नेहरूजी 9 बार जेल गए 3259 दिन जेल में गुज़ारे, ये तो छोड़ों अंग्रेज़ों ने तो नेहरूजी के मां-बाप तक को नहीं बख़्शा.  8 अप्रैल 1932 को इलाहबाद में नेहरूजी की मां स्वरूप रानी के नेतृत्व में जलियांवाला बाग़ के शहीदों की याद में निकाले जा रहे जुलूस पर लाठियां चलाई .

स्वरुप रानी को नीचे गिराकर उनके सर पर कई बार डंडे से वार किये ,यहाँ तक की उनके बचाव करने वालों को भी बुरी तरह पीटा गया .स्वरुप रानी मरणासन्न हो चुकी थीं पर बाद में बच गयी . सर पर हुए रक्त स्राव की वजह से वो बिस्तर से नहीं उठ सकीं ,बाद में उनकी मृत्यु का कारण भी यही बना .

ज़ाहिर है स्वरुप रानी देश के लिए ही शहीद हुई . सिर्फ़ लाठी-गोली खाकर तत्काल मरना ही शहादत नहीं है. स्वरुप रानी ने जिस दिलेरी से अंग्रेज सरकार द्वारा रोके गए जुलूस के सामने आकर कुर्सी लगाकर जिस तरह सरकार को ललकारा ये हिम्मत कितनों में हो सकती है?.

घायल माँ की खबर नेहरू को जेल में तीसरे दिन मिली .नेहरूजी विक्षिप्त से हो गए थे. ब्रिटिश पुलिस के डण्डों से बुरी तरह घायल माँ स्वरुप रानी ने अपने बेटे जवाहर को जेल में ख़त भेजा था ,जो माँ पर हुए इस भयानक हमले की ख़बर से टूटे हुए थे , स्वरुप रानी ने लिखा था —

–” मुझे गर्व है मैंने ये मार अपनी मातृभूमि के लिए खाई है …जब ये हो रहा था , मैं तुम्हारे और तुम्हारे पिताजी के बारे में सोच रही थी और इसलिए मुँह से आह तक न निकली ….बहादुर बेटे की मां को
कुछ तो अपने बेटे जैसा होना चाहिए।…”

अगर ब्रिटिश पुलिस स्वरूप रानी के सर पर निरंतर डंडे प्रहार न करते तो वो बाद में ‘ ब्रेन इंज्युरी ‘
की वजह से न तो पहले शय्याग्रस्त होती और न ही उनकी मृत्यु होती .वो भी देश के लिए शहीद हुईं .

वो दिन दस जनवरी था . मुझे लगता है हमें दस जनवरी को नाम आँखों से उस माँ का भी स्मरण करना चाहिए जिसका बेटा जेल में हो और जो ख़ुद जलियांवाला बाग़के लोगों के लिए लड़ते लाठियां खाकर पहले मरणासन्न हुई और बाद में शहीद हुई .

लेखक- अपूर्व गर्ग