अर्णब गोस्वामी गिरफ़्तार किये गये , यह अत्यंत राहत और तसल्ली की बात है… इसलिए कि वे अपने रसूख़ और दबदबे को लेकर अहंकार में चूर थे. सामाजिक हैसियत उन्हें पत्रकारिता ने दी और चाटुकारिता से हासिल सरकारी वरदहस्त ने उन्हें अहंकार के साथ घनघोर ग़ैर ज़िम्मेदार बनाया. कुछेक शीर्ष लोगों को छोड़ वे किसी को कुछ समझते ही नहीं थे. अपने को सबसे बड़ा, सबसे परे और सबसे बरी समझने की ठनक से हरदम भरे हुए. इस गिरफ़्तारी ने उन्हें इस भ्रम से कुछ तो मुक्त किया होगा ! अभी उन्हें दो साल पुराने एक मामले में पकड़ा गया है, जिसका पत्रकारिता से कोई लेना – देना नहीं. उन पर आत्महत्या के लिये उकसाने का आरोप है. जिसने अपनी माँ के साथ आत्महत्या की, वह एक नोट छोड़ कर गया जिसमें उसने दो अन्य के साथ अर्णब का नाम लिया था, यह कहते हुए कि इन्हीं के कारण वे और उनकी माँ यह क़दम उठाने को मजबूर हुए .
मामला काम कराकर पैसे न देने का था, और यह रकम करोड़ों में थी. आरोप संगीन हैं. अर्णब की चोरी पर सीनाजोरी को भी आप पत्रकारिता से जोड़ कर देख सकते हैं. संकट में घिरते ही भौंकने वाला ‘ शेर ‘ फ़ौज़ी परिवार के होने का रुआंसा हवाला देने लगता है, उस पत्रकारिता की दुहाई देता है, जिसे उसने हास्यास्पद बना दिया और जिसका सालों से वह निर्लज्जता से रोज़ चीरहरण करता रहा है. पत्रकारिता हो या सरकार उसका काम तोड़ना – फोड़ना – मिटाना नहीं बल्कि हर समय कुछ करना – बनाना – रचना होता है, लेकिन गोस्वामी हों या उनके आका मोदी…
इनकी पत्रकारिता और उनकी सरकारियत का काम जालसाज़ी करना, फ़रेब रचना और तहस – नहस करना है. नाकुछ करंता मोदी बिहार में किस कातरता से कभी पुलवामा की तो कभी बिहार के जवानों की शहादत को याद दिलाते दिखे. ज़रा से संकट में सारी गुर्राहट, अनर्गल प्रलाप ग़ायब हो जाता है , घिग्घी बंध जाती है. अब देखिये , अर्णब की गिरफ़्तारी के साथ पत्रकारिता, स्वतंत्रता की आर्त्त पुकारें हैं… दरअस्ल जब वे लोकतंत्र – लोकतंत्र चीखते हैं , तब वे चिल्ला रहे होते हैं… बचाओ -बचाओ !
अर्णब पर जो आरोप है वे सीधे उनके पत्रकारीय रुआब, रुतबे और अहंकार से जुड़ते हैं . उनकी पत्रकारिता और व्य्वहार से सरकारी सरपरस्ती और शह बू मारती है. इसी बलबूते वे अपने चैनल से ज़हर उगलते रहे, लोगों को आमंत्रित कर अपमानित करते रहे और ख़बर के नाम पर झूठ, विचार के नाम पर वैमनस्य फैलाते रहे.. . और चैनल के बाहर वह करते रहे , जिसका उन पर आरोप है… उकसाने का. अर्णब शैली की पत्रकारिता का मूलमंत्र है , उकसावा… और सनसनी उसकी ख़ुराक है. संघ- सरकार की मूल भावना भी यही है, और हर तरह के उकसावे का वह अबाध स्रोत है …. अर्णब , गोदी मीडिया और भक्त यहीं से उत्तेजना पाते और उसे प्रसारित करते हैं.
