अमरूद भारत का बहुत ही लोकप्रिय फल है. अमरूद एक सामान्य परंतु एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक फलों की फसल हैं, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार यह आम, केला, और सिट्रस के बाद चौथा सबसे महत्वपूर्ण फल हैं, यह मूल रूप से मध्य अमेरिका का फल हैं और भारत में इसे 17वीं शताब्दी में लाया गया था. इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं और साथ में पेक्टिन, कैल्सीयम और फॉसफोरस भी पाया जाता हैं. अमरूद पूरे भारत में पाया जाता हैं यह मुख्यतः बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में पाया जाता हैं और इसे हरियाणा तथा पंजाब में भी सफलतापूर्वक उगाया जाता हैं.

गुणों से भरपुर अमरूद को ‘गरीबों का सेब’ भी कहा जाता है. अमरूद को जहां फल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, वहीं इससे जेली, बर्फी और कई तरह की चीजें भी बनाई जाती है. अपने बहुउपयोगिता की वजह से भारत में इसकी काफी डिमांड है.

जाने अमरूद की उन्नत किस्में

भारत में अमरूद की अनेक किस्में पाई जाती हैं. थोड़ी बहुत भिन्नता के साथ भारत में इसकी 80-90 किस्में उगाई जाती है. लेकिन व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अमरूद की कुछ खास किस्में ऐसी हैं, जिसे बड़े पैमाने पर उगाया जा रहा है. ऐसी कुछ किस्मों की जानकारी हम आपको दे रहे है जो आप अपने खेत में इस्तेमाल कर सकते है.

  • Punjab Pink: इस किस्म के फल दरमियाने से बड़े आकार और आकर्षक रंग के होते हैं1 गर्मियों में इनका रंग सुनहरी पीला हो जाता है. इसका गुद्दा लाल रंग का होता है जिसमें से अच्छी खुशबू आती है. इसमें टीएसएस की मात्रा 10.5 से 12 प्रतिशत होती है. इसके एक बूटे की पैदावार तकरीबन 155 किलो तक हो सकती है.
  • Allahbad Safeda: यह दरमियाने कद की किस्म है. जिसका बूटा गोलाकार होता है. इसकी टहनियां फैली हुई होती हैं. इसका फल नर्म और गोल आकार का होता है. इसके गुद्दे का रंग सफेद होता है जिस में से आकर्षित खुशबू आती है. इसमें टीएसएस की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत होती है.
  • Arka Amulya:  इसका बूटा छोटा और गोल आकार का होता है. इसके पत्ते काफी घने होते हैं. इसके फल बड़े आकार के, नर्म, गोल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं. इसमें टी एस एस की मात्रा 9.3 से 10.1 प्रतिशत तक होती है. इसके एक बूटे से 144 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो जाता है.
  • Sardar: इसे एल 49 के नाम से भी जाना जाता है. यह छोटे कद वाली किस्म है, जिसकी टहनियां काफी घनी और फैली हुई होती हैं. इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है. इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है. खाने को यह नर्म, रसीला और स्वादिष्ट होता है. इसमें टी एस एस की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत होती है. इसकी प्रति बूटा पैदावार 130 से 155 किलोग्राम तक होती है.
  • Punjab Safeda: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी और सफेद होता है. फल में शूगर की मात्रा 13.4 प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.62 प्रतिशत होती है.
  • Punjab Kiran: इस किस्म के फल का गुद्दा गुलाबी रंग का होता है. फल में शूगर की मात्रा 12.3 प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.44 प्रतिशत होती है. इसके बीज छोटे और नर्म होते हैं.
  •  Shweta: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है. फल में सुक्रॉस की मात्रा 10.5—11.0 प्रतिशत होती है. इसकी औसतन उपज 151 किलो प्रति वृक्ष होती है.
  • इसके अलावा Nigiski, Punjab Soft किस्म के अमरूद की खेती भी कर सकते है.
  • Allahabad Surkha: यह बिना बीजों वाली किस्म है. इसके फल बड़े और अंदर से गुलाबी रंग के होते हैं.
  • Apple guava: इस किस्म के फल दरमियाने आकार के गुलाबी रंग के होते हैं. फल स्वाद में मीठे होते हैं और इन्हें लंबे समय के लिए रखा जा सकता है.
  •  Chittidar: यह उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध किस्म है. इसके फल अलाहबाद सुफेदा किस्म जैसे होते हैं. इसके इलावा इस किस्म के फलों के ऊपर लाल रंग के धब्बे होते हैं. इसमें टी एस एस की मात्रा अलाहबाद सुफेदा और एल 49 किस्म से ज्यादा होती है.

