“यार तेरे बाल झड़ रहे हैं”- मेरे एक दोस्त ने लगभग खीस निपोरते हुए यह रहस्योद्घाटन किया. अब इसी में फिर हरयाणवी बन जाने का मन करता है फिर कि उससे बोलूँ कि भई वो तो मेरे को भी दिखे है, तू कोई सलूशन बता सकता है तो बता, समस्या मैं भी देख सके हूँ। अच्छा, लोग समस्या वोही बताएँगे जो आपको पहले से ही खूब परेशान कर रही हो, और आप उससे जूझ ना पा रहे हों। ये जले पे नामक छिड़कने वाली अपनी प्राचीन सनातन परम्परा है, जैसे शरीर के विकृतियों, अंधेपन, लँगड़ेपन आदि को बताना।
वैसे हो सकता है कि भारत के लोग स्वभाव से वैज्ञानिक हों इसलिए वो समस्या के बारे में, समाधान से ज़्यादा सोचते हों। हाँ भई, सीरीयस्ली। क्यूँकि महान वैज्ञानिक ऐल्बर्ट आइन्स्टायन ने कहा था,” अगर मेरे पास किसी समस्या के समाधान देने के लिए साठ मिनट हैं तो पहले पचपन मिनट मैं समस्या के बारे में सोचूँगा, बाक़ी के 5 मिनट समाधान के बारे में सोचूँगा।” ये अलग बात है कि हम लोगों के लिए ये 60 मिनट पूरी लाइफ़ के बराबर हैं, अंतिम के 5 मिनट मृत्युशैया पर ही मिलते हैं, जब लगता है कि ये किया होता, वो कहा होता।
मामला अपनी प्राचीन संस्कृति से जुड़ा हो, तो राजनीति कहाँ पीछे हटने वाली है।,इसमें समस्या का निदान दूसरी समस्या खड़ी करके किया जाता है। जैसे अगर कोई “देश” की समस्या की बात करे तो आप “धर्म” की समस्या की बात करके, देश की समस्या को छोटी कर दो। और अगर कोई धर्म की समस्या की बात करे तो आप “जाति” की समस्या खड़ी करके, धर्म की समस्या को छोटी कर दो।
राजनीति का दर्शन ये है कि समस्या का समाधान निकालने की ज़रूरत नहीं होती, वरन् सारी समस्याओं को आपस में लड़ा दो, उनकी “महाभारत” हो जाए। इससे होगा क्या कि जैसे महाभारत में हुआ था, पांडवों की तरफ़ के केवल आठ और कौरवों की तरफ़ के केवल तीन लोग जीवित बचे थे, वैसे ही कई समस्याएँ अपने आप मर जाएँगी, कुछ ही बचेंगीं। और जब लाखों समस्याओं में कुछ ही बचेंगीं तो जनता इनके साथ ही रहना सीख जाएगी। संक्षेप में राजनीति में समस्या ही समाधान है।
नौकरशाही की परम्पराओं ने समस्या को एक “संस्था” बना दिया है। क्यूँकि कार्यालयीन उच्च पदस्थ अफ़सर किसी को भी एक साँस में समस्याओं की गिनती का पहाड़ा बना के सुना देगा और निम्नपदस्थ अधिकारी पर अपने शक्ति की सल्तनत स्थापित कर लेता है। समस्या, दरअसल उसके लिए ज़रिया है, छोटों को छोटा रखने की, उसकी प्रभुसत्ता की। क्यूँकि समस्या का समाधान करने की ज़िम्मेदारी छोटों पर है, और समस्या का मतलब ये हुआ कि ज़िम्मेदारी नहीं निभाई गई। इसके अलावा जहां समस्या ना हो, वहाँ वो अपने मातहत से ऐसे सवाल पूछ के समस्या खड़ा करेगा जिसका ज्ञान अप्रासंगिक और बेमतलब हो, मसलन खेल विभाग में फुटबॉल के खिलाड़ी के ऊपर उसे अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करनी हो तो वो उससे ये पूछ देगा कि गोल के नेट में कितने छेद होते हैं?
ख़ैर अगर मैंने भी सिर्फ़ समस्या बताई हो, निदान नहीं, तो बुरा मत मानिएगा, हम भी तो वही हैं।
फिर उस ने मसाइल* का हल ढूँढ लिया होगा
फिर लोग मसाइल में उलझाए गए होंगे ।।
हम गुज़रे कि तुम गुज़रे ये देखने कौन आता
थे जितने तमाशाई सब लाए गए होंगे ।।
-एजाज़ अफ़ज़ल (*समस्या)