उनकी इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने आधुनिक चिकित्सा पद्धति को अपना कर स्पष्ट संदेश दिया है कि बाकी सब ठीक है पर संकट आये तो तुरंत विज्ञान का रास्ता ही अपनाओ। नित नए अनुसंधानों से समृद्ध आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का विकल्प नहीं हो सकता।

देश में अमित शाह से प्रेरणा लेने वाले हर व्यक्ति के साथ-साथ बाकी सभी से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वह यह जाने कि रास्ता विज्ञान के पास ही है।

बीमारी पर कटाक्ष उचित नहीं है।कटाक्ष के ढेर सारे अवसर राजनीति दे ही देगी,लेकिन अभी यह सोचना चाहिए कि पूरी दुनिया में फ्रंट फुट पर सिर्फ विज्ञान है।

उन नासमझों पर कोई टिप्पणी का औचित्य नहीं है जिन्हें लगता था कि कोरोना ताली-थाली से भाग जाएगा या जिन्हें लगता था कि गो-कोरोना-गो बोलने से कोरोना चीन चला जायेगा।वो सब तो आज भी नहीं मानेंगे कि वो एक इवेंट के किरदार भर थे।फिर भी ऐसे लोगों से आग्रह है कि भरी सभा में भले मत मानना कि ताली-थाली बजा कर वो जो अनजाने में विज्ञान को चुनौती दे रहे थे वो उनकी गलती थी,पर कम से कम व्यक्तिगत चर्चाओं में ही सही अपने बच्चों ,परिजनों,मित्रों,पड़ोसियों से इस विषय पर चर्चा ज़रूर करें।

चर्चा करें कि समय ने हर बार साबित किया है कि दुनिया बचेगी तो सिर्फ विज्ञान की बदौलत और विज्ञान सम्पन्न होगा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही।

हमने और जिन देशों ने भी इस बात को समझने में देर की उन्होंने कीमत चुकाई।

इस चर्चा का एक पक्ष यह भी है कि लोक कल्याण का अगर विज्ञान,वैज्ञानिक अनुसंधान,वैज्ञानिक शिक्षा से नाता कमज़ोर होने लगते है तब मुनाफे का वैज्ञानिक अनुसंधानों से नाता मजबूत होने लगता है।हालांकि यह अलग वृहत चर्चा का विषय है।दुनिया के बड़े कॉरपोरेट्स ,उनका पोषण करने वाली सरकारों की जनविरोधी नीतियां और ऐसी नीतियों की बदौलत उनका अकूत मुनाफा यह सब अलग से बताता है कि केवल विज्ञान में आस्था से ही काम नहीं चलेगा बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण ज़रूरी है,हम आप सवाल करते रहें यह चेतना ज़रूरी है और इस बात के लिए लड़ाई भी ज़रूरी है कि विज्ञान का लाभ मुनाफे के लिए नहीं बल्कि विश्व मानवता की रक्षा के लिए हो।ये लड़ाई पूंजी के वर्चस्व के खिलाफ भी है।

ये लड़ाई हर रोज़,हर जगह लड़नी होगी।कल जिसने आपसे कहा था कि ताली-थाली बजाओ आज उससे पूछना होगा कि बताओ रास्ता किधर है?उससे पूछना होगा कि क्या उसे आज इस बात का एहसास हो रहा है कि हिंदुस्तान में इस पूरी महामारी के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी!उसको याद दिलाना चाहिए कि एम्स की भूमिका ,तमाम उपेक्षाओं और कमज़ोर करने की तमाम कोशिशों के बावजूद देश भर के सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ के सरकारी ढांचे की भूमिका कितनी शानदार थी!उसको याद दिलाना चाहिए कि देश भर में निजी क्षेत्र में भी कितने डॉक्टर्स थे जो सेवा भाव के साथ कोरोना में अपने मरीजों के साथ खड़े थे।विज्ञान के साथ अगर लोककल्याण का नाता बना रहे तो ऐसा बहुत स्वाभाविक ही होता है।

अगर हम सिर्फ अपने देश की बात करें तो इस महामारी ने यह मौका दिया है कि हम स्वतंत्र भारत के निर्माण की पूरी प्रक्रिया को पढ़ें,जानें,समझें।जाने कि इस देश को फौलादी बनाने में रेल,सेल,भेल से लेकर एयर इंडिया,एम्स ,बाल्को, नाल्को या आईआईएम जैसे संस्थानों का क्या योगदान था!

आज भी जिन्हें लगता है कि देश में सिर्फ राजनीतिक सत्ता संघर्ष चल रहा है तो वो गलती पर होंगे।देश में जड़ता के खिलाफ विज्ञान की भी बड़ी लड़ाई है।

यूं ही नहीं है कि विज्ञान के मुकाबले अवैज्ञानिक चीजों को प्रोत्साहन दिया जाता है।यह विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर एक सुनियोजित हमले का हिस्सा है।

हमारी जड़ता बड़ी आपदा है और यह किसी के लिए अवसर है।

हमारे लिए यह अवसर है कि हम अपने आसपास सवाल करने की संस्कृति प्रोत्साहित करें।जानने की संस्कृति प्रोत्साहित करें।आज चूके तो फिर हम ताली-थाली बजाते रहेंगे और अपनी गलियों से एम्बुलेंस या शव वाहन गुजरते ही देखते रहेंगे या युद्ध के बिगुल बजाते रहेंगे।

आज ज़रूरी यह कि हम शिक्षा और विज्ञान का दिया जलाएं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण की रौशनी फैलेगी।आज बड़ी जरूरत है हमारे घरों में घुस आई जड़ता का मुकाबला करने की।

लेखक- रुचिर गर्ग, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार है। ये उनके निजी विचार है।