ये है उपयुक्त स्थान

अमरूद का उत्पादन देशभर में सब से ज्यादा उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में किया जाता है. इसके अलावे महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, तामिलनाडू और पंजाब, हरियाणा में भी बड़े पैमाने पर की जाती है. पंजाब में 8022 हैक्टेयर के रकबे पर अमरूद की खेती की जाती है और औसतन पैदावार 160463 मैट्रिक टन होती है.

अमरूद की खेती के लिए जलवायु, भूमि और समय

अमरूद की खेती गर्म और शुष्क जलवायु में सफलता पूर्वक की जा सकती है, क्योंकि ये गर्मी और पाला दोनों सहन कर सकता है. लेकिन अधिक वर्षा वाले इलाके में अमरूद की खेती करना सही नहीं होता है. अमरूद की खेती के लिये 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल माना जाता है. वैसे तो अमरूद की खेती हर प्रकार के मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन इसकी अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसकी पैदावार 6.5 से 7.5 पी एच वाली मिट्टी में भी की जा सकती है.

अमरूद की खेती करने के लिए कुछ खास टिप्स

अमरूद की खेती के लिए सबसे पहले खेत की दो बार तिरछी जुताई करनी चाहिए और फिर इसे समतल करें. खेत को इस तरह तैयार करें कि उसमें पानी ना खड़ा रहे. जोताई के बाद पौधे की रोपाई करने के लिए पहले 60 सेंटीमीटर चौड़ी, 60 सेंटीमीटर लंबी और 60 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे को तैयार करें. इसमें आप 20 से 25 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद 250 ग्राम सुपर फास्फेट और 40 से 50 ग्राम मिथाईल पैराथियॉन पाउडर को ऊपरी मिटटी में मिलाकर गड्ढों को भर दें. मिट्टी सतह से 15 सेंटीमीटर उपर तक भरें. इसके बाद मिट्टी पर सिंचाईं करें. गड्ढों में मिट्टी पौधा लगाने के 15 से 20 दिन पहले भर देना चाहिए.

इसके बाद पौधे की पिंडी के अनुसार गड्ढ़े को खोदकर उसके बीचो बीच पौधा लगाकर चारों तरफ से अच्छी तरह दबाकर फिर हल्की सिंचाई कर दें. आपको ये ध्यान रखना होगा कि कम उपजाऊ भूमि में 5 X 5 मीटर और उपजाऊ भूमि में 6.5 X 6.5 मीटर की दूरी पर ही आप पौधे लगाएं. जड़ों को हमेशा 25 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. अगर पौधे वर्गाकार ढंग से लगाएं हैं तो पौधों का फासला 7 मीटर रखें. 132 पौधे प्रति एकड़ लगाए जाते हैं. वहीं सघन विधि में प्रति हेक्टेयर 500 से 5000 पौधे आप लगा सकते हैं.

शरद ऋतु में पौधे के सिंचाई 15 दिन के अंतर पर तथा गर्मियों के मौसम में 7 दिन के अंतर पर करते रहना चाहिए. फल देने वाले पौधे से फल लेने के समय को ध्यान में रखकर सिंचाई करनी चाहिए. जैसे बरसात में फसल लेने के लिए गर्मी में सिंचाई की जाती है. जब कि सर्दी में अधिक फल लेने के लिए गर्मी में सिंचाई नहीं करनी चाहिए.  रोपाई के बाद भी समय- समय पर अमरूद के पौधे को खाद की जरूरत होती है, इसके लिए हर साल इसकी मात्रा अलग- अलग होती है.