची व मिश्री अर्पित करें. भोजन के बाद ब्राहमणों को सफेद वस्त्र, चावल, शक्कर व दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें. इस प्रकार श्राद्ध कर्म करने से सकल मनोरथ पूर्ण होता है.