शंकर राय बैतूल, भैंसदेही। आम तौर पर बच्चों को स्कूल तक लाने और वापस ले जाने का काम उनके परिजनों के जिम्मे होता है या फिर बच्चे खुद ही अपने स्कूल आते जाते हैं। भैंसदेही की एक ऐसी अनोखी टीचर हैं जो हर दिन अपने स्कूल के बच्चों को स्कूल ले जाने खुद उनके घर तक जाती हैं और छुट्टी होने के बाद उन्हें वापस भी छोड़ती हैं। इसे सच कर दिखाया है शिक्षिका अरुणा महाले ने, जिन्हें गांव के लोग स्कूटर वाली मैडम के नाम से जानते हैं। स्कूटर वाली मैडम पिछले 7 साल से ये काम कर रही हैं।

अरुणा महाले बैतूल जिले में भैंसदेही विकासखंड के ग्राम धूड़िया में पदस्थ हैं। दुर्गम इलाका होने की वजह से 7 साल पहले स्कूल में केवल 10 बच्चे थे और स्कूल बन्द होने की कगार पर आ चुका था। ये देखकर अरुणा ने कुछ नया करने की ठानी और अपनी स्कूटर की मदद से बच्चों को घर से स्कूल लाना ले जाना शुरू कर दिया। जो स्कूल नहीं आ रहे थे उसे धीरे धीरे पिक-अप एंड ड्राप का काम शुरू कर दिया। नतीजा ये हुआ कि आज इस स्कूल में बच्चों की दर्ज संख्या बढ़कर 85 हो गई है और शासन ने इस स्कूल को बन्द करने का फैसला वापस ले लिया है।

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने बताया कि अरुणा रोज सुबह स्कूटर लेकर कच्चे पक्के रास्तों से होते हुए छोटे छोटे मजरे टोलों तक पहुंचकर बच्चों को अपने साथ स्कूल लाती हैं और फिर उन्हें वापस भी छोड़ने जाती हैं। जिससे उनका काफी समय और पैसा खर्च होता है लेकिन अरुणा की अपनी कोई संतान नहीं है। इसलिए वो हर बच्चे पर अपनी ममता लुटा रही हैं। बच्चों और उनके पालकों के लिए तो स्कूटर वाली मैडम किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं।

स्कूटर वाली मैडम अरुणा बच्चों का जीवन संवारने जो कुछ कर रही हैं वो किसी सपने की तरह है। आज के दौर में ऐसा शिक्षक मिलना ही दुर्लभ है। अगर समाज में ऐसे और भी शिक्षक हो तो शायद ही कोई बच्चा शिक्षा से वंचित रह पाएगा। शिक्षिका अरुणा अपने स्कूल में एक अतिथि शिक्षक भी रखा है जिसे भुगतान वह स्वयं करती है। इतना ही नहीं स्कूल में अगर किसी बच्चे के पास रबड़, पेंसिल या कॉपी किताब ना हो तो उन बच्चों को भी खरीद कर देती है। प्रदेश के हर शिक्षक शिक्षिकाओं को अरुणा द्वारा बच्चों के प्रति किए जा रहे कार्य से सीख जरूर लेना चाहिए।

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