मनोज त्रिवेदी

सालों पहले रुसवेल्ट ने कहा था, कि अख़बार में सच केवल विज्ञापन होते है. शायद अख़बार में छपीं खबरों को जान समझ कर बात कही गई होगी ।आज के दौर में विज्ञापनो ने अपनी इस साख को बट्टा लगा रखा है । हिंदुस्तान लीवर जैसी कंपनी जब fair& lovely को काले को गारंटी से गोरा बनाने की क्रीम के सालों से दावे करते आयी है, वहीं अज़ीम प्रेम जी की विप्रों के संतूर साबुन लगाने से भी बच्चे की माँ भी सोलह बरस की लगने लगती है ।कोविड -19 की महामारी से निजात पाने जहां विश्व भर के वैज्ञानिक वैक्सीन के फ़ार्मूले तलाशने में लगे है,वही बाबा रामदेव कोरोना को एक हफ़्ते में अपनी दवा से भगा देने के दावे करते है ।कौन कितना झूट बखूबी बोल रहा है, यह तो इनके झाँसे में आए उपभोक्ता ही बता सकते है.

बहरहाल भारत में TATA सिर्फ़ ब्रांड नही हैं,बेहतरीन उत्पादनो और अनवरत सेवा के कारण एक भरोसा भी है ।TATA के कई ब्रांड्स हैं जो TATA के नाम से तो नही है,लेकिन TATA की विश्वसनीयता को साथ ले कर ही चलते है जैसे वोल्टास,ताज़ हॉटल्स, तनिष्क । कभी कभी विज्ञापन अपने उत्पादन-ब्राण्ड पर लोगों का ध्यान खींचने के बजाय अति उत्साह में संकट को आमंत्रित कर लेते हैं ।कोविड के ख़राब दौर में जहाँ सोने चाँदी के ज़ेवरों के बाज़ार को स्वाभाविक ग्रहण लगा है ऐसे में तनिष्क ज्वलेरी के एक विज्ञापन की लोगों ने ख़राब प्रतिक्रिया दी है।सामाजिक ताने बाने से बुने उत्सव,प्रसंग को कंपनी ने अब तक अपने विज्ञापनों से इनकैश कराते आयी है, लेकिन विसंगतियों की स्थापित करती तनिष्क की इस बार की कोशिश की निंदा हुई और उसे एकत्वम सिरीज़ के अपने इस विशेष ब्रांड प्रमोशन कैम्पेन को वापस लेना पड़ गया.

बात 1966 के आसपास की है,गुजरात में जब महान वर्ग़ीस कुरियन,दुग्ध सहकारिता के महाक्रांतिकारी अभियान अमूल को गति दे रहे थे,प्रचार – प्रसार का ज़िम्मा उन्होंने सिलवेस्टर दा कुन्हा को दिया जिन्होंने कुरियन की तपस्या के प्रचार- प्रसार का बीड़ा उठाया, उस जमाने में प्रिंट के विज्ञापन महँगे होते थे, इस लिए होर्डिंग्स से शुरुआत की ।राजनीति, खेल, फ़िल्म, उपलब्धियों पर अमूल की होर्डिंग्स मज़ेदार संदेश लिए होती, जिसे लोग ठहर के देखा करते । पिछले 54 सालों से आज तक(अब सिलवेस्टर के बेटे राहुल दाकुन्हा,) मनीष झवेरी और कार्टूनिस्ट ज़यंत राणे की तिकड़ी ने इसे देश के टॉप ब्राण्डस में एक बनाए रखा है, अमूल गर्ल के चुटीले अन्दाज़ वाले कैप्शन आज भी उतने ही मज़ेदार और ध्यान खींच ही लेते है । taste of india अमूल अब दुनिया के बीस प्रमुख दुग्ध ब्रांड्स में से एक है.

1955 में कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण ने सिगरेट के धुएँ के छल्लो के बीच एक बच्चा,एक हाँथ से पेंट के ब्रश को पकड़े, दूसरा हाँथ कमर पर रखे हुए एक किरदार को अपने कार्टून में उतारा । इसे “गट्टू “ नाम दिया गया ।गट्टू (मैसकॉट )asian paints की पहचान बन गया ।एक गैराज से चालू हुई छोटी सी कंपनी, अब देश की सबसे बड़ी पेंट निर्माता कम्पनी है। , फ़्राक पहनी निरमा गर्ल हो, या पारले G का उँगलिया दिखाता बच्चा, मरफ़ी बॉय हो या airIndia का महाराजा सालों देश के दिलो में बसे रहे और इनकी कम्पनियाँ एक स्वीकार्य उत्पाद निर्माता ब्रांड के रूप में .

क्या संदेश हो कैसे उपभोक्ता तक अपनी बात पहुँचाई जाए, इसकी बाज़ीगरी एडवरटाईज़िग एजेन्सीयाँ करती हैं, गीतकार, कॉपीराइटर, संगीतकार, फ़ोटोग्राफ़र, निदेशक,एडिटर मिल कर इसे अंजाम देते हैं। बाज़ार में कोई प्रॉडक्ट कितना हिट है ये उसके विज्ञापन जता देते हैं, idea ( what an idea) फ़ेविक्विक- तोड़ो नही जोड़ो,एशियन पेंट्स- हर घर कुछ कहता है , के पुराने से पुराने टी. वी एडवरटाईज़मेंट आज भी लोगों के ज़हन में रहते है। एक छोटी सी चूक बाज़ार से उठा भी सकती है। सामान्यतः विज्ञापनों के सृजन में ज़रूरत को ध्यान रखा जाता है और इसके इर्द गिर्द के इमोशन, ख़ुशियाँ, उत्सव, उल्लास इसे निखारते है, और लम्बे समय तक याद रखे जाते है, कम से कम उस समय तक तो यकीनन जब उपभोक्ता को उसकी ज़रूरत के समय वह याद आ ही जाए। विवाद हमेशा बाज़ार से दूर रहता है, और बाज़ार हमेशा ज़रूरत का इंतज़ार करता है.

मनोज त्रिवेदी
( मनोज त्रिवेदी, नवभारत के CEO, दैनिक भास्कर, नईदुनिया के GM रह चुके हैं)