पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। आड़पाथर नाला पर स्वीकृत 48 लाख का पुल आरईएस विभाग की लापरवाही की भेंट चढ़ गया. 14 महीने पहले नींव खोद कर विभाग भूल गया. अब बरसात में आवाजाही की दिक्कत ग्रामीण झेल रहे हैं, लेकिन विभाग के जिम्मेदारों को इस बात से कोई परवाह नहीं है. लाखों रूपये पानी में बहता दिख रहा है.

दरअसल, खजूरपदर आड़पाथर से मुड़ागांव मार्ग के बीच मे पड़ने वाले बरसाती नाला पर 14 अप्रेल 2021 में 48 लाख रुपये के पूल की मंजूरी मिली थी. देवभोग अस्पताल और मुख्यालय आवाजाही करने उस इलाके ग्रामीण इसी मार्ग का इस्तेमाल करते हैं. ग्रामीणों की मांग पर जिला पंचायत अध्यक्ष स्मृति ठाकुर की अनुशंसा पर मनरेगा योजना के तहत जिला पंचायत से इसकी मंजूरी मिली थी.

निर्माण कार्य की जिम्मेदारी आरईएस(ग्रामीण सेवा यांत्रिकी) विभाग को दिया गया था. विभाग ने कड़ी मशक्कत के बाद काम शुरू करवाने के नाम पर मई 2021 में नींव की खुदाई करवाया. नींव खुदाई के 14 माह बाद भी उसके आगे काम नहीं करा सका है. इससे छात्रों को भी आने जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन विभाग के जिम्मेदार मलाई छानने में लगे हैं.

खजूरपदर सरपंच प्रतिनिधि धरामसिंह नागेश ,वरिष्ठ ग्रामीण रामकुमार नागेश ने कहा की पुलिया की स्वीकृति सुविधा के लिए होती है, लेकिन विभाग की मनमर्जी के चलते यह हमारे लिए दुविधा बन गया है. 8 किमी पड़ने वाला देवभोग पहुंचने अब दूसरे रास्ते से 20 किमी की दूरी तय करनी होती है. खोदे गए गढ्ढ़े से आये दिन दुर्घटनाएं हो रही है. गांव से प्रतिनिधि मंडल कई बार जिला पंचायत जाकर इस समस्या से अफसरों को अवगत कराए, लेकिन काम साल भर से उसी स्थिति में पड़ा है.

मामले में विभाग के EE अरुण वर्मा ने कहा कि मटेरियल सप्लाई के लिए सप्लायर संतोष चौहान से अनुबंध हुआ था. उसने समय पर सप्लाई नहीं किया. उसका अनुबंध निरस्त कर उसके खिलाफ कार्रवाई जा रही है. अनुबंध प्रक्रिया प्रक्रियाधीन है. बारिश के बाद काम शुरू कर दिया जाएगा.

विभाग काम को भूल गया
48 लाख के इस अधूरे पूल को विभाग पूरी तरह से भूल चुका है. भगवान भरोसे छोड़े गए इस पूल की स्वीकृति व कार्य की जानकारी के लिए विभाग से जानकारी मांगी गई. विभाग के ई ई ई अरुण वर्मा,एसडीओ विजय देवांगन ने विस्तृत जानकारी नहीं होना बता कर इंजीनियर गुप्तेश्वर साहू का नम्बर दिया.

इंजीनियर ने पहले दिन कोल नहीं उठाया. दूसरे दिन भी लगातार जानकारी के लिए 8 बार कॉल किया गया, लेकिन इंजीनियर ने फोन रिसीव नहीं किया. नम्बर बदल कर जब इस प्रतिनिधि ने दूसरे नम्बर से बात किया तब जाकर इंजीनियर साहब से बात हो सकी. पहले तो इंजीनियर ने भी मामले से अनभिज्ञता जाहिर किया फिर थोड़े देर बाद कोल कर आधी अधूरी जानकारी ही दे सके. अफसरों से बातचीत से ऐसा लगता है कि वे 48 लाख के पुल के लिए नींव खुदाई कर अपनी जिम्मेदारी इतिश्री कर लिया है.

सप्लायर पर मेंहरबान है विभाग
ई ई साहब ने जिस सप्लायर संतोष चौहान का नाम लिया है. वे नगरी के है।पिछले 3, 4 साल में विभाग के ज्यादातर सप्लाई का काम इन्हीं महोदय को मिला हुआ है. अधूरे वन धन भवन के लिए विभाग ने पहले भी सप्लायरों को दोषी बता कर कार्रवाई कि बात कह चुके हैं, लेकिन अब तक समय पर मटेरियल सप्लाई नहीं करने के किसी भी मामले में विभाग अपने इस चहते सप्लायर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

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