रायपुर। बेल्जियम, इटली, फ्रांस, चेक गणराज्य, आयरलैंड, पोलैंड, जर्मनी समेत तमाम यूरोपीय देश इस समय कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में हैं। कोरोना की पहली लहर के बाद इनमें से ज्यादातर देशों ने उस पर प्रभावी नियंत्रण पा लेने का दावा किया था, बहुत से प्रतिबंध ढीले कर दिए गए थे, ऐसा लग रहा था कि जल्द ही जनजीवन सामान्य हो जाएगा। लेकिन यह एक भ्रम साबित हुआ। हालात एक बार फिर चिंताजनक हैं और नये सिरे से प्रतिबंधों की घोषणाएं की जा रही हैं। कहीं फिर कर्फ्यू लगाना पड़ रहा है, तो कहीं लाकडाउन की नौबत है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि संक्रमण-दर में लगातार गिरावट देखकर लोगों ने मान लिया कि वायरस कमजोर हो गया है और महामारी समाप्ति की ओर है। उन्होंने इस तथ्य को भी नजरअंदाज करना शुरु कर दिया कि उनके अनुशासन के कारण ही कोरोना के प्रकोप को कुछ कम किया जा सका था। लोग सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क की अनिवार्यता को भी भूल गए।
यूरोप में जो कुछ हो रहा है, उसे हमें एक सबक की तरह देखना चाहिए। भारत में इस समय हालात पहले से बेहतर हैं, लेकिन यदि हमने सावधानी नहीं बरती तो यह पहले से बदतर भी हो सकते हैं। संक्रमण-दर पर नियंत्रण का अर्थ यह नहीं होता कि हमने वायरस पर विजय पा लिया। जब तक इसका प्रभावी टीका नहीं आ जाता, तब तक हमें इसके खिलाफ युद्धरत रहना ही होगा। यह महामारी कितनी बुरी है, किस कदर नुकसान पहुंचाती है, किस-किस स्तर पर नुकसान पहुंचाती है, यह हम सबने देखा है। जिन लोगों ने कोरोना से अपने करीबियों को खोया है, अथवा स्वयं संक्रमित हो चुके हैं, उनका अहसास और भी घना है। जो लोग संक्रमण से उबर चुके हैं, वे इसके तरह-तरह के दुष्परिणामों को तब भी झेल रहे हैं।
इस समय त्योहारी-मौसम है। दो दिनों बाद दीपावली है। तीज-त्योहार हमें हमारे दुखों को कम करने में मदद करते हैं, नयी आशाओं और उत्साह से भर देते हैं, इस बार भी हम सब दीपावली जरूर मनाएंगे, लेकिन हमें इस बात का भी खयाल रखना होगा कि ऐसा हम स्वयं को नयी ऊर्जा से भरने के लिए करेंगे, नयी मुसीबतों को न्योता देने के लिए नहीं। बाजार सज चुके हैं, रौनक भी है, खरीदारी भी जमकर की जा रही है, दुकानदारों और ग्राहकों दोनों की ही जिम्मेदारी है कि वे कोरोना के संक्रमण से खुद बचें और दूसरों को भी बचाएं। दीपावली पर शुभकामनाएं और आशीर्वाद खूब बांटे-बटोरें, लेकिन इस बात पर भरोसा करते हुए कि गले मिलकर और हाथ-मिलाकर दी गई शुभकामनाओं जितना ही असर, हाथ जोड़कर दी-ली गई शुभकामनाओं में भी होता है। जिनके बारे में आप दिल से चाहते हैं कि वे हैप्पी-लाइफ गुजारें, उन्हें हैप्पी-दीवाली कहने उनके घर न ही जाएं तो बेहतर। जिंदगी की रौशनी से बढ़कर और कोई रौशनी नहीं होती।
भीड़ -भड़क्का, धुवां-फटाका ले बचके संगवारी।
मानव सब झन मास्क लगा के मातर अऊ देवारी।।
लेखक- तारन प्रकाश सिन्हा