बिलासपुर। मरवाही विधायक अमित जोगी ने मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिह से 8 सवाल पूछे थे. इन सवालों का जवाब मुख्यमंत्री या बीजेपी की तरफ से तो नहीं आया। लेकिन अजीत जोगी के खिलाफ मुख्य याचिकाकर्ता संतकुमार नेताम ने इन सवालों के जवाब दिए हैं.

 

ये हैं अमित जोगी के सवाल और संतकुमार नेताम के जवाब-

1-अमित जोगी- रमन सिंह ने अजीत जोगी की जाति पर रिपोर्ट आने के 3 महीने के पहले 6 सदस्य वाली छानबीन समिति में एक ही अधिकारी को तीन महत्वपूर्ण पद- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव- सौंप दिया। क्या प्रदेश में अधिकारियों का अचानक अकाल पड़ गया था?

संतकुमार नेताम- अमित जोगी का सवाल बेतुका है. क्योंकि रीना बाबा साहेब आदिम जाति विभाग में सचिव और कमिश्नर दोनों के पद पर हैं. लिहाज़ा उन्हें कमेटी एक साथ इन पदों पर रखा गया. और कमेटी के सभी सदस्यों ने एकमत निर्णय लिया है.

2-अमित जोगी- – नियमानुसार समिति के अध्यक्ष प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी रहते हैं. रमन सिंह ने यह जवाबदारी एक कनिष्ठ संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को विशेष सचिव का दर्जा देकर सौंप दिया। क्या प्रदेश के 2 दर्जन से अधिक प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारियों में से रमन को अध्यक्ष बनाने के काबिल एक भी नहीं मिला। आखिर उस एक अधिकारी में ऐसा क्या देखा रमन ने कि उस पर एक साथ इतनी सारी मेहरबानियां कर दीं।

संतकुमार नेताम-  ऐसा नहीं है कि इस पर केवल अतरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी की ही नियुक्ति होनी थी. चूंकि रीना बाबा साहेब कंगाले विभाग में सचिव के पद पर हैं लिहाज़ा उन्हें ही यह पद मिलना था.

3-अमित जोगी- छानबीन समिति ने समिति की प्रक्रिया के नियम 21 का उल्लंघन करते हुए जांच दल की रिपोर्ट से ठीक उलटी रिपोर्ट किस आधार पर बनाई-

(क) जांच दल ने यह पाया कि जोगीसार के ग्राम वासियों ने यह माना कि अजीत जोगी आदिवासी है। जांच दल ने इस संबंध में अजीत जोगी द्वारा प्रस्तुत जोगीसार की ग्राम सभा द्वारा विधिवत पारित ग्राम सभा प्रस्ताव के अपनी रिपोर्ट के खंड 21 में पोस्ट की। किस आधार पर छानबीन समिति ने जोगीसार के लोगों की बात को झुठला दिया।

(ख) जांच दल ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि जांच के दौरान यह पाया गया कि जोगी परिवार हर साल आदिवासी रीति-रिवाज के अनुसार जोगीसार में अपने इष्ट देवता “जोगी बाबा” के मंदिर में पूजा-अर्चना करके नवाखाई का त्यौहार मनाता है। छानबीन समिति ने इस महत्वपूर्ण तत्व को क्यों अपनी रिपोर्ट में शामिल नहीं किया।

संतकुमार नेताम-– ये बात भ्रामक है. सतर्कता विभाग की रिपोर्ट के आधार पर ही छानबीन समिति ने रिपोर्ट बनाई है. सतर्कता विभाग ने इस बार भी और 2013 में भी अजीत जोगी के खिलाफ रिपोर्ट दी थी.  ग्राम सभा का प्रस्ताव जोगी के मामले में लागू नहीं होता. क्योंकि यह नियम उन लोगों के लिए है जिनका राजस्व या शैक्षणिक रिकार्ड नहीं है. जोगी के परिवार वालों के तीन पीढ़ी से दोनों रिकार्ड मौजूद हैं. लेकिन फिर भी जोगी द्वारा पेश ग्रामसभा के प्रस्ताव पर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से लिखा है. दरअसल, ग्राम सभा का प्रस्ताव जिसे जोगी बता रहे हैं वो पंचायत अधिनियम के अनुसार ग्रामसभा थी ही नहीं.

