छत्तीसगढ़ में अभिवादन का सबसे सार्थक, सरल, आदर्श और आदरसूचक शब्द है राम राम। यहां का राम राम किसी राजनीतिक दल, धर्म, पंथ, जाति समुदाय या व्यक्ति विशेष पेटेंट शब्द नहीं है, बल्कि अनहद नाद की तरह आम जनमानस के हृदय से सतत निकलने वाली निश्च्छ्ल अविरल, निर्विवाद प्रेम की धारा है। प्रदेश के ज्यादातर गांव में सभी जाति और वर्ग के लोग इसे बखूबी आत्मसात किए हुए हैं। वे जब भी मिलते हैं या विदा लेते हैं, तो एक दूसरे को राम राम बोलकर ही अभिवादन करते हैं या विदाई देते हैं, इसलिए नहीं की वे सभी हिंदू या कट्टर हिंदू हैं, बल्कि इसलिए वे छत्तीसगढ़ के उस संस्कृति का हिस्सा है जहां के सभी समाज मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र को एक आदर्श पुरुष मानता है। छत्तीसगढ़िया के दृष्टिकोण में श्रीरामचंद्र का व्यक्तित्व एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पिता, आदर्श पति और एक आदर्श राजा का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसे यहां के बाशिंदे आत्मसात किए हुए हैं। श्रीराम चंद्र ने एक आदर्श समाज की परिकल्पना की और उसे मूर्त रूप दिया।
श्रीरामचंद्र ने अपने निजी स्वार्थ और परिवारिक सुख को त्यागकर विषम परिस्थितियों में भी अपना राजधर्म निभाया। श्री रामचंद्र के राज धर्म में पहली प्राथमिकता प्रजा के संवैधानिक व न्यायिक अधिकार थी। छत्तीसगढ़ में उसी रामराज की परिकल्पना लोग आज भी करते हैं। समाज की इकाई परिवार है और छत्तीसगढ़ का प्रत्येक परिवार में राम जैसा पुत्र और सीता जैसी पुत्रवधू की कामना है। ग्रामीण अंचल में श्री रामचरितमानस का पठन-पाठन, गायन वादन और विविध आयोजन, सामाजिक समरसता, आदर्श समाज और सांस्कृतिक उत्थान के लिए अत्यंत आवश्यक मानकर किया जाता है।
पौराणिक कथाओं इतिहासकार और शिक्षाविद की माने तो छत्तीसगढ़ श्रीराम का ननिहाल है। छत्तीसगढ़ वासियों का श्रीराम भांजा है। भगवान श्रीराम की माता कौशल्या छत्तीसगढ़ वासियों की बेटी या बहन है। पूरे देश में माता कौशल्या का एकमात्र मंदिर चंदखुरी रायपुर में है, जिसे सातवीं शताब्दी में बनाया गया था।
छत्तीसगढ़ से भगवान श्रीराम का ना केवल ननिहाल का बल्कि एक और मानवता का नाता है। जिसमें वह वनवास अवधि में बहुत समय दंडकारण्य के जंगलों में बिताएं, भगवान जब प्रारब्ध के अनुरूप अपने जीवन के संकल्प काल में जूझ रहे थे, तब छत्तीसगढ़ वासी उनके साथ थे।
भगवान श्रीराम जब वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ आए तो कोरिया से प्रवेश कर रायगढ़, सरगुजा, जशपुर, जांजगीर-चांपा, बिलासपुर, बलौदा बाजार, रायपुर, गरियाबंद, धमतरी, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर दंतेवाड़ा, बस्तर जिला होते हुए वनांचल के अंचल के सुकमा से दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किये। यहां बलौदा बाजार जिले के तुरतुरिया में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम रहा, जहां भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ। कालांतर में लव और कुश को भगवान श्री राम के साम्राज्य का उत्तर और दक्षिण हिस्सा विरासत में मिला। उत्तरी हिस्सा लव को और दक्षिणी हिस्सा कुश को मिला जो बाद में दक्षिण कौशल के नाम से विख्यात हुआ, जो आज छत्तीसगढ़ का वर्तमान स्वरूप है। कुछ इतिहासकारों की मानें तो शिवनाथ नदी के उत्तर दिशा लव और दक्षिण दिशा कुश को मिला था।
