देवपूजा पूर्व या उत्तरमुख होकर और पितृपूजा दक्षिणमुख होकर करनी चाहिए. यदि संभव हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें. नीला, लाल अथवा काला वस्त्र पहनकर और बिना धोया हुआ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की उपासना करने वाला दोषी माना जाता है, और उसका पतन निश्चित ही होता है.

महिलाओं को केश खोलकर आचमन और देवपूजन नहीं करना चाहिए. तांबे के पात्र में रखकर जो वस्तु भगवान को अर्पण की जाती है, उससे भगवान को बड़ी प्रसन्नता होती है. घर में टूटी-फूटी अथवा अग्नि से जली हुई प्रतिमा की पूजा नहीं करनी चाहिए. ऐसी मूर्ति की पूजा करने से गृहस्वामी के मन में उद्वेग या अनिष्ट होता है.

घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्रऔर दो शालग्राम का पूजन नहीं करना चाहिए. इनका पूजन करने से गृहस्वामी को दु:ख, अशान्तिकी प्राप्ति होती है. सूर्य को नमस्कार प्रिय है, विष्णु को स्तुति प्रिय है, गणेश को तर्पण प्रिय है, दुर्गा को अर्चना प्रिय है और शिव को अभिषेक प्रिय है. अत: इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिये इनके प्रिय कार्य ही करने चाहिए.

घी का दीपक देवता के दायें भाग में और तेल का दीपक बायें भाग में रखना चाहिए. जल पात्र, घंटा, धूपदानी जैसी चीजें हमेशा बाईं तरफ रखनी चाहिए. एक दीपक से दूसरा दीपक, धूप या कपूर कभी न जलाएं. प्रदक्षिणा, प्रणाम, पूजा, हवन, जप और गुरु तथा देवता के दर्शन के समय गले में वस्त्र नहीं लपेटना चाहिए.

शिव जी को विल्व पत्र, विष्णु को तुलसी, गणेश जी को हरी दूर्वा, दुर्गा को अनेक प्रकार के पुष्प और सूर्य को लाल कनेर के पुष्प प्रिय हैं. शिवजी को केतकी के पुष्प, विष्णु को धतूरा और देवी को आक के पुष्प नहीं चढ़ाए जाते. पूजन में किसी सामग्री की कमी होने पर उसके स्थान पर अक्षत या फूल चढ़ा दें. शास्त्रों में मानस पूजा को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है अत: कल्पना द्वारा हर प्रकार के सुंदर पूजन से भी भगवान प्रसन्न होते हैं.

पूजाघर में मूर्तियाँ 1, 3, 5, 7, 9,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी, सरस्वती जी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियां घर में नहीं होनी चाहिए. मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें व आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता -पिता व पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें.