छत्तीसगढ़ धान उत्पादन के लिए जाना जाता है. यहां की प्रमुख फसल धान है. यही वजह है कि प्रदेश के किसान धान के अलावा दूसरी फसल नहीं लेते थे. यानी साल में सिर्फ एक बार धान की फसल लगाई जाती थी. जिससे किसानों की आय भी सीमित होती थी. लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल और प्रोत्साहन से अब राज्य के किसान विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन कर रहे हैं. अब किसान धान की फसल के अलावा दलहन-तिलहन, कोदो-कुटकी जैसे मिलेट्स, फल और फूलों की भी खेती कर रहे हैं. इतना ही नहीं प्रदेश में कॉफी, काजू, सेब और पान की खेती भी की जा रही है.
अमूमन ये कहा जाता है कि सेब के उत्पादन के लिए ठंडा वातावरण चाहिए होता है, क्योंकि आमतौर पर सेब हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड जैसे कम तापमान वाले राज्यों में होते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ का मौसम गर्म है, जो सेब के लिए अनुकूल नहीं माना जाता. इसकी खेती सपने जैसी है. लेकिन छत्तीसगढ़ के किसानों ने यहां की मिट्टी को अनूकुल बनाते हुए सेब उत्पादन किया है.
गर्म प्रदेशों में भी सेब की खेती संभव
सेब की खेती करने वाले किसान मुकेश गर्ग के मुताबिक उन्हें जानकारी मिली कि हिमाचल प्रदेश में सेब की ऐसी किस्म विकसित हुई है जिसका उत्पादन गर्म वातावरण वाले प्रदेशों में भी किया जाता है. इसके बाद उसने इसके लिए कृषि एवं उद्यानिकी विभाग से संपर्क किया और प्रतापपुर में सेब की नई किस्म के पौधे लगाए. बाकायदा विभाग से प्रशिक्षण भी लिया. नतीजन एक साल की अवधि में ये पौधे चार से छह फीट के हो चुके हैं. यहां तक की कई पेड़ों में फल भी आ चुके हैं.
नवंबर से फरवरी उत्पादन का मुख्य समय
किसान ने बताया कि सेब की फसल लेने का मुख्य समय नवम्बर से फरवरी के बीच होता है. इसके लिए उन्होंने पहले से ही दो बाय दो फीट गड्ढे तैयार करके रखे थे. गड्ढों को दीमक रोधी दवा से उपचारित किया गया था. गड्ढों में गोबर, मिट्टी और थोड़ा सा डीएपी डालकर पानी से भरकर रखे गए थे. इसका फायदा ये होता है कि गड्ढों को जितना बैठना होता है बैठ जाता है और पौधे लगने के बाद इनके रेशे टूटने का डर नहीं होता है. इसके बाद 1-2 दिन में पौधे रोपित कर दिए थे. इनके लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है. केवल गर्मियों में दो से तीन दिन में पानी देना होता है. हालांकि इस बात का ध्यान रखना जरुरी है कि इन पौधों में बारिश के पानी का रुकाव ना हो.
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