रोहित कश्यप, मुंगेली। विकासखंड शिक्षा कार्यालय मुंगेली में पदस्थापना को लेकर एक गंभीर मामला सामने आया है, जो सीधे तौर पर शासन के नियमों, वित्तीय जवाबदेही और अधिकारियों की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है। यहां कार्यरत एक सहायक विकासखंड शिक्षा अधिकारी ने शिक्षा विभाग के उच्च अफसर और कलेक्टर को शिकायत पत्र सौंपते हुए स्पष्ट आरोप लगाया है कि विभाग में नियमों की अनदेखी करते हुए बिना किसी विधिवत शासन आदेश के मनमानी पदस्थापनाएं की जा रही है।

दो-दो BEO एक ही कुर्सी पर

पिछले पांच वर्षों से विकासखंड शिक्षा कार्यालय मुंगेली में एक असामान्य स्थिति बनी हुई है। शिकायतकर्ता का कहना है कि सहायक विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी के रूप में वह 2015 से इस पद पर कार्यरत हैं और उन्हें फीडिंग कैडर में वरिष्ठता के साथ पदोन्नति की पात्रता प्राप्त है। वहीं आरोप लगाया गया है कि जितेन्द्र कुमार बावरे मूल रूप से प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं, जिन्हें जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा बिना किसी स्पष्ट शासनादेश के विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी (BEO) का प्रभार सौंप दिया गया है, जबकि छत्तीसगढ़ शासन के राजपत्र (2019) में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि यदि फीडिंग कैडर में पात्र अधिकारी उपलब्ध हों तो BEO का पद उन्हीं में से भरा जाएगा। केवल ऐसी स्थिति में, जब कोई पात्र न हो, तब कम से कम 5 वर्ष का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ प्राचार्य को अस्थायी रूप से पदस्थ किया जा सकता है।

आपत्तिकर्ता ने उठाया सवाल

आपत्तिकर्ता द्वारा सवाल उठाया गया है कि जब दो पात्र सहायक विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी पहले से कार्यरत हैं तो प्राचार्य को यह जिम्मेदारी किस आधार पर सौंपी गई? जबकि कई विद्यालय आज भी शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं और प्रभार में संचालित हो रहे हैं, ऐसे में एक प्राचार्य को उनके मूल पदस्थापना स्थान के लिए कार्यमुक्त न करते हुए बीईओ के रूप में प्रभार देना न सिर्फ तर्कहीन, बल्कि पद के दुरुपयोग का मामला नजर आ रहा है।

गंभीर वित्तीय अनियमितता ?

यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि यह मामला शासन की वित्तीय नीति और बजट प्रबंधन पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। यदि विगत पांच वर्षों से एक ही पद के लिए दो-दो अधिकारियों को समान दायित्वों के साथ नियुक्त किया गया है तो सवाल उठता है कि संलग्न BEO का वेतन कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य पद से क्यों निकाला जा रहा है? यदि वे विद्यालय से वेतन ले रहे हैं, लेकिन कार्य जिला कार्यालय में कर रहे हैं तो क्या उन्हें बिना वास्तविक कार्य के वेतन दिया जाना सीधे तौर पर सरकारी धन की बर्बादी नहीं है? और अब यह तथ्य भी सामने आया है कि जितेन्द्र कुमार बावरे विगत वर्षों में JD कार्यालय बिलासपुर में अटैच रहे हैं। तो सवाल ये उठता है कि प्रतिनियुक्ति, अटैचमेंट, और बिना आदेश के प्रभार? क्या यह पूरी प्रक्रिया वैधानिक है? क्या यह विभागीय प्रथा बनती जा रही है कि अधिकारी जहाँ चाहें वहाँ अटैच हो जाएं और वेतन किसी अन्य जगह से लेते रहें?

नियुक्ति प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह ?

