भारतीय ज्योतिष में नौ ग्रहों की मान्यता है, जिनमें से राहु और केतु को ‘छाया ग्रह’ कहा जाता है. ये कोई ठोस खगोलीय पिंड नहीं हैं, बल्कि ग्रहण बिंदु हैं. परंतु पुराणों में इनका वर्णन बहुत ही रोचक और रहस्यमयी कथा के रूप में मिलता है, जो समुद्र मंथन से जुड़ी है.

समुद्र मंथन की कथा
जब देवता और दैत्य मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, तब अमृत कलश निकला. विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत केवल देवताओं को पिलाना शुरू किया. लेकिन एक चालाक राक्षस, जिसका नाम था स्वर्भानु, देवताओं का रूप धरकर चुपचाप उनकी पंक्ति में बैठ गया और अमृत पी लिया.
विष्णु का सुदर्शन चक्र चला
सूर्य और चंद्रमा ने स्वर्भानु की पहचान कर ली और भगवान विष्णु को बता दिया. मोहिनी रूपधारी विष्णु ने तुरंत सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन चूंकि अमृत गले से नीचे नहीं गया था, वह मर नहीं पाया.
दो छाया ग्रहों का जन्म
उसका सिर बन गया राहु, जो अमर होकर सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने की कोशिश करता है. यही ग्रहण का कारण माना जाता है और उसका धड़ बन गया केतु, जो बिना सिर का लेकिन आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली माना जाता है.
असली नाम
राहु का असली नाम था – स्वर्भानु. केतु कोई अलग राक्षस नहीं था, बल्कि स्वर्भानु का धड़ ही बना केतु.
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