आज नेहरूजी होते तो राहत इंदौरी साहब और नेहरूजी की दोस्ती के कई किस्से सामने होते। नेहरूजी उन्हें सर्वोच्च सम्मान के साथ अलग अंदाज़ से ही बिदा कर रहे होते !
70 साल में क्या हुआ जिनका तकिया कलाम है, उन्हें जानना चाहिए
तब पीएमओ में ‘सरस्वती’ निवास करती थीं.
तब पीएम ब्लैक कमांडो से नहीं लेखक, बुद्धिजीवियों, कवियों, शायरों से घिरे होते थे.
तब दुनिया के बड़े बुद्धिजीवी नेहरूजी को पढ़ते ,सुनते और उनसे बात करने को उत्सुक रहते थे.
फ़िराक़ से लेकर जोश मलीहाबादी तक नेहरूजी से एक दोस्त की तरह पूरे अधिकार से मिलते थे।
एक बार फ़िराक़ नेहरूजी से मिलने पहुंचे पहुंचे तो रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें पर्ची पर नाम लिख कर देने को कहा. उन्होंने लिखा रघुपति सहाय. रिसेप्शनिस्ट ने आगे आर सहाय लिखकर पर्ची अंदर भेज दी. जब 15 मिनट बीतने पर भी बुलावा न आया तो फ़िराक़ भड़क गए. चिल्लाने लगे. शोर सुन कर नेहरू बाहर आए. माजरा समझने पर बोले कि मैं 30 साल से तुम्हें रघुपति के नाम से जानता हूं, मुझे क्या पता ये आर सहाय कौन है? उन्हें जब अंदर ले गए तो नेहरू ने उनकी सूरत देखकर पूछा, “नाराज़ हो?”
जवाब फ़िराक़ ने इस शे’र से दिया,
“तुम मुखातिब भी हो, करीब भी
तुमको देखें कि तुमसे बात करें”
1952 के चुनाव प्रचार में जवाहरलाल नेहरू गोंडा के दौरा पर आए थे। इसी समय‘ बेकल वारिस’ की कविता “किसान भारत का” सुनकर उनके उत्साह की प्रशंसा की, पंडित नेहरू ने उसे पास बुलाकर कहा, “तुमने जनता में उत्साह भर दिया, तुम तो वास्तव में उत्साही हो। “पंडित नेहरू ने उस नौजवान कवि को नया तख़ल्लुस दिया ‘उत्साही’। तब से से ‘बेकल उत्साही’ बन गए।
चाँद और तारों के साथ रहने से आसमान जितना सुन्दर दीखता है उतनी ही सुन्दर-सजीव दोस्ती थी नेहरू -जोश मलीहाबादी की।
जोश मलीहाबादी को पता चला नेहरूजी भी शिमला में हैं। उन्होंने फ़ोन किया सेक्रेटरी मुलाकात न करवा सकी। जोश मलीहाबादी ने अपने जोश के मुताबिक नेहरूजी को कड़ा पत्र लिखा। दूसरे दिन इंदिरा गाँधी का फ़ोन आया आप आइये मेरे साथ चाय पीजिये। जोश ने कहा ,-”बेटी वहां तुम्हारे बाप मौजूद होंगे , मैं उनसे मिलना नहीं चाहता। ” इंदिरा ने कहा -”मैं पिताजी को अपने कमरे में बुलाऊंगी ही नहीं ”
जोश जब पहुंचे तो पंडित नेहरू पीछे से जोश पकड़कर सीधे अपने कमरे में ले गए और इसके बाद पंडित नेहरू जोश से जिस दोस्ती से मिले जोश नेहरूजी के गले लग कर रोने लगे। नेहरू जी और जोश की दोस्ती की ऐसी कई दास्ताँ जानने के लिए ज़रूर पढ़िए ‘यादों की बरात’।
नेहरूजी के न रहने पर जोश ने लिखा था शराफत के आसमान का सूरज डूब गया। हिन्दुस्तान में ही नहीं सारे एशिया में अँधेरा छा गया।