प्रीत शर्मा, मंदसौर। दीपावली का पर्व माता लक्ष्मी की आराधना के लिए खास माना जाता है। हर कोई माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के जतन करता है। माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने से पहले उनके कोष की रक्षा करने वाले भगवान कुबेर को खुश करना जरूरी होता है। इसलिए धनतेरस के दिन भगवान कुबेर की पूजा होती है। आमतौर पर कुबेर मंदिर कम ही मिलते लेकिन मध्यप्रदेश के मंदसौर में मौजूद एक कुबेर मंदिर अतिप्राचीन और मंदिर की कई खूबियां इसे खास बनाती है।
इस मंदिर की नींव ही नहीं मिल पाई
मंदसौर शहर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर खिलचिपुरा में स्थित भगवान कुबेर का यह अतिप्राचीन मंदिर, देखने में छोटा किन्तु मान्यताओं और विशेषताओं में बहुत बड़ा है। जानकारों के अनुसार यह मंदिर यहां यतियों द्वारा उड़ाकर लाया गया था। एक वक्त था जब तंत्र क्रिया करने वाले यतियों को कई तरह की शक्तियां प्राप्त थी। यही कारण है कि आज भी इस मंदिर की नींव ही नहीं मिल पाई है। करीब 1400 वर्षों पुराने कुबेर मंदिर को सामने से देखने पर वह तिरछा ही नज़र आता है।
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गर्भगृह में सिर झुकाकर ही प्रवेश
मंदिर की खासियत यह है कि, इसकी बनावट के कारण श्रद्धालुओं को गर्भगृह में सिर झुकाकर ही प्रवेश करना पड़ता हैं। आमतौर पर जहां भी कुबेर मंदिर है वहां शायद ही भगवान शिव और भगवान गणेश मौजूद हो। किन्तु इस मंदिर में भगवान शिव का भव्य शिवलिंग और ऋद्धि- सिद्धि के देवता गणेश भी मौजूद है। साथ ही उनके पास दीवार पर भगवान कुबेर की ओजस्वी प्रतिमा विराजित है। भगवान शिव और विघ्नहर्ता गणेश के साथ धन के देवता कुबेर के विराजित होने से यह संयोग तंत्र क्रियाओं के लिए विशेष माना जाता है।
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धनतेरस पर इस मंदिर में भक्तों का तांता
बताया जाता है कि पूर्व में इस मंदिर से कई विद्वान पंडित सिद्धियां प्राप्त कर चुके है। धन की प्राप्ति के लिए धनतेरस पर यहां भक्त अपनी मनोकामना लेकर कुबेर के दर पर पहुंचते है। धनतेरस पर ही इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगता है और विशेष पूजा- पाठ और हवन होते है। साथ ही यहां पहुंचने वाले भक्त भगवान कुबेर से आर्थिक समृद्धि की कामना करते है।
यह मंदिर मराठा काल से बना
धनतेरस पर विशेष आयोजन होते और भक्तों की भीड़ भी इसी दिन देखने को मिलती है। दूर दराज से भगवान कुबेर के दर्शन करने आने वाले भक्त यहां मौजूद पंडितों द्वारा विशेष पूजा अर्चना करवाते है। पंडित राकेश भट्ट की मानें तो यह मंदिर मराठा काल से बना हुआ है। जहां मुगलों द्वारा हमला भी किया गया था। मंदिर में सुबह ब्रह्म मुहूर्त से ही भक्त दर्शन करने आने लगते है और यह सिलसिला देर रात तक जारी रहता है।
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