रुपेश गुप्ता, रायपुर। आज की तारीख़ में छत्तीसगढ़ की राजनीति के केंद्र में किसान हैं. किसान आंदोलन के बाद से दो किसानों की आत्महत्या की खबर है. मृतक किसानों के परिजनों का कहना है कि किसानों ने आत्महत्या कर्ज़ की वजह से की. लेकिन शासन का कहना है कि मौत की वजह पारिवारिक की थी. कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल दूसरे मृतक किसान के घर मिलने के लिए रवाना हो गए तो प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि किसान आंदोलन राजनीति से प्ररित है और विपक्ष इसे भड़काने की कोशिश कर रही है.
इस बीच, राजनांदगांव के किसान भूषण गायकवाड़ की मौत पर प्रशासन का बयान आ गया है. प्रशासन का कहना है कि भूषण की मौत की वजह पारिवारिक है. भूषण ने अपनी सुसाइडल नोट में पत्नी को प्राप्रर्टी में अपनी पत्नी को हिस्सा न देने की बात कही है. इस मामले की जांच कर रहे अशोक साहू से लल्लूराम डॉट काम ने बात की तो उन्होंने बताया कि मामला पूरी तरह से पति पत्नी के विवाद का है. सुसाइड नोट में कहीं भी आर्थिक कारण का ज़िक्र नहीं है. न ही किसी परिजन ने अपने बयान में ऐसी कोई बात कही है.
इस मामले में जब लल्लूराम डॉट कॉम ने भूषण गायकवाड़ के भाई जीवराखन गायकवाड़ से बात की तो उन्होंने कहा कि उसके भाई पर 8 से 10 लाख रुपये का कर्ज था. जिसमें उसके ट्रेक्टर की किस्त, बाज़ार का कर्ज़ शामिल है. इसके अलावा केसीसी लोन और कुछ दिन पहले उसकी पिकअप दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी जिसको बनाने में काफी खर्च आया था. इस बारे में पुलिस का कहना है कि भूषण के पिकअप का केवल टायर फटा था. जीवराखन का कहना है कि उसकी करीब 10 एकड़ में लगी करेले की फसल खराब हो गई. जिससे वो काफी हताश हो गया था. हांलाकि वो मानते हैं कि भूषण का अपनी पत्नी से विवाद था लेकिन उनका कहना है कि अगर सिर्फ पारिवारिक दबाव का मामला होता तो भूषण इतना बड़ा कदम नहीं उठाता. आर्थिक कारणों ने उसे तोड़ दिया था. उस पर काफी कर्ज चढ़ गया था. सवाल है कि जो बात किसान के परिजन लल्लूराम डॉट कॉम को बता रहे हैं क्या वो बात पुलिस से छिपा रहे हैं या फिर पुलिस जानबूझकर परिजनों की बताई बात को नहीं लिख रही है?
भूषण की मौत की वजह छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के प्रतिनिधि राजकुमार गुप्ता भी वही बता रहे हैं जो बात भूषण के भाई जीवराखड़ गायकवाड़ ने हमसे कही है. राजकुमार गुप्ता रविवार को भूषण के घर गए ते. उनका कहना है कि उसके खेतों में चार बोर थे जिसमें से 2 बोर खराब हो चुके थे. गुप्ता का कहना है कि मामला मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के क्षेत्र का है इसलिए प्रशासन लीपापोती कर रही है. गुप्ता का आरोप है कि राज्य में जितने किसान आत्महत्या कर रहे हैं पुलिस और प्रशासन इसी तरह तथ्यहीन की रिपोर्ट तैयार कर इस बात पर पर्दा डाले रखना चाहती है कि प्रदेश में किसानों की हालत खराब है.
राजकुमार गुप्ता ने दुर्ग के किसान कुलेश्वर देवांगन का उदाहरण दिया जिसने 12 जून को खुदकुशी कर ली थी. इस मौत पर प्रशासन ने कुलेश्वर को मानसिक रुप से कमज़ोर बता दिया. जो कि संविधान के आर्टिकल 21 का खुल्लखुल्ला उल्लघंन है. राजकुमार गुप्ता का कहना है कि बिना मेडिकल जांच के किसी को भी मानसिक रुप से कमज़ोर नहीं कहा जा सकता. इस मामले को लेकर वे मानवाधिकार आयोग जाने वाले हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में जो किसान खुदकुशी करते हैं उनके साथ आर्थिक परेशानियों के साथ और भी वजहे जुड़ी रहती हैं. करीब 11.7 प्रतिशत खुदकुशी करने वाले किसान पारिवारिक परेशानियों और 2 प्रतिशत शादी की समस्या से भी जूझ रहे होते हैं. लेकिन छ्त्तीसगढ़ में शासन को जब आत्महत्या करने की दूसरी वजह मिलती है तो पहली वजह खारिज़ हो जाती है.
