पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में लोग नर्क की जिंदगी जी रहे हैं. किडनी प्रभावित सुपेबेड़ा गांव की अब तक न तस्वीर बदली और न ग्रामीणों की तकदीर बदली. आलम यह है कि एक के बाद एक ग्रामीण की हो रही मौत की कड़ी में आज एक और इजाफे के साथ संख्या 78 तक पहुंच गई है. किड़नी की बीमारी से पीड़ित पुरंधर ऑडिल की मौत से गांव में मातम पसर गया है.

दरअसल, सुपेबेडा गरियाबंद जिले का ऐसा गांव है, जिसकी पहचान किडनी प्रभावित के रूप में जग जाहिर है. पिछले 6 साल से यहां के लोग किडनी की बीमारी से मौत के गाल में समा रहे हैं. बीमारी से हो रही मौत की चर्चा खबरों के जरिए लोगों तक पहुंचने के बाद इस गांव में जनप्रतिनिधि भी आ चुके हैं, स्थिति में सुधारने की घोषणाएं कर चुके हैं, लेकिन इस गांव की स्थिति जस के तस बनी हुई है. लोगों को मौत ही नसीब हो रही है, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है.

गांव में फैली बीमारी की वजह दूषित पानी बताया जा रहा है. 23 दिसम्बर 2018 को गांव में शुद्ध पेयजल के लिए सरकार द्वारा तेल नदी से एक साल के भीतर पानी लाने की घोषणा की गई, लेकिन 3 साल बीतने के बाद टेंडर तक जारी नहीं हो पाया. गांव में लगे रिमूवल प्लांट भी देखभाल के अभाव में धूल खा रहे हैं. नतीजा आज भी लोग हैंडपंप या फिर झिरिया का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं.

12 करोड़ की वाटर स्कीम फाइलों में अटकी

तेल नदी से पानी देने 12 करोड़ की वाटर स्कीम का ऐलान कांग्रेस सरकार में आते ही 2018 में कर दिया था. इस स्कीम से सुपेबड़ा के अलावा पास के अन्य 9 गांव को भी साफ पानी मिलता. लेकिन अब तक काम केवल फाइलों में है. टेंडर की प्रकिया तक पूरी नहीं हुई है. 6 साल में सरकारें बदली, लेकिन नहीं बदली तो सुपेबेडा की तस्वीर. नेताओं के दावे सुनकर ग्रामीण परेशान हो चुके हैं. जमीनी स्तर पर व्यवस्थाएं मुकम्मल करने की मांग कर रहे हैं. अब देखने वाली बात होगी कि सुपेबेडा के लोगों की ये मांगें कब तक जमीनी धरातल पर उतरेगी.