छत्तीसगढ़ की विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में स्वास्थ्य और बुनियादी वैज्ञानिक शिक्षा और सेहत को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। ऐसी पहल सही समय पर नहीं होने का खामियाजा सिर्फ छत्तीसगढ़ ने नहीं बल्कि देश के विभिन्न राज्यों और दुनिया ने भी बहुत भोगा है ।सही समय पर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सार्थक पहल न होने के कारण अज्ञानता और कुरीतियों का बोलबाला हो जाता है और साधनहीन गरीब जनता बीमारी एवं समस्याओं के वास्तविक पहलुओं को जान ही नहीं पाती। ऐसे में अंधविश्वास, टोना-टोटका, टोनही प्रताड़ना जैसी प्रथाएं पनपती हैं और धीरे-धीरे समाज की जड़ों में जाकर जम जाती हैं, बाद में जिनका निवारण बहुत मुश्किल हो जाता है इसलिए सही समय पर सही पहल का बहुत महत्व है।
छत्तीसगढ़ तो क्या देश में भी 18 वर्ष की आयु में नवयुवा अपनी स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाते ,उनकी पढ़ाई और कैरियर निर्माण की चिंता में अभिभावक अपने संसाधनों का बड़ा हिस्सा खर्च करते हुए अन्य पारिवारिक-सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते रहते हैं।उनसे अतिरिक्त जिम्मेदारी का बोझ उठाने की उम्मीद करना भी ज्यादती है।
इस तरह युवाओं को ,18 से 44 वर्ष तक के लोगों को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नि:शुल्क टीका लगाने का फैसला सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में श्रेष्ठ निर्णय है। 50लाख डोज का आर्डर देना और इसके लिए 800करोड़ रू.खर्च का इंतजाम करना यह साबित करता है कि राज्य सरकार ने यह निर्णय पूरी प्रतिबद्धता के साथ किया है।अब सवाल यह है कि यदि आवश्यकता की तुलना में उपलब्धता कम हो ,और कुछ अंतराल में सबको टीका लगाया जाना है तो प्राथमिकता किसे क्रयशक्ति संपन्न लोगों को या अधिक जरूरतमंद लोगों को।
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ऐससे में जो पैमाना तय किया है उससे यह स्पष्ट है कि यह आरक्षण नहीं है बल्कि बतौर चिकित्सक मैं कहूंगा कि यह उचित है क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर इस वर्ग के लोगों के पास तो सुरक्षित घर भी नहीं हैं और इनके संक्रमित होने की और इनके जरिए संक्रमण के फैलने की आशंका बहुत होगी. इसलिए मेरी राय में निश्चित ही यह विशेषज्ञ सलाह पर लिया गया विवेकपूर्ण फैसला है.इस फैसले के दूरगामी परिणाम भी होंगे. ये उस तबके की चिंता है जिसकी पहुंच में तमाम सरकारी इंतजाम होने के बावजूद, बहुत अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी नहीं हैं।
हमारे यहाँ एक बड़ी संख्या युवाओं की है जो 18 वर्ष से अधिक और 45 वर्ष से कम आयु के है . जिनमें से अधिकांश अपनी पढ़ाई, कोचिंग, प्रशिक्षण, नौकरी के लिए घर से बाहर निकलते हैं,और आजीविका के लिए काम करने जाते है,लाखों युवक तो काम धंधे के लिए एक से दूसरे शहर भी रोजाना अप डाउन करते है.जिनका स्वास्थ्य एवं सेहत भी इस महामारी के समय संक्रमण के खतरे में है,उनमें से अनेक अपने घर के एकमात्र कमाने वाले हैं जिनके लिए लंबे समय तक घर पर रह पाना कठिन है।
कोविड 19 के लिए वैक्सीनेशन अभियान में युवाओं के लिए यह एक बहुत ही अच्छा कदम होगा . और वे निश्चित रूप से संक्रमण के इस दौर में काफी हद तक सुरक्षित रहेंगे।
कोविड-19की महामारी से निपटने के नाम पर जब बहुत बड़े पैमाने पर संसाधन झोंके जा रहे हों तब 18 वर्ष के युवाओं को टीकाकरण राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक मदद नहीं मिलने के परिदृश्य से एक निराशा का भाव जागा था,जिसे छत्तीसगढ़ सरकार की नि:शुल्क टीकाकरण की पहल से दूर कर दिया। इस तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इस पहल ने सिर्फ युवा-जगत में बल्कि एक पूरे शिक्षा -स्वास्थ्य और जनचेतना के धरातल को नई उम्मीदों से सींचा है, इसके लिए बघेल और उनकी सरकार बधाई की पात्र है।
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