रायपुर। छत्तीसगढ़ के शासकीय महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में इन दिनों अतिथि व्याख्याताओं की भर्ती प्रक्रिया चल रही है। यह प्रक्रिया उन युवाओं के लिए उम्मीद का नया अध्याय लिख सकती थी, जिन्होंने कठिन परिश्रम से नेट, सेट, एमफिल और पीएचडी जैसी उपाधि प्राप्त की हैं, लेकिन दुखद है कि इसका लाभ छत्तीसगढ़ के मूल निवासी युवाओं को नहीं मिल रहा है।

अतिथि व्याख्याता नीति में साफ-साफ लिखा है कि राज्य के मूल निवासियों को प्राथमिकता दी जाएगी। सरकार ने भी हमेशा यही कहा कि छत्तीसगढ़ के बेटा-बेटियों को अवसर देकर उन्हें शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ बनाया जाए। पर धरातल की तस्वीर इससे उलट है। कई महाविद्यालयों में बाहर के राज्यों से आए अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि स्थानीय योग्य युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।

यह केवल नौकरी का प्रश्न नहीं है, बल्कि हर छत्तीसगढ़िया की आत्मा से जुड़ा मुद्दा है। “पहिली प्राथमिकता माटी के बेटा-बेटी ला मिलना चाही” जब यह भाव ही उपेक्षित होता है, तो नीति और नीयत दोनों पर सवाल उठना स्वाभाविक है। शिक्षा का असली उद्देश्य तभी पूरा होगा जब शिक्षक स्थानीय समाज, भाषा और संस्कृति को समझते हुए विद्यार्थियों को पढ़ाएं।

आज स्थिति यह है कि मेहनती और योग्य युवा हताशा से घिरते जा रहे हैं। बेरोजगारी का संकट गहराता जा रहा है और आत्मविश्वास टूटता जा रहा है। यह केवल व्यक्तिगत नुकसान नहीं, बल्कि राज्य की प्रगति में भी बाधक है। अगर हम अपने ही शिक्षित युवाओं को अवसर से वंचित करेंगे तो उनका ज्ञान और परिश्रम व्यर्थ चला जाएगा। इसलिए जरूरी है कि सरकार और उच्च शिक्षा विभाग को अतिथि व्याख्याता नीति का अक्षरशः पालन सुनिश्चित करना चाहिए। नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी हो और प्राथमिकता हर हाल में छत्तीसगढ़ के युवाओं को दी जाए। तभी छत्तीसगढ़ महतारी का मान-सम्मान भी सुरक्षित रहेगा और युवाओं की मेहनत को सही मुकाम मिलेगा।

छत्तीसगढ़ के युवाओं में न तो क्षमता की कमी है और न ही संकल्प का अभाव। जरूरत सिर्फ अवसर और भरोसे की है। जब अपने बेटा-बेटी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ाएंगे, तभी शिक्षा व्यवस्था मजबूत होगी और बेरोजगारी की चुनौती पर काबू पाया जा सकेगा। यह केवल एक भर्ती प्रक्रिया नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की अस्मिता, न्याय और समानता की परीक्षा है।

लेखक – समरेंद्र शर्मा, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार, जो प्रिंट-टीवी पत्रकारिता में 25 वर्षों से सक्रिय हैं।