रायपुर। सामान्य जीवन में लोग कभी-कभी झूठ बोलते हैं, या तो किसी लाभ के लिए या कठिनाई से बचने के लिए। परंतु जब झूठ बोलना एक लगातार और बाध्यकारी आदत बन जाए, तो यह मनोवैज्ञानिक समस्या कहलाती है, जिसे मिथोमेनिया कहते हैं।

क्या है मिथोमेनिया?

मिथोमेनिया या pathological lying एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति बार-बार झूठ बोलता है। अक्सर यह झूठ न तो लाभ के लिए होते हैं और न ही ज़रूरी। कई बार तो झूठ इतने बार दोहराए जाते हैं कि व्यक्ति खुद भी उन्हें सच मानने लगता है।

मुख्य लक्षण

  • हर छोटी-बड़ी बात में झूठ बोलना।
  • सच और झूठ का मिश्रण कर कहानी गढ़ना।
  • बिना किसी कारण के भी झूठ बोलना।
  • रिश्तों और भरोसे में दरार पड़ना।
  • आत्म-संतुष्टि या ध्यान आकर्षित करने की इच्छा।

कारण

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मिथोमेनिया के पीछे कई वजहें हो सकती हैं

  • आत्मविश्वास की कमी और हीनभावना।
  • बचपन का आघात या उपेक्षा।
  • व्यक्तित्व विकार जैसे नर्सिसिस्टिक या एंटीसोशल प्रवृत्ति।
  • वास्तविकता से भागकर एक काल्पनिक पहचान बनाना।

परिणाम

लगातार झूठ बोलने से व्यक्ति अपनी विश्वसनीयता खो देता है। पारिवारिक और सामाजिक संबंध प्रभावित होते हैं, और कई बार कानूनी या सामाजिक दिक़्क़तें भी सामने आती हैं।

उपचार

मिथोमेनिया का इलाज संभव है। संज्ञानात्मक-व्यवहार चिकित्सा (CBT) और परिवार चिकित्सा प्रभावी मानी जाती हैं। गंभीर मामलों में दवा का सहारा भी लिया जाता है। सबसे ज़रूरी है—मरीज का स्वयं यह स्वीकार करना कि उसे मदद की ज़रूरत है।

निष्कर्ष

मिथोमेनिया हमें यह सिखाता है कि सत्य और कल्पना के बीच संतुलन आवश्यक है। झूठ कभी-कभी सहारा दे सकता है, पर लगातार झूठ बोलना व्यक्ति की पहचान, रिश्तों और मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित करता है। सही समय पर उपचार और समर्थन से इससे उबरा जा सकता है।

डॉ गार्गी पांडेय
चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एंड काउंसलर
रायपुर छत्तीसगढ़

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