दिल्ली. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म पाइरेसी से निपटने के लिए सख्त सजा देने के वास्ते सिनेमैटोग्राफी कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया है। विधेयक के मसौदे पर लोगों से राय मांगी है।
एक बयान में कहा गया है कि मंत्रालय फिल्म पाइरेसी की जांच करने खासतौर से फिल्मों के पाइरेटिड वर्जन को इंटरनेट पर रिलीज करने पर लगाम लगाने के लिए सिनेमेटोग्राफी कानून, 1952 में बदलाव करना चाहता है। पाइरेसी से फिल्म उद्योग और सरकार के खजाने को बड़ा नुकसान होता है। सिनेमेटोग्राफी कानून, 1952 की धारा सात में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणन के लिए प्रावधानों का उल्लंघन करने पर सजा होती है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कानून की धारा सात की नई उप धारा (4) जोड़ने के लिए सिनेमेटोग्राफी कानून (संशोधन) विधेयक का प्रस्ताव दिया है। संशोधन विधेयक के मसौदे में मंत्रालय ने फिल्म पाइरेसी अपराधों को दंडनीय बनाने का प्रावधान पेश किया है। इसमें तीन साल की जेल की सजा और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। कोई भी व्यक्ति अगर कॉपीराइट मालिक के लिखित अधिकार के बिना किसी फिल्म की दृश्य या श्रव्य रिकॉर्डिंग करने के लिए किसी रिकॉर्डिंग उपकरण का इस्तेमाल करता है या उसका प्रसारण करता है जो वह सजा का पात्र होगा। मंत्रालय ने 14 जनवरी 2019 तक सिनेमेटोग्राफी कानून (संशोधन) विधेयक के मसौदे पर टिप्पणियां मांगी है।