छत्तीसगढ़ में हाल ही में हुए नक्सल हमले बेहद दुर्भाग्यजनक हैं। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं होती। एक ऐसे समय में जब प्रदेश एक बार फिर नक्सलवाद के साये में जाता दिखाई दे रहा है। नक्सल समस्या की जड़ों को पहचानने के लिए , छत्तीसगढ़ बनने के बाद विकास के जिस मॉडल को अपनाया गया उस पर कुछ आंकड़े देखना समीचीन होगा। क्यूंकि , नक्सल समस्या के समाधान के लिए जहाँ हिंसा पर विशवास रखने वाले समूहों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्यवाही केंद्र और राज्य सरकारों को करनी होगी वहीं , नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के सामान्य नागरिकों की समस्याओं के समाधान के लिए उपयुक्त नीतिया भी बनानी पड़ेंगी.
यह सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद , राज्य के विकास के लिए कृषि और वन पर आधारित अर्थव्यवस्था के स्थान पर , उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था को राज्य के विकास का आधार बनाया गया. उद्योग में भी , माइनिंग आधारित उद्योग प्रमुख थे. आंकड़ों को देखने पर यह बिलकुल स्पष्ट है।
2011 -12 में राज्य की अर्थव्यवस्था की संरचना में कृषि और सम्बंधित क्षेत्र का हिस्सा 20 प्रतिशत , उद्योग का 45 और सर्विस सेक्टर का 35 प्रतिशत था। इसी अवधि में मध्यप्रदेश में यह प्रतिशत क्रमशा 24 , 29 , 47 प्रतिशत था। उद्योग के कुल हिस्से में माइनिंग का प्रतिशत छत्तीसगढ़ में 11 और मध्य प्रदेश में 03 था।
एक और आंकड़ा देखिये , 2005 -06 से लेकर 2010 -11 के बीच छत्तीसगढ़ में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 8. 87( 8. 37 )प्रतिशत , प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर 6. 68(6. 42 ) प्रतिशत। , राजस्व आय में वृद्धि (2006 -7 से 2012 -13 ) 18 ( 14 ) प्रतिशत , राज्य के सकल व्यय में वृद्धि दर 22 (19 )प्रतिशत थी। उसी दौरान राष्ट्रीय स्तर पर सकल घरेलू विकास की दर 8.65 प्रतिशत थी. कोष्ठक में दिए आंकड़े मध्य प्रदेश के हैं।
उपर्युक्त आंकड़े यह प्रदर्शित करते हैं , 2005 -2012 के दौरान छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था/विकास दर मध्य प्रदेश से बेहतर थी. देश के औसत से भी बेहतर थी.
अब एक और आंकड़ा देखिये।
2004 -5 से 2009-10 के मध्य छत्तीसगढ़ में गरीब लोगों की संख्या में मात्र 0.7 प्रतिशत की कमी आयी जबकी मध्य प्रदेश में यह कमी 11.9 प्रतिशत की थी और राष्ट्रीय स्तर पर कमी का प्रतिशत 7.4 था।
2004 -5 से 2009 -10 के बीच में छत्तीसगढ़ में आदिवासिओं में गरीबी का प्रतिशत देश में आदिवासिओं के गरीबी के प्रतिशत से अधिक था.
सरकारी और गैर सरकारी संगठनो की बहुत सारी रिपोर्ट्स बताती हैं छत्तीसगढ़ में उस दौरान आदिवासी क्षेत्रों में माइनिंग गतिविधिओं के कारन , सबसे बड़ा विस्थापन हुआ. यह संख्या 50000 तक बताई जाती है।
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यही वह समय था जब नक्सलवाद ने छत्तीसगढ़ में अपने पैर पसार भी लिए और मजबूत भी कर लिए.
अब आप पूछेंगे , इन सब आंकड़ों से निष्कर्ष क्या निकलता है। सीधा सा है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद, छत्तीसगढ़ के पूँजीवाद और उद्योग आधारित विकास के मॉडल, जिसमे सबसे बड़ा हिस्सा माइनिंग गतिविधिओं का था , से आर्थिक विकास तो हुआ किन्तु उस विकास का फायदा छत्तीसगढ़ के गरीबों को नहीं मिला। विशेषकर उन आदिवासिओं को जिनके जल जंगल और जमीन इस माइनिंग आधारित अर्थव्यवस्था के कारन छिन रहे थे।
नक्सल समस्या का समाधान पुलिस और सेना की सहायता लेने मात्र से नहीं होगा, वह एक पक्ष हो सकता है। उसका स्थायी समाधान होगा , प्राकृतिक संसाधनों पर वहां के रहवासिओं को अधिकार देकर, आर्थिक विकास के एक ऐसे मॉडल को देकर जो आर्थिक असमानता को कम करे न कि बढ़ाये.
(लेखिका- प्रोफेसर अनुपमा सक्सेना. ये लेखिका की निजी राय है. लेखिका गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र की प्रोफेसर हैं. )
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