रायपुर। “सूरा सो पहचानिये, जो लरै दीन के हेत।
पुरजा-पुरजा कट मरै, कबहूँ न छाड़ै खेत॥”
— गुरु गोबिंद सिंह। यह पंक्तियां केवल वीरता का श्लोक नहीं, बल्कि उस जीवन-दर्शन का घोष हैं, जिसमें सत्य, धर्म और मानवता के लिए सर्वस्व अर्पण कर देना ही सर्वोच्च कर्तव्य माना गया है। आज जब हम वीर बाल दिवस के अवसर पर इतिहास की ओर दृष्टि डालते हैं, तो यह पंक्तियाँ अपने आप में जीवंत हो उठती हैं।

वीर बाल दिवस का दिन उन नन्हे-नन्हे दीपों की स्मृति है जिन्होंने अंधकार के सबसे घने क्षणों में भी सत्य का प्रकाश बुझने नहीं दिया—साहिबज़ादा जोरावर सिंह और साहिबज़ादा फतेह सिंह से जुड़ी बलिदान की यह अमर कथा सिख इतिहास का एक ऐसा अध्याय बना है जो केवल किसी परिवार की पीड़ा नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की चेतना का हिस्सा है। मुगल शासन के अत्याचारों के बीच जब धर्मांतरण के लिए दबाव और भय का वातावरण था, तब गुरु गोबिंद सिंह जी के इन दोनों छोटे पुत्रों ने अपने विश्वास से समझौता नहीं किया।

इतिहास गवाह है कि मुगल सूबेदार वज़ीर खान के दरबार में उन्हें बार-बार प्रलोभन और धमकी दी गई, परंतु उनकी बालसुलभ दृढ़ता पर्वत-सी अडिग रही। उस समय मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासन में अत्याचार आम बात थी। जिस क्रूरता के साथ इन बालकों को दीवार में जीवित चुनवाया गया, वह मानव इतिहास के सबसे अमानवीय अध्यायों में से एक है। नौ और छह वर्ष की आयु में धर्म और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए दिया गया यह बलिदान, हमें यह सिखाता है कि साहस उम्र का मोहताज नहीं होता।

गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े पुत्र युद्धभूमि में शहीद हुए। छोटे पुत्रों की शहादत का आघात इतना गहरा था कि माता गुजरी ने भी अपने प्राण त्याग दिए। यह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं थी बल्कि यह उस युग का उद्घोष था कि अन्याय के सामने झुकना पाप है, चाहे कीमत कितनी ही बड़ी क्यों न हो। यही कारण है कि वीर बाल दिवस हमें केवल इतिहास नहीं सुनाता, बल्कि वर्तमान को दिशा देता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता सहज प्राप्त नहीं हुईं—इनके पीछे असंख्य बलिदानों की राख और रक्त मिला है।

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2022 से 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय, केवल एक औपचारिक घोषणा नहीं थी। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 9 जनवरी 2022 को की गई यह घोषणा, नई पीढ़ी के लिए इतिहास को वर्तमान से जोड़ने का प्रयास है। इसका उद्देश्य स्पष्ट है—बच्चों और युवाओं को सत्य, धर्म, साहस और देशभक्ति के मार्ग पर प्रेरित करना।आज देशभर में आयोजित कार्यक्रम, वाद-विवाद, निबंध, नाट्य-प्रस्तुति और बाल कल्याण से जुड़े अभियान इस बात का संकेत हैं कि यह दिवस केवल स्मरण नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का उत्सव बन चुका है।

आज का युग तलवारों और युद्धघोषों का नहीं बल्कि विचारों, नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व का है। आज वीरता का अर्थ है—भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ा होना, झूठ और नफरत के विरुद्ध सत्य का पक्ष लेना, और कमजोर की रक्षा के लिए अपनी सुविधा त्याग देना।साहिबज़ादों का बलिदान हमें सिखाता है कि जब मूल्यों की परीक्षा हो, तब समझौता नहीं, बल्कि संकल्प आवश्यक है। आज जब सोशल मीडिया के शोर, उपभोक्तावाद और तात्कालिक लाभ की संस्कृति हमें विचलित करती है, तब वीर बाल दिवस हमें याद दिलाता है कि चरित्र और साहस ही किसी राष्ट्र की असली पूंजी हैं।

वीर बाल दिवस का सबसे बड़ा उद्देश्य नई पीढ़ी को प्रेरित करना है। यह दिन बच्चों को बताता है कि वे केवल भविष्य नहीं, बल्कि वर्तमान की भी शक्ति हैं। साहिबज़ादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह की कथा यह सिखाती है कि सत्य का साथ देने के लिए शारीरिक शक्ति नहीं, बल्कि नैतिक दृढ़ता चाहिए।समाज के रूप में हमारा दायित्व है कि हम इस प्रेरणा को केवल भाषणों तक सीमित न रखें। शिक्षा, समान अवसर, बाल संरक्षण और नैतिक मूल्यों के संवर्धन के माध्यम से ही हम इन बलिदानों को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

इतिहास से कटे हुए राष्ट्र दिशाहीन हो जाते हैं। वीर बाल दिवस जैसी स्मृतियाँ हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं और यह विश्वास दिलाती हैं कि भारत की आत्मा त्याग और साहस से निर्मित है। जब हम इन बलिदानों को याद करते हैं, तो हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि हम विभाजन, घृणा और अन्याय के विरुद्ध एकजुट रहेंगे। आज की चुनौतियाँ अलग हैं—पर्यावरण संकट, सामाजिक असमानता, नैतिक पतन—पर इनका समाधान भी वही है जो साहिबज़ादों ने दिखाया: सत्य के प्रति अडिग रहना। वीर बाल दिवस केवल अतीत की कथा नहीं, बल्कि भविष्य का पथ-प्रदर्शक है। साहिबज़ादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह का बलिदान हमें यह सिखाता है कि सच्ची देशभक्ति शोर में नहीं, बल्कि चरित्र में होती है।

जब भी राष्ट्र कठिन मोड़ पर होगा, यह स्मृति हमें कहेगी—डरो मत, झुको मत, सत्य के साथ खड़े रहो। यही वीर बाल दिवस का संदेश है, यही गुरु गोबिंद सिंह जी की वाणी का सार है और यही भारत की आत्मा की पहचान है।
लेखक : संदीप अखिल, सलाहकार संपादक न्यूज 24 मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़/ लल्लूराम डॉट कॉम