अगर राजकुमार गुप्ता के आरोप सही हैं तो सवाल है कि आखिर किसी भी किसान की खुदकुशी में क्यों पुलिस और प्रशासन पर्दा डाले रही है? दरअसल, पूरे देश में किसान आंदोलन को लेकर माहौल गर्म है. मध्यप्रदेश में हालात काफी गंभीर हैं और उसकी आंच छत्तीसगढ़ में भी आ रही है. कांग्रेस और जेसीसी दोनों ही विरोधी पार्टियों ने इस मुद्दे को पकड़ा रखा है. सरकार पहले से 2100 रुपये धान का समर्थन मूल्य और 300 रुपये बोनस देने का अपना चुनावी वादा नहीं निभा पाई है. लिहाज़ा किसानों की मौत की सच्चाई सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती हैं. इसलिए पार्टी के स्तर भी बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया है.
लेकिन दिक्कत है कि किसान के मौत सिर्फ दो तक सीमित नहीं है. लगातार मौते हो रही हैं. राजनांदगांव में ही एक और किसान ने खुदकुशी कर ली है. मुख्यमंत्री के ही गृहक्षेत्र कवर्धा में लोहारा ब्लॉक के किसान 60 साल के रामझूल साहू ने फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली है. हांलाकि प्रशासन का कहना है कि उसके मौत की वजह क्या थी ये पता नहीं चल पाया है. पुलिस को आशंका है कि उसे सांस की बीमारी थी जिसके चलते उसने खुदकुशी की होगी.
ये घटनाएं मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के उस बयान के बाद भी हो रही हैं जिसमें रमन सिंह ने कहा था कि प्रदेश में किसानों की स्थिति बहुत अच्छी है. यहां किसान अपना सारा कर्ज वापस कर देते हैं क्योंकि उन्हें ऋण पर कोई ब्याज़ नहीं लगता. आंकड़ों के मुताबिक ये करीब सालाना 32 सौ करोड़ रुपये का है. सवाल है कि आखिर इसके बाद भी किसान क्यों खुदकुशी कर रहे हैं ? सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं फिर भी किसानों को खुदकुशी क्यों करनी पड़ रही है.
दरअसल जो छवि सरकार पेश कर रही है वो आकंड़ों की बाज़ीगरी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 32 लाख किसान हैं. जिसमें से इस ऋण की पात्रता प्रदेश के करीब 10 लाख 50 हज़ार उन किसानों को है जो नाबार्ड में पंजीकृत हैं. प्रदेश में 76 फीसदी किसान सीमांत और लघु किसान हैं. जो इसके दायरे से बाहर हैं.
सरकार जिस ऋण को शून्य ब्याज़ दर पर देने की बात कहती है वो केवल अल्पकालीन कृषि ऋण है जो खाद और बीज के लिए दिए जाते हैं. यानी जो इस ऋण के दायरे में हैं उन्हें भी केवल खाद और बीज के लिए शून्य प्रतिशत दर पर कर्ज़ मिलता है. जबकि ट्रेक्टर समेत खेती के उपकरण और महंगे कीटनाशकों के लिए बाजा़र दर पर ऋण लेना होता है. जिन लोगों को बैंक से लोन नहीं मिल पाता वो साहूकारों से कर्ज लेते हैं जिसकी दर ज़्यादा होती है. बैंक हो या साहूकार ऋण को लेकर किसानों पर खूब दबाव डालते हैं. बार-बार घरों में वसूली के लिए पहुंच जाते हैं. किसानों के लिए हालात बहुत ही अपमानजनक और तनावपूर्ण होते हैं.
राज्य का प्रशासनिक तंत्र किसी किसान की खुदकुशी को इसी बिनाह पर खारिज करने की कोशिश करता है कि किसान संपन्न था लेकिन संपन्न किसान के आत्महत्या करने की बड़ी वजह उसके प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचना होती है. दरअसल दिक्कत ये है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में किसी सरकार ने ऐसी कोई योजना नहीं बनाई जो किसानों को बाज़ार के कर्ज़ के जाल से बाहर निकाल सके. इसलिए देश में किसानों की खुदकुशी रुक नहीं रही हैं. सत्ता चाहे बीजेपी की हो या कांग्रेस की.