पौराणिक काल से वर्तमान परिदृश्य में भी यदि देखें तो छत्तीसगढ़वासियों का भगवान श्रीराम से ना केवल पुराना नाता है बल्कि उनसे अटूट प्रेम है। भगवान श्री राम का ननिहाल होने के कारण छत्तीसगढ़ के लोग अपने भांजे को भगवान मानकर पैर धोते हैं और चरणामृत लेते हैं। यहां भांजा और गुरु का समान ही स्थान है, जिसके कारण प्रत्येक छत्तीसगढ़िया जन्म से लेकर मृत्यु तक के विभिन्न न संस्कारों में भांजे को सर्वोच्च स्थान देता है। भांजे का उनके घर में भगवान का आगमन माना जाता है। गर्मी के दिनों में भांजे के घर में पानी पिलाने के लिए मामा की घर की ओर से ग्वाले को रखे जाने की बहुत प्राचीन परंपरा है। व्यक्ति की मृत्यु होने पर गुरु के समान दक्षिणा भांजे के परिवार को दिया जाता है। छत्तीसगढ़ के एक विशेष क्षेत्रों में भगवान श्रीराम के ऐसे अनुयाई भी हैं, जो शरीरभर में श्रीराम नाम गुदवाकर आस्था का अलग ही परिभाषा प्रस्तुत कर रहे हैं। इनकी संस्कृति की एक अलग ही पहचान है।
वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी सरकार श्रीराम के आदर्श और छत्तीसगढ़ से भगवान के नाते को छत्तीसगढ़ी नहीं अपितु समूचे दुनिया के मानस पटल पर रेखांकित करना चाहती हैं। इसके लिए श्रीराम वन गमन मार्ग तैयार किया जा रहा है। जिसमें 51 प्रमुख स्थान जहां भगवान श्रीराम अपना समय बिताएं थे, उन स्थानों को विकसित किया जा रहा है। इससे भगवान श्रीराम के चरित्र के साथ साथ ऐतिहासिक जानकारी भी आम लोगों को मिलेगी।इसमें प्रमुख रूप से माता कौशल्या का भव्य मंदिर निर्माण चंदखुरी रायपुर में किया जा रहा है। रामायण, श्री रामचरितमानस और उसके पात्रों के चरित्र का छत्तीसगढ़ में महत्वपूर्ण प्रभाव है।
ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, पतिव्रता, एक पत्नी व्रत, राजधर्म आज्ञाकारी पुत्र व भाई, मित्रता स्वामी भक्ति, कर्तव्य परायणता का सुंदर उदाहरण यहां के लोग श्रीरामचरितमानस से ही लेते हैं। यहां की मिट्टी ही ऐसी है, जो हर कला, संस्कृति, जन समुदाय को बड़ी ही सहजता और उदारता के साथ उसे स्थान देती। किस राज्य में आने वाला व्यक्ति कौन हैं, उसका इतिहास क्या है, उसका उद्देश्य और पृष्ठभूमि जाने बगैर ही यहां के बाशिंदे उसे अपने भाई बंधु और इस धरती मां की ही संतान समझकर अपना लेते हैं, मानो अतिथि देवो भव के अमृतवाणी को पूर्ण तरह चरितार्थ करते हैं।
छत्तीसगढ़िया सरल और सीधा होता है। जिसने भी यहां आकर छत्तीसगढ़ की संस्कृति को आत्मसात किया वह भी छत्तीसगढ़िया संस्कृति में रम जाता है। यहां की मिट्टी का रंग ऐसा है कि यहां आने वाला हर कोई छत्तीसगढ़वासियों की तरह ही भगवान श्रीराम को अपना आदर्श मान लेता है।
वर्तमान भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ी, कला, संस्कृति और छत्तीसगढ़िया अस्मिता को पुनर्स्थापित करने में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। वैश्विक महामारी कोविड-19 कि विश्वव्यापी समस्या के कुप्रभाव को यदि नजरअंदाज करें, तो वर्तमान भूपेश सरकार राष्ट्र के आधार स्तंभ अन्नदाताओं का लगातार मान बढ़ा रही है। अन्नदाता के मान बढ़ने और सरकार की सकारात्मक नीतियों से छत्तीसगढ़ में किसान के अलावा उनसे जुड़े सभी वर्ग के व्यापारी, मजदूर, महिला, युवा अपने स्वर्णिम भविष्य को लेकर उत्साहित और आशान्वित हैं।
सरकार को चाहिए की राम राज्य की परिकल्पना इस तरह से करे कि सबके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो। भावी योजना छत्तीसगढ़ के तासीर के अनुसार बनाए ताकि यहां के रामानुरागी सरल, सभ्य और भोले-भाले लोगों को उनका वास्तविक अधिकार मिल सके। नक्सलवाद की कलंक को मिटाते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं को लेकर जमीनी स्तर पर काम हो तभी छत्तीसगढ़ में रामराज का सपना साकार होगा।
लेखक- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी शोध पीठ के अध्यक्ष एन.डी. मानिकपुरी
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