राम कुमार, सरगुजा। प्रदेश में सरकार तो बदली, लेकिन नहीं बदली तो अंबिकापुर शहर के सड़क की तस्वीर। दरअसल, अंबिकापुर नगर निगम के साथ ही आस-पास की सड़के बदहाल हो चुकी हैं, या यूं कहें कि गड्ढों में सड़क है। इससे सड़कों से गुजरने वाले लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। कई बार प्रदर्शन के बाद भी सड़कों की स्थिति नहीं सुधरी। इन सड़कों का पूर्व उप मुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव, मौजूदा सांसद चिंतामणि महाराज, विधायक सहित कलेक्टर ने भी जायजा लिया, लेकिन सड़कों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। आज 2 अक्टूबर गांधी जयंती है और पितृ पक्ष का अंतिम दिन भी, इस दिन को शहर के जागरूक नागरिकों ने बदहाल हो चुके सिस्टम की आँख खोलने के लिए चुना और शहर के मुख्य चौराहे घड़ी चौक में पूरे विधि-विधान से सिस्टम का ही श्राद्ध कर डाला।

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प्रदर्शन में शामिल राकेश तिवारी ने बताया, “पूरे शहर में सड़कों की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। यह एक आम नागरिक की मूलभूत जरूरत होती है, लेकिन सरकार इसे पूरा नहीं कर पा रही है। हमसे टैक्स लिया जाता है, ट्रैफिक पुलिस चालान काटने के लिए तैयार रहती है, लेकिन सड़कें तो हैं ही नहीं। सड़कों का निर्माण बारिश से पहले हुआ था, लेकिन अब फिर से गड्ढों में तब्दील हो गई हैं। इन हालातों में नेताओं से कोई उम्मीद नहीं दिखती। चुनाव के समय हमें देवतुल्य माना जाता है, लेकिन अब हमारी समस्याओं की कोई परवाह नहीं है।”

बस व्यवसाय से जुड़े त्रिलोचन सिंह बाबरा ने कहा, “इस श्राद्ध का आयोजन बिल्कुल सही किया गया है। सड़कों की हालत इतनी खराब है कि कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें लोगों की जान तक चली गई। जब इतने लोगों का श्राद्ध हो सकता है, तो सिस्टम का क्यों नहीं? हम अपने वाहनों को सड़कों पर चलाने के बजाय गड्ढों में चला रहे हैं, जिससे हमारी गाड़ियों की गारंटी-वारंटी खत्म हो रही है।”

प्रदर्शन में शामिल विवेक सिंह ने कहा, “सनातन धर्म में श्राद्ध उन्हीं का किया जाता है जो अब इस दुनिया में नहीं होते। इसलिए हमने सिस्टम का श्राद्ध कर इसे मृत घोषित कर दिया है, क्योंकि सड़कों की हालत सालों से खराब है और हमें हर साल टैक्स देना पड़ता है। इस मुद्दे पर कई बार ज्ञापन दिया गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सत्ताधारी लोग अब पूरी तरह उदासीन हो गए हैं।” एक अन्य नागरिक सुभाष राय ने बताया कि, “हमने पितृ अमावस्या के दिन सिस्टम के खिलाफ यह श्राद्ध किया है। सड़कों की दुर्दशा, बिजली कटौती और नगर निगम की लचर व्यवस्था ने हमें मजबूर कर दिया। कई बार अनुरोध किया, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। अंत में हमने तय किया कि इस सिस्टम का तर्पण किया जाए।”

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