हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर नगर निगम में एक और बड़ा घोटाला उजागर हुआ है, जिसने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत राजकोट की ठेकेदार फर्म कुणाल स्ट्रक्चर पर 10 करोड़ रुपए की फर्जी बैंक गारंटी का आरोप लगा है। फर्म ने यह गारंटी नगर निगम से टेंडर हासिल करने के लिए लगाई थी और इसके जरिए कंपनी ने 100 करोड़ से अधिक के प्रोजेक्ट में काम किया है।
कैसे हुआ खुलासा?
घोटाले का खुलासा तब हुआ, जब नगर निगम के अधिकारियों ने गहन जांच की। पता चला कि राजकोट की इस ठेकेदार फर्म ने बैंक से प्राप्त गारंटी के नाम पर जो दस्तावेज पेश किए थे, वे फर्जी निकले। इसके बाद मामला तेजी से तूल पकड़ गया, और नगर निगम आयुक्त ने तुरंत कार्रवाई के निर्देश दिए।
FIR दर्ज करने के लिए आवेदन, बैंक अधिकारियों पर भी शक
नगर निगम आयुक्त के निर्देश पर सेंट्रल कोतवाली थाने में ठेकेदार फर्म कुणाल स्ट्रक्चर के खिलाफ आवेदन दिया है। जिस पर पुलिस जांच कर एफआईआर दर्ज कर सकती है। इसके साथ ही बैंक के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है, क्योंकि बैंक से गारंटी से जुड़े दस्तावेजों की जांच में कई गड़बड़ियां पाई गई हैं। अब इस मामले में जांच का दायरा बैंक अधिकारियों तक बढ़ाया जा रहा है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि घोटाले में कहीं उनकी मिलीभगत तो नहीं थी।
क्या है मामला?
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत इंदौर नगर निगम ने गरीब परिवारों के लिए आवास निर्माण के बड़े प्रोजेक्ट को टेंडर किया था। इस योजना के तहत कई ठेकेदारों को अलग-अलग काम सौंपे गए थे। कुणाल स्ट्रक्चर नामक इस ठेकेदार फर्म ने प्रोजेक्ट में हिस्सा लेने के लिए 10 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी पेश की थी, जिसे अब फर्जी पाया गया है। इस घोटाले ने इंदौर नगर निगम की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया है। पहले भी नगर निगम में कई घोटाले उजागर हो चुके हैं, और अब प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी महत्वपूर्ण योजना में घोटाले से निगम पर अविश्वास का माहौल बन गया है।
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जनता के टैक्स से संचालित इस योजना में फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद नगर निगम की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। नगर निगम आयुक्त ने सख्त रुख अपनाते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। मामले की गहन जांच की जा रही है और इसमें शामिल सभी पक्षों की भूमिका की बारीकी से जांच की जाएगी। इस घटना ने इंदौर में सरकारी परियोजनाओं में ठेकेदारों और बैंक अधिकारियों के बीच संभावित मिलीभगत की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है।
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