नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने मंगलवार (9 सितंबर, 2025) को स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 200 में यथाशीघ्र शब्द का उल्लेख न होने के बावजूद, राज्यपालों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे उचित समय के भीतर विधेयकों पर निर्णय लें। यह बयान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू(Draupadi Murmu) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में भेजे गए प्रेजिडेंशियल रेफरेंस(Presidential Reference) की सुनवाई के दौरान आया। इस रेफरेंस में राष्ट्रपति ने 14 सवाल कोर्ट के समक्ष रखे थे, जिनमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर समयसीमा निर्धारित करने के विषय पर आपत्ति जताई गई थी। राष्ट्रपति ने 8 अप्रैल के फैसले को लेकर यह रेफरेंस भेजा था, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधेयकों पर तीन महीने की समयसीमा तय करने का प्रस्ताव शामिल था।

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सुप्रीम कोर्ट में प्रेजिडेंशियल रेफरेंस की सुनवाई के दौरान बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का भी उल्लेख किया गया। आरिफ मोहम्मद खान 2019 से जनवरी 2025 तक केरल के राज्यपाल रहे। केरल सरकार का आरोप है कि उनके कार्यकाल के दौरान कई मामलों में मतभेद उत्पन्न हुए और उन्होंने कुछ विधेयकों को लंबी अवधि तक लटकाए रखा।

प्रेजिडेंशियल रेफरेंस की सुनवाई के दौरान मंगलवार को आरिफ मोहम्मद खान का नाम चर्चा में आया। केरल सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट के.के. वेणुगोपाल ने बताया कि राज्य के पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने विधेयक प्राप्त होने पर उन्हें संबंधित मंत्रालयों को भेजने की प्रथा अपनाई थी। इस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा, “हम व्यक्तिगत मामलों पर निर्णय नहीं लेंगे।”

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सुप्रीम कोर्ट में चल रहे प्रेजिडेंशियल रेफरेंस में अनुच्छेद 200 का भी उल्लेख किया गया है। यह अनुच्छेद राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियों को नियंत्रित करता है। अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को विधेयक को मंजूरी देने, रोकने, पुनर्विचार के लिए वापस भेजने या उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखने का अधिकार होता है। सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर सुनवाई कर रहा है कि क्या अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समयसीमा लागू की जा सकती है।

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की, ने प्रेजिडेंशियल रेफरेंस की आठवीं दिन की सुनवाई में कहा कि वह सिर्फ संविधान की व्याख्या करेगी, न कि व्यक्तिगत मामलों के तथ्यों की पड़ताल। बेंच ने विभिन्न पक्षों की दलीलें सुनते हुए यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों और समयसीमा पर कानूनी स्पष्टता देना है, न कि किसी पूर्व राज्यपाल या उनके कार्यकाल से जुड़े व्यक्तिगत विवादों पर निर्णय लेना।

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क्या कहता संविधान का अनुच्छेद-200?

सुप्रीम कोर्ट में प्रेजिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया गया कि अदालत राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर समय-सीमा निर्धारित कर सकती है या नहीं, इस संवैधानिक मसले पर विचार करेगी। अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान के अनुसार, राज्यपाल विधेयक को स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किए जाने के बाद यथाशीघ्र विधानसभा में पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं, बशर्ते वह मनी बिल न हो। यदि विधानसभा से विधेयक वापस भेजा जाता है, तो राज्यपाल को बिल को मंजूरी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का उद्देश्य इसी संवैधानिक प्रक्रिया पर स्पष्टता प्रदान करना है, न कि व्यक्तिगत मामलों की पड़ताल करना।

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सुप्रीम कोर्ट में प्रेजिडेंशियल रेफरेंस की सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 200 में ‘यथाशीघ्र’ शब्द रखा है और विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए तीन महीने की समय-सीमा निर्धारित करने में अदालत के लिए कोई बाधा नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, “अगर यथाशीघ्र शब्द न भी हो, तो भी राज्यपाल से उचित समय के भीतर कार्रवाई करने की अपेक्षा की जाती है।”

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