भारत ने अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ उपायों को नजरअंदाज करते हुए अपने पुराने और विश्वसनीय सहयोगी रूस से तेल खरीदने का निर्णय लिया है. समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, भारतीय तेल रिफाइनरियां अभी भी रूसी कंपनियों से तेल की आपूर्ति जारी रखे हुए हैं. इन आपूर्ति निर्णयों का आधार कीमत, कच्चे तेल की गुणवत्ता, भंडार, रसद और अन्य आर्थिक कारक होते हैं.
सूत्रों के अनुसार, रूसी तेल पर कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. इसके बजाय, G7 और यूरोपीय संघ (EU) ने एक मूल्य सीमा प्रणाली लागू की है, जिसका उद्देश्य रूस की आय को सीमित करते हुए वैश्विक आपूर्ति को बनाए रखना है. भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों ने इस व्यवस्था के तहत 60 डॉलर प्रति बैरल की अधिकतम सीमा का पालन किया है. अब, EU ने इस सीमा को घटाकर 47.6 डॉलर प्रति बैरल करने की सिफारिश की है, जो सितंबर से प्रभावी होगी.
भारत ने वैश्विक तेल संकट को टाला
मार्च 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी उथल-पुथल हुई, जिसके चलते ब्रेंट क्रूड की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं. इस संकट के बीच, भारत ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए रियायती रूसी कच्चे तेल की खरीद शुरू की, जिससे वैश्विक बाजार में संतुलन बना रहा और महंगाई पर नियंत्रण पाने में सहायता मिली. सूत्रों के अनुसार, यदि भारत ने रूसी तेल का आयात नहीं किया होता और OPEC+ देशों द्वारा उत्पादन में कटौती (5.86 mb/d) जारी रहती, तो तेल की कीमतें 137 डॉलर से भी अधिक हो सकती थीं, जिससे वैश्विक महंगाई और ऊर्जा संकट और भी गंभीर हो जाता.
भारत ने न केवल अपने ऊर्जा हितों की सुरक्षा की, बल्कि वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को स्थिर बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. इस प्रक्रिया में, भारत ने अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित देशों जैसे ईरान और वेनेज़ुएला से तेल खरीदने से परहेज किया.
क्या है भारत का रुख?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के हालिया दावों के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत ने वास्तव में रूस से तेल खरीदना बंद करने का निर्णय लिया है. इस संदर्भ में, जिन कंपनियों ने रूस से तेल खरीदने का कार्य किया है, उनका कहना है कि उन्हें इस संबंध में कोई आधिकारिक आदेश नहीं मिला है और न ही इस विषय पर कोई चर्चा हो रही है. तेल कंपनियों के इस बयान से स्पष्ट होता है कि भारत अमेरिका के दबाव में आकर रूस से तेल खरीदना नहीं रोकेगा. ट्रंप इस स्थिति पर खुश नजर आ रहे हैं, जबकि उन्होंने एक दिन पहले ही कहा था कि उन्हें भारत के रूस के साथ संबंधों से कोई फर्क नहीं पड़ता.
भारत के प्रति ट्रंप के सख्त तेवर
डोनाल्ड ट्रंप एक ओर भारत को अपना मित्र बताते हैं, जबकि दूसरी ओर वे टैरिफ बढ़ाने की बात कर रहे हैं. हाल ही में उन्होंने कहा कि भारत के साथ व्यापार में कमी आई है, जिसका मुख्य कारण वहां के उच्च टैरिफ हैं. इसके साथ ही, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत ने अपने अधिकांश सैन्य उपकरण रूस से खरीदे हैं. इस संदर्भ में, ट्रंप ने भारत को 1 अगस्त से 25% टैरिफ और अन्य संबंधित शुल्क चुकाने की चेतावनी दी है.
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है रूस
रूस, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक है, प्रतिदिन लगभग 9.5 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करता है, जो वैश्विक मांग का लगभग 10% है. यह कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है, जो प्रतिदिन लगभग 4.5 मिलियन बैरल कच्चे तेल और 2.3 मिलियन बैरल परिष्कृत उत्पादों का निर्यात करता है. मार्च 2022 में रूसी तेल के बाजार से बाहर होने की आशंका के चलते और पारंपरिक व्यापार प्रवाह में व्यवधान के कारण ब्रेंट क्रूड की कीमतें 137 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ गईं.
रूसी तेल कभी नहीं हुआ बैन
रूसी तेल पर अभी तक कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, और न ही अमेरिका या यूरोपीय संघ ने इसे बैन किया है. भारतीय तेल कंपनियां ईरान या वेनेजुएला से कच्चा तेल नहीं खरीद रही हैं, जिन पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया है. ये कंपनियां हमेशा अमेरिका द्वारा निर्धारित 60 डॉलर की मूल्य सीमा का पालन करती रही हैं. हाल ही में, यूरोपीय संघ ने रूसी कच्चे तेल के लिए 47.6 डॉलर की मूल्य सीमा की सिफारिश की है, जो सितंबर से लागू होगी.
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