सबसे बड़ा आरोप यह है कि जितेन्द्र कुमार बावरे को BEO का प्रभार सौंपे जाने के लिए कोई विधिवत शासनादेश नहीं है। शिकायतकर्ता जो स्वयं फीडिंग कैडर में वरिष्ठ अधिकारी हैं और जिनके पास दस वर्षों का प्रशासनिक अनुभव है, जिसे नजरअंदाज कर प्रभार सौंपना नियम विरुद्ध प्रतीत होता है। सामान्य प्रशासन विभाग का आदेश (2014) भी स्पष्ट करता है कि वरिष्ठता की उपेक्षा कर किसी कनिष्ठ अधिकारी को प्रभार सौंपना केवल तभी उचित माना जाएगा जब कोई ठोस प्रशासनिक कारण हो।

त्रिस्तरीय विसंगति ?

इस मामले में गंभीर आरोप और शिकायत ये है कि पूर्व में पदस्थ BEO डॉ. प्रतिभा मंडलोई, जिनका उच्च न्यायालय द्वारा जारी स्टे आदेश प्रभाव में था, जिनके स्थानांतरण के बाद नियमतः बावरे की नियुक्ति का आदेश स्वतः ही प्रभावहीन हो जाना चाहिए था। ऐसे में बिना नवीन शासनादेश के उन्हें BEO मानते हुए कार्यमुक्त करना और वरिष्ठ अधिकारी को दरकिनार कर उन्हें बीईओ की पद पर बैठाना, DEO की मनमानी का परिचायक है। इसके अलावा JD कार्यालय बिलासपुर में सलग्न रहते हुए विद्यालय से वेतन लेना और साथ ही BEO का प्रभार निभाना यह व्यवस्था त्रिस्तरीय विसंगति को जन्म देती है।

क्या होगी कार्रवाई?

अब देखना यह है कि क्या जिला प्रशासन इस गंभीर शिकायत पर कोई ठोस कार्यवाही करता है या यह मामला भी उन फाइलों की भीड़ में गुम हो जाएगा। क्या शासन के पैसों की बर्बादी, नियमों की अनदेखी और वरिष्ठ अधिकारियों की उपेक्षा अब केवल एक पद के लिए “सामान्य” प्रक्रिया बनती जा रही है?

जिला शिक्षा अधिकारी ने कही ये बात

इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी सीके धृतलहरे का कहना है कि जितेंद्र कुमार बावरे की पोस्टिंग बीईओ के रूप में मुंगेली में पदस्थापना 2019 में हुई थी, जिसके बाद प्रतिभा मंडलोई (जितेंद्र बावरे से पहले जिनकी पोस्टिंग थी) ने हाईकोर्ट में अपनी सीनियरिटी का हवाला देते हुए याचिका दायर किया, जिस पर हाईकोर्ट ने स्टे एवं यथावत बने रहने का आदेश दिया। इसके बाद जितेंद्र कुमार ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए प्रतिभा मंडलोंई को 6 माह का बीईओ शिप करने के बाद प्रभार सौंप दिया। करीब 5 साल तक प्रतिभा मंडलोई ने बीईओ के रूप में कार्य किया, अब उनका स्थानांतरण पथरिया बीईओ के रूप में हो गया है, जिससे मुंगेली बीईओ का पद खाली हो गया, जिसके चलते जितेंद्र कुमार बावरे को बीईओ के रूप में उपस्थिति देने निर्देशित किया गया, जो पूर्णतः वैधानिक है। क्योंकि जितेंद्र कुमार की पदस्थापना शासन स्तर से आज भी बीईओ के रूप में है। इस बीच उच्च कार्यालय से उनको लेकर कोई नया या संशोधित आदेश नहीं आया है। चूंकि बीईओ के रूप में कोई एक ही काम कर सकता है इसलिए प्रतिभा मंडलोई जब तक यहां बीईओ रही, जितेंद्र कुमार की उपस्थिति व्यवस्था के तहत डीईओ कार्यालय में लिया जा रहा था।