विनोद दुबे, रायपुर। नोटबंदी की आज चौथी बरसी है। आज ही के दिन 8 नवंबर साल 2016 की रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए नोटबंदी का ऐलान किया था। नोटबंदी करने के पीछे भ्रष्टाचार, टेरर फंडिंग जैसी चीजों को रोकना बताया गया था। बगैर तैयारी के की गई नोटबंदी का दुष्प्रभाव आम जनता को बुरी तरह भुगतना पड़ा। आई खबरों के मुताबिक नोटबंदी की वजह से देश भर में 150 से ज्यादा मौत हुई।
भीषण सर्दी में नोटबंदी के दौरान लोगों को अपने पुराने 500 और 1000 के नोटों को बदलने के लिए बैंक के बाहर लंबी लाइन लगाना पड़ा। लाइन में लगे लोगों पर पुलिस की लाठियां तक बरसी। लाइन में लगे-लगे कई लोगों की मौतें तक हो गई। कईयों की शादी टूटी, तो कईयों ने इस निराशा की वजह से आत्महत्या तक कर लिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के जिस पश्चिमी छोर से आते हैं वहां 80 लोगों की मौत होने की बात निकलकर सामने आई। कुछ जगहों से मेडिकल स्टोर और अस्पतालों में पुराना नोट नहीं लेने की वजह से बीमारों को दवाई नहीं मिलने और इलाज नहीं होने की बात भी निकलकर सामने आई थी। मऊ के एक अस्पताल में डॉक्टरों ने पुराने नोट लेने से इंकार कर दिया, जिसकी वजह से एक बच्ची की मौत हो गई थी।
छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे दुर्गम इलाकों में ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक नहीं होने की वजह से आदिवासियों को नोट बदलने के लिए 20 से 40 किलोमीटर पैदल चलने की बातें भी निकलकर सामने आई थी।
500 और 1000 के नोटों को चलन से बाहर करने का असर व्यापार पर भी पड़ा। बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे इसकी वजह से बंद हो गए और लाखों युवाओं पर बेरोजगारी की गाज गिर पड़ी। नोटबंदी का असर इतना भयानक था कि आज तक उद्योग-धंधे और व्यापार इससे उबर नहीं पाया है।
नोटबंदी केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा आम जनता पर थोपा गया एक तरह का आर्थिक आपातकाल था, जिसे खुद भाजपा भी याद करना नहीं चाहती। यही वजह है कि जो भाजपा कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई समेत कई मामलों को आम चुनावों में अपनी उपलब्धि बताने से नहीं थकती थी, उसी भाजपा के नेता चुनावों में नोटबंदी का नाम तक नहीं लिया। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी दुबारा कभी नोटबंदी का नाम तक नहीं लिया होगा। यह नोटबंदी ऐसा दुःस्वप्न है जिसे प्रधानमंत्री भी दुबारा भी देखना पसंद नहीं करेंगे।
नोटबंदी की वकालत करने वालों को जरा पीछे देखना चाहिए और यूट्यूब में मौजूद वीडियो से लेकर गूगल में मौजूद फोटो को देखना चाहिए। नहीं तो कम से कम उन गरीबों के घर जाकर जरुर देखना चाहिए जिन्होंने एक-एक पाई जोड़कर अपने बच्चों के भविष्य, बेटियों की शादी के लिए जमा किये थे, और नोटबंदी ने उन परिवारों के चेहरे से उनकी मुस्कान तक छीन ली।
नोटबंदी के दौरान आने वाली तस्वीरें इतनी भयानक है कि आज भी उन्हें याद कर लोग सिहर जाते हैं। नोटबंदी के दौरान जिन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को खोया, जिसने अपना रोजगार और व्यापार खोया, आज का यह दिन उनके लिए ना भूलने वाली किसी बुरी याद से कम नहीं है।
लेखक – विनोद दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
नोट- यह लेखक के अपने निजी विचार हैं।