शिखिल ब्यौहार, भोपाल। लोकसभा चुनाव में 29 सीटों पर विजय के साथ मत प्रतिशत में वृद्धि के लिए बीजेपी एक और मास्टर स्ट्रोक प्लान तैयार कर चुकी है। दरअसल, जनजातियों और वनवासियों बाहुल्य क्षेत्रों में घर-घर संपर्क अभियान, लाभार्थी अभियान के अलावा चरण पखारने का काम बीजेपी करेगी। साथ ही शबरी, निषादराज, संत हृदय दास, कबीर को भी कार्यक्रमों में याद कर पॉलिटिकल माइलेज लिया जाएगा।

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बीते विधानसभा चुनावों में पीएम मोदी से लेकर अमित शाह का फोकस जनजाति वर्ग के मतदाताओं पर ज्यादा रहा। बुंदेलखंड, महाकौशल, मालवा-निमाड़ में बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया। चुनावी समीक्षा में आदिवासियों और वनवासियों पर फोकस से रिकॉर्ड जीत के आंकड़े भी बताए गए हैं। ऐसे में लोकसभा चुनावों जीत के अलावा मत प्रतिशत बढ़ोतरी के लिए एक बार फिर आदिवासियों पर संगठन का विशेष फोकस होगा।

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बता दें कि मध्यप्रदेश में आदिवासियों की संख्या डेढ़ करोड़ के पार है। बीजेपी के प्रदेश सह मीडिया प्रभारी अनिल पटेल ने बताया कि बीजेपी सरकार में आदिवासियों के साथ पिछड़ों को विकास की धारा में खड़ा करने का काम बीजेपी ने किया है। वनवासी, आदिवासी के संतों ने सनातन का मान बढ़ाया। प्रदेश के विकास में कंधे से कंधा मिलाकर साथ चल रहे इन वर्ग के चरण पखारना भी पुण्य कार्य है।

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आइए बताते हैं आपको एमपी के किन क्षेत्रों में कौन सी जनजातियां

1 – गोंड, बैगा, कोल, कोरकू परधान, भारिया और मुरिया।

यह नर्मदापुरम, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, रायसेन, नरसिंहपुर जिलों में अधिक हैं।

2 – भील, भिलाला, परितवा, बारेला और तड़नी।

यह जनजातियां झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन, बड़वानी और रतलाम जिलों में सर्वाधिक हैं।

3 – सहरिया।

श्योपुर, शिवपुरी, भिंड, मुरैना, गुना, दतिया, ग्वालियर आदि जिले सहरिया जनजाति बाहुल्य हैं।

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चुनावी चरण पखारो फिर अत्याचार करो, यही बीजेपी की नीति- कांग्रेस

बीजेपी के स्पेशल प्लान पर कांग्रेस ने निशाना साधा। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता स्वदेश शर्मा ने कहा कि एनसीआरबी की रिपोर्ट पर बीजेपी बात नहीं करती। आदिवासियों पर अत्याचार और अपराधों में मध्यप्रदेश देश के पहले स्थान पर है। इतना ही नहीं बल्कि आदिवासियों को दोहरी नीति का शिकार बनाने के लिए सर्वाधिक प्रकरण भी एमपी में ही दर्ज किए गए। आदिवासियों के साथ पिछड़ी जातियों के नाम पर बीजेपी सिर्फ सियासत करती है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार की आदिवासी विरोध नीतियों को घर-घर पहुंचाने का काम करेगी।

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