नियम 21 केे तहत कारवाई तब होती है जब विजिलेंस अपनी जांच में जाति प्रमाण पत्र को सही पाती है लेकिन यहां विजिलेंस ने जाति प्रमाण पत्र को फर्जी पाया। इसलिए के मामले में रूल 22 लागू होता है।

(ख) नवाखाई खाने से कोई आदिवासी नहीं बन जाता.  क्योंकि नवाखाई सिर्फ आदिवासी नहीं करते बल्कि सभी समुदाय के लोग इसे मनाते हैं. जोगी के भाई सत्यरंजन ने कहा है कि हम जन्म से मृत्यु तक क्रिश्चियन रीति रिवाज़ का पालन करते हैं. जोगी के परिवार के किसी सदस्य की शादी आदिवासी में नहीं हुई है.

4- अमित जोगी- समिति ने पूरे प्रकरण के सबसे महत्वपूर्ण 125 साल पुराने दस्तावेज- जिसमें स्पष्ट रुप से यह दर्ज है कि अजीत जोगी के पूर्वज कवंर जाति के हैं- को केवल इस आधार पर मानने से मना कर दिया कि उसकी फॉरेंसिक जांच नहीं हुई है।  जब सारे दस्तावेज अजीत जोगी ने खुद समिति के समक्ष उपस्थित होकर प्रस्तुत किए तब समिति ने उनकी फॉरेंसिक जांच के आदेश क्यों नहीं दिए?

संतकुमार नेताम-अमित जोगी ने साफ नहीं किया है कि वो किस 125 साल पुराने दस्तावेज़ की बात कर रहे हैं. अगर उनका आशय बपतिस्मा संबंधित दस्तावेज़ से है तो इस दस्तावेज़ की ओरिजनल प्रति चर्च के पास नहीं मिली है. यह दस्तावेज़ केवल अजीत जोगी के पास से मिली है. चर्च का रजिस्टर प्राइवेट सोसाइटी की प्रॉपर्टी है सरकारी दस्तावेज  नहीं है. रजिस्टर चर्च की कस्टडी में नहीं थी. चर्च के पादरी से जब मंगाया गया तो उन्होंने कहा कि यह तीन साल से जोगी के पास था. जिससे इसमें टेंपरिंग की गुंजाइश भी थी. जब कमेटी ने अजीत जोगी से इसकी असली प्रति मांगी तो वे इसे पेश नहीं कर पाए. जोगी द्वारा पेश फोटोकॉपी में हस्ताक्षर मिल नहीं रहे थे. फॉरेंसिंक रिपोर्ट क्यों कराई जाए जब यह न पब्लिक डॉक्यूमेंट है न ही प्रापर कस्टडी में थी.

5- अमित जोगी- छानबीन समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि जोगी की जाति के पक्ष में ग्राम सभा प्रस्ताव नियम अनुसार पारित नहीं किया था। अगर ऐसा था तो नियम 22(3) के अनुसार समिति को बकाया मुनादी कराके ग्राम सभा आहुत करानी थी। ताकि सच्चाई पता लगाई जा सके। आखिर समिति ने जोगिसार की ग्राम सभा बुलाकर ऐसा क्यों नहीं किया?

संतकुमार नेताम- जोगी के परिवार के लोग पढ़े लिखे थे और उनका राजस्व रिकार्ड था इसलिए इसकी ज़रूरत नहीं थी.

