मुंबई। गुरुवार को जारी एक अध्ययन में कहा गया है कि लगभग सभी शीर्ष भारतीय एप भ्रामक डिज़ाइन प्रथाओं को अपना रहे हैं, जो उपयोगकर्ता की स्वायत्तता और उपयोगकर्ताओं द्वारा सूचित निर्णय लेने को प्रभावित करते हैं.
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि शीर्ष 53 एप्स में से 52 में भ्रामक UI (उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस)/UX (उपयोगकर्ता अनुभव) प्रथाएँ हैं, जो उपयोगकर्ताओं को गुमराह कर सकती हैं, या उन्हें ऐसा कुछ करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं, जो वे मूल रूप से नहीं करना चाहते थे.
डिजाइन फर्म पैरेलल मुख्यालय के सहयोग से निष्पादित, अध्ययन में कहा गया है कि इन समस्याग्रस्त एप्स को 21 बिलियन बार डाउनलोड किया गया है, और ऐसी प्रथाओं के कारण उपभोक्ता व्यवहार पर प्रभाव को चिह्नित किया गया है.
विज्ञापन उद्योग के स्व-नियामक निकाय द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि खोजे गए भ्रामक पैटर्न में गोपनीयता धोखा, इंटरफेस हस्तक्षेप, ड्रिप मूल्य निर्धारण और झूठी तात्कालिकता शामिल हैं.
गोपनीयता संबंधी धोखाधड़ी सबसे प्रचलित भ्रामक पैटर्न के रूप में सामने आई, जिसे विश्लेषण किए गए 79 प्रतिशत एप्स में देखा गया, इसके बाद इंटरफ़ेस हस्तक्षेप (45 प्रतिशत), ड्रिप मूल्य निर्धारण (43 प्रतिशत) और झूठी तात्कालिकता (32 प्रतिशत) का स्थान रहा.
उदाहरणों के साथ विस्तार से बताते हुए कहा गया है कि अध्ययन किए गए सभी ई-कॉमर्स एप्स ने उपयोगकर्ताओं के लिए अपने खातों को हटाना मुश्किल बना दिया, जबकि पाँच स्वास्थ्य-तकनीक ऐप्स में से चार ने उपयोगकर्ताओं को निर्णय लेने के लिए समय-आधारित दबाव या झूठी तात्कालिकता बनाने पर भरोसा किया.
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