दिल्‍ली. जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्मटी के दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागर में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. भगवान का जिक्र आते ही मन में सबसे पहले मथुरा-वृंदावन का नाम याद आता है.

बता दें कि भगवान कृष्‍ण का द्वारका, हस्तिनापुर, कुरुक्षेत्र के साथ भी काफी जुड़ाव रहा है, लेकिन भगवान श्री कृष्ण की जिंदगी से जुड़ी एक और अहम जगह के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं. यह जगह उनका ससुराल कुदरकोट है. इस शहर का नाम पहले कुंदनपुर था, जिसे बाद में कुदरकोट के नाम से जाना जाने लगा, इस जगह में भी भगवान श्रीकृष्‍ण से जुड़ी अहम् बातें हैं.

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पत्‍नी देवी रुक्‍मणी का किया था हरण

श्रीकृष्‍ण ने अपने जीवन में कई लीलाएं रची हैं. उनका विवाह भी बेहद अलग तरीके से हुआ था. भगवान कृष्‍ण अपनी पत्‍नी देवी रुक्‍मणी का उनके नगर से हरण करके लाए थे. धर्म-पुराणों के मुताबिक द्वापर युग में उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के कुदरकोट कस्बे को लोग कुंदनपुर के नाम से जानते थे. यह देवी रुक्‍मणी के पिता राजा भीष्‍मक के राज्‍य की राजधानी थी.

राजा भीष्‍मक अपनी बेटी का विवाह श्रीकृष्‍ण से करना चाहते थे, लेकिन रुक्‍मणी के भाई रुकुम ने अपने साले शिशुपाल से उनका विवाह तय कर दिया था. तब श्रीकृष्‍ण ने देवी रुक्‍मणी का उस मंदिर से हरण कर लिया, जहां वे रोजाना गौरी माता की पूजा करने के लिए जाती थीं. श्रीकृष्‍ण जैसे ही देवी रुक्‍मणी का मंदिर से हरण करके ले गए, मंदिर से माता गौरी की मूर्ति भी गायब हो गई. लिहाजा इस मंदिर को आलोपा देवी मंदिर कहते हैं.

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इसलिए बदला कुंदनपुर का नाम

जब देवी रुक्‍मणी के भाई रुकुम को उनके हरण की खबर लगी तो वह काफी क्रोधित हो गए और उन्‍होंने मंदिर में साथ गए सिपाहियों को हाथियों से कुचल डाला. तब से ही इसका नाम कुंदनपुर से बदल कर कुदरकोट हो गया. मथुरा-वृंदावन की तरह कुदरकोट में भी जन्माष्टमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है. पूरा कस्‍बा अपने दामाद का जन्‍मोत्‍सव मनाता है.