6- अमित जोगी- अगर छानबीन समिति की इस बात को मान लिया जाए कि धर्म परिवर्तन उपरांत व्यक्ति आदिवासी नहीं रह जाता तब पूर्वी उत्तर भारत और छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिसा और मध्य प्रदेश समेत कई प्रांत के करोड़ों-लाखों आदिवासी यकायक गैर आदिवासी बन जाएंगे। क्या समिति का यह निष्कर्ष संविधान के अनुच्छेद 25 के द्वारा भारत के हर नागरिक को दिए गए अपनी इच्छा से धर्म मानने और पालन करने के मौलिक अधिकार पर सीधा-सीधा हमला नहीं है?

संतकुमार नेताम- जोगी के जितने भी दस्तावेज़ों की जांच छानबीन समिति ने की है उसमें से उन्हें आदिवासी माना ही नहीं गया है. फिर ये प्रश्न कहां से आ गया कि अजीत जोगी पहले आदिवासी थे.  उनके पूर्वज तो आदिवासी रहे ही नहीं. उनकी तीन-चार पीढ़ियां क्रिश्चियन रही। इस मामले में भ्रम पैदा करना चाहते हैं. उनके भाई सत्यरंजन जोगी ने खुद कहा है कि इसाई धर्म में कोई जाति नहीं होती. सब बराबर होते हैं.

7- अमित जोगी-  सर्वोच्च न्यायालय ने 2011 में छानबीन समिति को अजीत जोगी की जाति तय करने के लिए 2 महीने का समय दिया था 6 साल, 72 महीने बाद समिति ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। पर जोगी की जाति क्या है। ये आज तक नहीं बताया। अगर जोगी आदिवासी नहीं है तो जोगी किस जाति के हैं?

संतकुमार नेताम- देरी के लिए जोगी खुद जिम्मेदार हैं. माधुरी पाटिल के निर्णय के अनुसार जोगी को अपना जाति प्रमाण पत्र एसडीओ से लेना था लेकिन जोगी का कोई सर्टिफिकेट एसडीओ का दिया नहीं था. इन्होंने कभी माधुरी पाटिल के निर्देशानुसार न तो सर्टिफिकेट कराया न ही उसे जांच के लिए पेश किया. उन्होंने कभी अपने सर्टिफिकेट का वैरीफिकेशन नहीं कराया. उन्होंने जानबूझकर अपने राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव का इस्तेमाल कराकर मामले की जांच में देरी कराई.

हाई पावर कमेटी का काम किसी की जाति बताने का नहीं है. यह काम सरकार के नियम के मुताबिक धारक की खुद की है. ये इस बात को बार-बार बोलकर मामले को राजनीतिक रुप देने की कोशिश कर रहे हैं.

8- अमित जोगी-  रिपोर्ट आने की ठीक 115 दिन पहले अजीत जोगी ने रमन सिंह को पत्र लिखकर यह जानकारी दी कि फर्जी तरीके से जाति बनाने की नियत से समिति के अधिकारियों को बदला गया है।  उन्हें सरकार के महाधिवक्ता जो कि नागपुर के निवासी हैं। वे रायपुर सर्किट हाउस में मीटिंग लेकर इस मामले में निर्देशित भी कर रहे हैं। पत्र के जवाब में रमन सिंह ने पत्र लिखा कि अधिकारी अक्सर महाधिवक्ता से कानूनी सलाह लेने के लिए मिलते हैं और यह स्पष्ट किया कि किसी के साथ भी अन्याय नहीं होने देंगे। अब क्या राजनीतिक दुश्मनी निकालने रमन सिंह अन्याय नहीं कर रहे हैं?

संतकुमार नेताम-इस बारे में मैं क्या बता सकता हूं. ये तो जोगी का आरोप है . जब कोई केस हार जाता है तो ऐसे आरोप लगाए जाते हैं. निर्णय को देखते हुए लगता है कि कमेटी ने एक-एक बात का बारिकी से अध्यय़न किया और कारण देते हुए निष्कर्ष निकाला है. इसलिए जोगी बिलासपुर से दिल्ली भाग रहे हैं कि लेकिन उन्हें इसमे कोई खामी नहीं मिल रही है. जबकि उन्होंने देश के बड़े वकीलों से सलाह ले ली है. हाई पावर कमेटी का निर्णय सही है.