दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने राजधानी में रेन बसेरों के संचालन और प्रबंधन में कथित भ्रष्टाचार और मिलीभगत की शिकायतों को गंभीर बताते हुए दिल्ली सरकार को इन आरोपों की जांच शुरू करने पर विचार करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि रेन बसेरे बेघर और ज़रूरतमंद लोगों के लिए महत्वपूर्ण सुविधा हैं, इसलिए इनके प्रबंधन में किसी भी तरह की अनियमितता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने सरकार से इस मामले पर विस्तृत जवाब मांगा है और अगली सुनवाई में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली शेल्टर होम वर्कर्स यूनियन की ओर से एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) के तहत रेन बसेरों का संचालन कर रहे कई कॉन्ट्रैक्टेड एनजीओ बड़े पैमाने पर अनियमितताएँ कर रहे हैं। यूनियन का कहना है कि ये NGO घोस्ट एम्प्लॉयीज (यानी अस्तित्वहीन कर्मचारियों) के नाम पर वेतन दिखा रहे हैं, फर्जी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं, और सरकार से मिलने वाले फंड में हेराफेरी कर रहे हैं। याचिका में अदालत से रेन बसेरों के संचालन और वित्तीय लेन-देन की स्वतंत्र जांच करवाने की मांग की गई है।
यूनियन का आरोप है कि रेन बसेरों के संचालन में लगे इन एनजीओ की मिलीभगत कुछ विभागीय अधिकारियों से है, जिसके चलते यह गड़बड़ी लंबे समय से जारी है। याचिका में कहा गया है कि इस संबंध में कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन न तो DUSIB, न उपराज्यपाल कार्यालय, और न ही एंटी करप्शन ब्रांच ने अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई की। यूनियन ने अदालत से इस पूरे मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है।
कोर्ट से पूरे मामले की स्वतंत्र और कोर्ट-निगरानी में जांच की मांग
याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि इस पूरे मामले की स्वतंत्र और कोर्ट की निगरानी में जांच कराई जाए। इसके साथ ही 2018 से अब तक के सभी रिकॉर्ड, वेतन भुगतान से जुड़े दस्तावेज और नियुक्तियों का पूरा डेटा अदालत के सामने रखने का निर्देश देने की मांग की गई है। यूनियन ने यह भी कहा है कि रेन बसेरों में काम कर रहे कर्मचारियों की उपस्थिति को पारदर्शी बनाने के लिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम तुरंत लागू किया जाए।
याचिका में आगे अनुरोध किया गया है कि फंड के उपयोग का ऑडिट नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) से कराया जाए, ताकि कथित वित्तीय अनियमितताओं की वास्तविक स्थिति सामने आ सके। इसके अलावा, यूनियन ने अदालत से दोषी एनजीओ को ब्लैकलिस्ट करने और इस गड़बड़ी में शामिल अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने की भी मांग की है।
दिल्ली हाई कोर्ट का अहम आदेश
फिलहाल दिल्ली में दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) एक्ट, 2010 के तहत लगभग 198 नाइट शेल्टर एनजीओ के माध्यम से संचालित किए जा रहे हैं। मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास DUSIB के संचालन, प्रबंधन और निगरानी से जुड़े मामलों की जांच करने तथा आवश्यक होने पर कार्रवाई करने के पर्याप्त कानूनी अधिकार मौजूद हैं। कोर्ट ने टिप्पणी की कि “यह सिर्फ प्रशासनिक चूक का मुद्दा नहीं, बल्कि कमजोर और बेघर लोगों से जुड़े संवेदनशील विषय से संबंधित मामला है। इसलिए सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रबंधन पूरी तरह पारदर्शी हो।”
आवश्यक कार्रवाई परकरना होगा विचार
अदालत ने यूनियन को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह के भीतर अपनी विस्तृत प्रतिनिधि शिकायत दिल्ली सरकार को सौंपे। इसके बाद दिल्ली सरकार को DUSIB एक्ट, 2010 की धाराओं 26, 27 और 28 के तहत जांच, निरीक्षण और अनुशासनात्मक कार्रवाई पर विचार करना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी जांच, ऑडिट या प्रशासनिक कार्रवाई के दौरान DUSIB, संबंधित एनजीओ और अन्य प्रभावित पक्षों को सुनवाई का पूरा अवसर दिया जाए।
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