मणिपुर में एक बार फिर से अशांति का माहौल बन गया है. मंगलवार को प्रदर्शनकारियों ने जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और जिला चुनाव कार्यालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों पर हमला किया. गुस्साई भीड़ ने कई जिलों में केंद्र सरकार के कार्यालयों को बंद कर दिया. इस पूरे विवाद की जड़ एक शब्द में है, जिसे समझने की कोशिश की जा रही है.

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20 मई को एक सरकारी बस में पत्रकारों को उखरूल जिले में शिरुई लिली उत्सव की कवरेज के लिए ले जाया जा रहा था, जब सुरक्षाबलों ने पूर्वी इंफाल जिले के ग्वालताबी चौकी के पास बस को रोक दिया. इस दौरान, सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय (डीआईपीआर) के कर्मचारियों को बस के आगे के शीशे पर लिखे मणिपुर नाम को सफेद कागज से ढकने के लिए मजबूर किया गया. इस घटना के बाद, मेइती बहुल इंफाल घाटी में विरोध प्रदर्शन हुए.

मंगलवार को प्रदर्शन ने उग्र रूप धारण कर लिया. मेइती समूहों की संगठन कॉर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटेग्रिटी (कोकोमी) की छात्र शाखा ने घाटी के जिलों में कई केंद्रीय सरकारी कार्यालयों को बंद कर अपने आंदोलन को तेज किया. कार्यकर्ताओं ने इंफाल में दो केंद्रीय कार्यालयों में ताला लगा दिया और मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में घुसकर कर्मचारियों से भवन छोड़ने को कहा, साथ ही मुख्य गेट पर ताला जड़ दिया. इसके अलावा, उन्होंने जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के कार्यालय पर भी ताला लगाया और राज्यपाल के खिलाफ ‘माफी मांगो या मणिपुर छोड़ो’ जैसे नारे लगाए.

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लोगों ने निकाला मार्च

सैकड़ों लोगों ने मणिपुर को विभाजित करने के प्रयासों के खिलाफ लामलोंग, इंफाल पूर्वी जिले में एक मार्च निकाला. इसके साथ ही, इंफाल पश्चिम जिले में सिंगजामेई से लिलोंग तक 5 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाई गई. इसी प्रकार के विरोध प्रदर्शन बिष्णुपुर जिले के नाम्बोल और बिष्णुपुर शहर में भी आयोजित किए गए.

कोकोमी ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के साथ ही मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और सुरक्षा सलाहकार के इस्तीफे की मांग की है.

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पूर्व सीएम बीरेन सिंह ने क्या कहा?

पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बताया कि उन्होंने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला के साथ राज्य की वर्तमान स्थिति पर चर्चा की. इस बातचीत में उन्होंने ग्वालताबी की घटना के समाधान के लिए प्रदर्शनकारियों को संवाद के लिए आमंत्रित करने का सुझाव दिया.

मणिपुर के एक मेइती संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को केंद्र सरकार को एक हालिया घटना के संबंध में अपनी चिंताओं से अवगत कराया. उन्होंने गृह मंत्रालय के अधिकारियों के समक्ष नार्को-आतंकवाद, अवैध आव्रजन, बड़े पैमाने पर अवैध अफीम की खेती और राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था से उत्पन्न खतरों के बारे में अपनी गंभीर चिंताओं को व्यक्त किया.

संगठन का प्रतिनिधित्व एक सात सदस्यीय टीम ने किया, जबकि गृह मंत्रालय की ओर से पूर्वोत्तर मामलों के सलाहकार ए के मिश्रा और संयुक्त निदेशक राजेश कांबले उपस्थित रहे.

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कांग्रेस नेता इबोबी सिंह ने क्या मांग की?

मणिपुर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओकराम इबोबी सिंह ने मांग की है कि उस अधिकारी को, जिसने सरकारी बस से राज्य का नाम हटाने का आदेश दिया, प्रदेश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह असंभव है कि भारतीय सेना की महार रेजिमेंट के कर्मी बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के सरकारी बस पर मणिपुर का नाम छिपाने के लिए कहें. इबोबी सिंह ने यह भी बताया कि यह सक्षम अधिकारी राज्यपाल, डीजीपी या सुरक्षा सलाहकार हो सकते हैं, और उन्हें अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए ताकि आगे किसी और नुकसान से बचा जा सके. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मणिपुर का नाम 1949 में भारत में विलय से पहले से अस्तित्व में है, और राज्यपाल तथा अन्य अधिकारियों को इस तथ्य को समझना चाहिए.