भारत में लोक सभा, विधान सभा, नगरीय निकायों तथा त्रिस्‍तरीय पंचायत प्रणाली में प्रत्‍येक नागरिक को, जिसकी उम्र 18 वर्ष हो गई है, संविधान के अनुच्‍छेद 326 में मत देने का अधिकार दिया गया है. लेकिन हम देखते हैं कि ऐसे व्‍यक्ति जिन्‍हें मतदान की पात्रता है, उनमें से कुछ अपने मताधिकार का उपयोग नहीं करते हैं फलस्‍वरूप राष्‍ट्र निर्माण में उनकी जो भागीदारी होनी चाहिए, वह नहीं हो पाती है. देखने में आया है कि वर्ष 2018 में चतुर्थ विधान सभा के आम निर्वाचन के समय छत्‍तीसगढ़ में कुल 1 करोड़ 85 लाख 88 हजार 520 मतदाताओं के नामों की सूची थी, किंतु यह अवश्‍यमभावी है कि कई नागरिक, जिन्‍हें मतदान की पात्रता थी, उन्‍होंने अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज नहीं कराया था. इसके अलावा ऐसे भी नागरिक हैं, जिनका नाम या तो कहीं पर भी मतदाता सूची में नहीं है और यदि किसी अन्‍य शहर या राज्‍य की मतदाता सूची में नाम था भी तो उन्‍होंने वर्तमान में जहां उनका निवास है, वहां अपना नाम दर्ज नहीं करवाया. फलस्‍वरूप वे अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते हैं. अन्‍यथा उस स्थिति में मतदाताओं की यह संख्‍या और अधिक हो सकती थी.

अब यदि हम केवल पंजीकृत मतदाताओं की ही बात करें तो वर्ष 2018 में संपन्‍न छत्‍तीसगढ़ विधान सभा के आम चुनावों में कुल 1 करोड़ 85 लाख 88 हजार 520 मतदाता पंजीकृत थे लेकिन इनमें से केवल 1 करोड़ 42 लाख 76 हजार 255 मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया. अर्थात् 43 लाख 12 हजार 265 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया।

प्रश्‍न यह है कि इतनी अधिक संख्‍या में लोग मतदान के अधिकार का उपयोग क्‍यों नहीं करते हैं. इसका एक कारण तो यह है कि अधिकांश शासकीय कर्मचारी, जिनकी ड्यूटी चुनाव के दौरान अपने निवास स्‍थान से भिन्‍न दूसरे स्‍थान पर रहती है या वे चुनाव ड्यूटी में अथवा अन्‍य शासकीय कार्यों में व्‍यस्‍त रहते हैं, वे मतदान नहीं कर पाते. दूसरा कारण यह है कि कई व्‍यक्ति निजी, पारिवारिक, सामाजिक या व्‍यावसायिक कार्यों से अपने निवास से बाहर रहते हैं। तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि अस्‍वस्‍थता के कारण भी कुछ लोग मतदान नहीं कर पाते होंगे. लेकिन अधिकांश लोग बिना किसी ठोस कारण के, मतदान करने नहीं जाते हैं. इसके पीछे क्‍या वजह हो सकती है, यह समझ पाना संभव नहीं है. जबकि भारत सरकार, राज्‍य सरकार, भारत निर्वाचन आयोग मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए भी विशेष शिविरों का आयोजन भी किया जाता है ताकि सभी पात्र नागरिक अपने नाम मतदाता सूची में शामिल करवा सकें.

मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग प्रति वर्ष अपने स्‍थापना दिवस के अवसर पर ”मतदान दिवस” का आयोजन भी करता है. जिसमें सभी लोग मतदान करने की शप‍थ लेते हैं, बावजूद इसके मतदान के प्रतिशत में वृद्धि नहीं हो रही है.

यहां यह कहना प्रासंगिक होगा कि नागरिकों के मत देने के अधिकार के कारण ही सरकार का निर्वाचन होता है कि किस पार्टी की सरकार बनेगी एवं किस पार्टी को विपक्ष में कार्य करना है. इस प्रकार मतदाता के पास सरकार के निर्माण की शक्ति है, अथवा यदि यह कहा जाये कि मतदाता सरकार का मालिक है, या उसका भाग्‍य विधाता है तो अतिश्‍योक्ति नहीं होगी. इसलिए हमें चाहे कोई भी, कितना ही जरूरी कार्य क्‍यों न हो, मतदान करने अवश्‍य जाना चाहिए और यदि मतदाता सूची में नाम नहीं है तो मतदाता सूची में नाम अवश्‍य शामिल कराना चाहिए ताकि हम राष्‍ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकें.

चतुर्थ छत्‍तीसगढ़ विधान सभा के चुनाव परिणामों पर यदि गौर किया जाये तो कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में हार-जीत का अंतर कहीं-कहीं 5 प्रतिशत से कम, तो कहीं-कहीं 10 प्रतिशत के आस-पास रहा और यदि मतदान का प्रतिशत 90 प्रतिशत तक पहुंच जाये तो परिणाम में भी अंतर आ सकता है. इस प्रकार वोट न देने से, मतदान के परिणाम भी प्रभावित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. यह भी बहुत ही विचारणीय प्रश्‍न है कि मतदान के प्रति ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं में काफी रूचि रहती है और वे प्रात:काल से ही मतदान करने के लिए मतदान केंद्र पर पहुंच जाते हैं. जबकि शहरी क्षेत्र के मतदाताओं में मतदान के प्रति उदासीनता का भाव देखा जा सकता है. वर्ष 2018 के आम चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत अधिक रहा जबकि कुल मतदान प्रतिशत 76.35 प्रतिशत था अर्थात् शहरी क्षेत्रों का मतदान का प्रतिशत 70 प्रतिशत के आस-पास रहा

इसलिए आईये हम सब यह संकल्‍प लें कि अपने मताधिकार का अवश्‍य प्रयोग करेंगे और एक नागरिक के रूप में प्राप्‍त इस अधिकार का उपयोग, कर्त्‍तव्‍य के रूप में करेंगे और देश तथा सरकार के निर्माण में अपना योगदान देंगे.

-चन्द्र शेखर गंगराड़े, पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा

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