मोदीजी ने सारी सांवैधानिक संस्थाओं को ज़रूरत के मुताबिक ध्वस्त किया, उन्हें स्वायत्तता, स्वतंत्रता और विवेक से योजनानुसार वंचित किया. बहुबखानित चार पायों से लोकतंत्र के सत्त्व का क्षरण कर उन्हें अपने लिए टिकाऊ बनाया. वह सब कुछ जर्जरित कर दिया गया जिस पर इस महादेश की लोकतांत्रिक दुनिया आबाद थी. हज़ारहा दिक़्क़त और अड़ंगे थे पर बड़े उद्देश्यों और सरोकारों के सपने देखे जा रहे थे …..कि , वे आये, उन्होंने देखा और वे शुरू हो गये… वह लोकतंत्र , वह दुनिया और वे सपने जैसे एकाएक स्वप्नवत् हो गये —- अंधेरों और दु:स्वप्नों का एक लम्बा सिलसिला शुरू हुआ.|
तो संघप्रिय मोदी सरकार अब जिन खम्भों पर अवस्थित है , उन्हें उसने नयी तरह से बनाया | बाक़ी ज़रूरत के हिसाब से कमोबेश निष्क्रिय रखे गये पर मीडिया को महासक्रिय किया गया. यह मीडिया ख़ास तरह से तराशा, ढाला हुआ अरेंज मीडिया था. मीडिया की सभी क़िस्मों को नाथ दिया गया. हुक्मरानों ने अपने इस पालतू मीडिया को खूंखार शिकारी बनाया. अब यह आकाओं का भोंपू था. उनका हर ऐजेंडा इस मीडिया का ऐजेंडा हो गया. उनकी हर खोट, सनकों , ग़लतियों, नाकामियों पर न सिर्फ़ पर्दा डालना बल्कि उन्हें नायाब, दूरदर्शी क़दम, मास्टर स्ट्रोक बताना उसका फ़र्ज़ हो गया.
संघ के अंतरंग मंसूबे ख़ौफ़ फैलाते चैनलों की ख़बरों, बहसों में बेहिचक उभरने लगे. गिनती के होशमंदों को छोड़ मुख्यधारा का मीडिया अपनी विस्तृत ज़मीन छोड़ कर संकीर्ण, संकरा, एकांगी बहने लगा. सरकार का यह सबसे विश्वस्त पार्टनर बना. अर्णब गोस्वामी इस मीडिया के आदर्श बने. जिस मीडिया को आगे गोदी मीडिया कंहा गया उसके निर्माता वे ही थे. उनकी जमात के लगभग सभी एंकर , एंकरनियों ने अर्णब की चिल्लाहटी मर्यादाहीन शैली अपना ली. उनके नेतृत्व में यह मीडिया आवारा, लफंगा और बदचलन होता गया. जैसे – जैसे यह मीडिया गर्त में गिरता गया, वैसे – वैसे वह सरकार और सरकारी दुनिया की निगाहों में चढ़ता गया.
अर्णब इस दुनिया के सबसे चमकते सितारे हो गये… समय तो उनका था ही इसलिए अब वे गणतंत्र की ओर बढ़े… टाइम्स नाउ से रिपब्लिक इंडिया की उनकी इस यात्रा में उनके बढ़ते रुतबे और रुआब को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. पूरा गोदी मीडिया ही जब सत्ता की चौंध से गर्वीला और गदगदायमान था तो फिर अर्णब के क्या कहने… अभागा अन्वय नाइक गोस्वामीजी की आंखों में मोदी – मद न देख पाया और नादान ने मां के साथ जान गंवा दी.
ग़ौर करने की बात यह है कि मोदी के भक्त मीडिया का दायरा विशाल है , वह श्रेणियों में विभक्त हैं. सब खुल्लमखुल्ला नहीं दिखना चाहते, कुछ वैसे भदेस नहीं हो सकते क्योंकि कुछ को अभ्यास नहीं, कुछ का शील अभी किंचित बचा है, कुछ पुरानी छवि चिपकाये रखना चाहते हैं . इसलिए समर्थक मीडिया है, भद्र मीडिया है और एक ख़ास परिक्रमा मीडिया है. बाद के दोनों चालाक मीडिया हैं, वंदना के निरापद अवसर तलाश कर हाज़िरी पूरी करते हैं. परिक्रमा वाले अपने हिसाब से घेरा तय करके आभास देते हैं कि इनका पत्रकारीय क्षेत्र चौतरफ़ा है, ये स्मार्ट पत्रकार ज्ञान भी बहुत बांटते हैं , पर परिक्रमा करते हुए आराध्य की चंदन – चर्चन सेवा नहीं भूलते.
