रायपुर. हिंदू धर्म में प्राचीन काल से माथे पर तिलक लगाने का बहुत महत्व रहा है. माना जाता है माथे पर तिलक लगाने से पॉजिटिविटी आती है और कुंडली में मौजूद ग्रह दोष शांत होते हैं. इसी वजह से कोई भी धार्मिक मांगलिक कार्य बिना तिलक के पूरा नहीं होता. हिंदू धर्म कथाओं में तिलक लगाने के कई फायदे बताए गए हैं. यदि आप हल्दी से माथे या शरीर के कुछ विशेष स्थानों पर तिलक लगाती हैं तो जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहती है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार के अनुसार हल्दी का तिलक माथे के साथ गर्दन पर लगाना भी विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
गर्दन पर हल्दी का तिलक लगाने से मिलता है बृहस्पति का आशीर्वाद
ज्योतिष की मानें तो हर एक सामग्री से और किचन में इस्तेमाल होने वाले मसालों का संबंध किसी न किसी ग्रह से जरूर होता है और उन्हें मजबूत करने के लिए इन्हीं सामाग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। बृहस्पति ग्रह को ऊर्जा ज्ञान, आध्यात्मिक विकास और प्रचुरता की खोज से झोपड़ा जाता है। गर्दन पर हल्दी का तिलक लगाकर, लोग बृहस्पति के आशीर्वाद का आह्वान करते हैं, इसके गुणों को अपने जीवन में स्वीकार करते हैं। हल्दी का तिलक शरीर के सभी चक्रों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है.
गर्दन शरीर का एक ऐसा स्थान है जो सिर और हृदय के बीच एक पुल की तरह काम करता है। यह संचार और अभिव्यक्ति से गहरा संबंध रखती है। हल्दी का महत्व इस क्षेत्र तक भी फैला हुआ है। शरीर के चक्रों के दायरे में, गले में विशुद्ध चक्र होता है, जो आत्म-अभिव्यक्ति, प्रामाणिकता और रचनात्मकता से जुड़ा होता है। हल्दी के प्रयोग को शरीर के इस चक्र को संतुलित और सक्रिय करने, स्पष्ट और अधिक प्रभावी संचार को बढ़ावा देने में मदद करता है। साथ ही, इससे शरीर के अन्य चक्रों को भी मजबूत बनाने में मदद मिलती है।
शरीर के इन हिस्सों में भी लगाया जाता है हल्दी का तिलक
हल्दी का तिलक माथे पर लगाना सबसे शुभ माना जाता है और इससे मानसिक शांति के साथ सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। हल्दी का तिलक मस्तक के बीचो-बीच लगाया जाता है जिससे यह शरीर के 7 चक्रों को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही नाभि में हल्दी का तिलक लगाने से शरीर को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है। यदि आप भी गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों में हल्दी का तिलक लगाती हैं तो आपको समस्त दोषों से मुक्ति मिलती है और ज्योतिष के अनुसार इसके कई लाभ होते हैं। गर्दन पर हल्दी लगाने की प्रथा केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि इससे होने वाले लाभ इसे एक अनिवार्य प्रक्रिया के रूप में दिखाता है।
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