लेकिन भक्त शिरोमणि तो अर्णब वाला गोदी मीडिया ही रहा. इस पर अर्णब शैली की पत्रकारिता की छाप इतनी गहरी है कि इसे अर्णब मीडिया भी कह सकते हैं . मोदी सरकार और इसके बीच संबंध ‘ एक दूजे के लिये ‘ वाले हैं. यह ख़ौफ़नाक की खूंखार से पारस्परिकता और दोस्तों का मामला है — ख़ौफ़नाक इरादों का खूंखार प्रचार ! गोदी मीडिया के रथ पर सवार मोदीजी की विचार- प्रचार यात्रा शुरू हुई जो आडवाणी की रथयात्राओं से कहीं ज़्यादा आक्रामक और अहर्निश थी. यह भूलना अपराध ही होगा कि ‘ ख़ौफ़नाक और खूंखार ‘ ने मिलकर क्या दहशतगर्दी मचायी.
देश -जनता – समाज के ख़िलाफ़ एक के बाद एक साजिश… संविधान -लोकतंत्र -संसद के विरुद्ध लगातार षड़यंत्र. मुसलमान – दलित -आदिवासी पर तेज़तर होते ज़ुल्म. सरकार का प्रचार, उसकी हर बात में वाहवाह, फ़ैसले चाहे जितने सनक भरे हों, उल्टे -औंधे हों , ग़लत, अवैधानिक, अमानवीय और निर्मम हों , मीडिया बचाव के लिये हमेशा ढाल -तलवार लेकर मौजूद. झूठ -फ़रेब – उथलापन माहौल में भर दिया. मीडिया ऐसा जनविरोधी भी होगा सोचकर हैरत और अफ़सोस होता है. इस सरकार के विध्वंसक मंसूबों को पूरा करने और उनकी पैरोकारी करने अर्णब मार्का मीडिया तत्पर और आगे रहा… भय, हिंसा और संदेह का वातावरण बनाया… समाज को कट्टर राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिकता का पाठ पढ़ा -पढ़ा कर गहरे विभाजित किया.
गोमांस के नाम पर, देशद्रोह, घर वापसी, लव जिहाद के नाम कितने मार दिये, असहमति के कारण हत्या हुई या लोग जेल भेजे गये. लेखक, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र जेलों में हैं, मीडिया इन्हें अर्बन नक्सल, खान मार्केट गैंग कहकर इनकी गिरफ़्तारी को उचित ठहराता है. छापा, सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी आदि की धौंस , इस बेशर्म मीडिया के लिए सब दुरुस्त है . भाजपा बलात्कारियों, दरिंदों के समर्थन में खड़ी होती है, मीडिया समर्थन में बैठा रहता है.
बहुत दर्दनाक स्थिति है… हमारी लोकतांत्रिक विरासत, विविधता और मेलमिलाप की परम्परा सब नष्ट की जा रही है और यंत्रणा यह है कि जिस मीडिया को देख- समाज -जनता के साथ खड़े होना चाहिए , वह उन शक्तियों के साथ है, जो यह सब कहर हम पर ठा रहीं हैं . आपराधिक मामले में अर्णब को बंदी बनाने पर आसमान सिर पर उठाया जा रहा है, जबकि अपनी ज़िम्मेदार पत्रकारिता के कारण कितने पत्रकार जेलों में बंद हैं , उनके लिए कोई आवाज़ नहीं …
पिछले तीन सालों में इस पत्रकारिता ने देश और जनता का जो अनिष्ट किया है, इसके आंख-कान बंद करने से जनता पर कैसे -कैसे सितम हुए…. और जिनमें उसकी मिलीभगत रही, अर्णब मीडिया के उन अपराधों का किसी के पास कोई हिसाब है ! अर्णब के लिए लोकतंत्र बचाओ की गुहार लगाने वाले ,मंत्री – नेता लोकतंत्र को बचाने वाले नहीं मिटाने वाले हैं … लोकतंत्र पर जब संकट था , तब संघ -जनसंघ के नेताओँ में माफ़ी मांगने और पेरोल लेने की होड़ मची थी … इनका 56 इंची सीना देख रहे हैं, टीन की तरह टपर-टपर करते लौह पुरुष भी देखे जा चुके हैं .
-मनोहर नायक