क्या देश पटरी पर है ? अगर ,रेल पटरी पर नहीं है तो जान लीजिये देश भी बेपटरी हो चुका ! पटरी का रेल से और रेल का यात्री से सम्बन्ध वैसे ही है जैसे दिल का दिमाग से. बिना दिल मतलब ब्रेन डैड. यही वजह है इस देश का इतिहास है रेल जब बेपटरी हुई दुर्घटना घटी तो रेल मंत्रियों ने अपने इस्तीफे सौपें. जब सरकार जवाबदेह थी, संवेदनशील थी जनता के प्रति उत्तरदायी थी, तब ऐसा होता था. जब दुर्घटनाओं के देखकर रेल मंत्री को अफसोस और शर्म महसूस होती तो इस्तीफे देते, कभी ऐसा होता था.

जब रेल देश की गति और जनता के अरमानों के मुताबिक नहीं चलती तो मंत्री बदले जाते थे, ये इतिहास है. दरअसल, रेल की दुनिया अपने आप में एक पूरा देश है. ये एक ऐसी दुनिया है, जो पूरे देश में चक्कों पर चलती है. शायद 24000 हजार ट्रेनों में करीब 24 मिलियन यात्री इस दुनिया में भ्रमण करते हैं, जिनकी जिंदगी की डोर ट्रेन और पटरी के बेहतर तालमेल पर निर्भर होती है इसलिए लोग जब यात्राओं पर जाते हैं तो निकट के लोग उनकी यात्रा को शुभकामनाओं, प्यार और दुआओं की कामना करते हैं.

इसके बाद यात्रियों की जिंदगी रेल के हाथ में होती है और रेल सरकार के हाथ में. यानी इस दूसरी दुनिया की सरकार और पालक केंद्र सरकार है. यही वजह है कि पालक अपने घर का बजट जैसे बनता है वैसे ही देश का बनाता है. यही वजह रेल के इस देश के अंदर बसे देश की रक्षा, देखरेख, परिचालन और इसकी उन्नति के लिए एक अलग रेल बजट की परंपरा रही.

अलग रेल बजट पेश होता रहा. लोग इसे देश के बजट सी गंभीरता से सुनते, इंतज़ार करते और अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाकर रेल की दुनिया को बेहतर बनाते. एक दिन सब कुछ छिन गया और रेल से जुड़े संवेदनशील सवालों, बातों, इतिहास पर पर्दा लटका दिया गया. अब कोई बजट नहीं आता, आती है तो निजीकरण की खबर. अब रेल की नौकरियों के इश्तेहार बंद से हैं, छपते हैं तो रोज रेल रद्द होने के समाचार बल्कि एक साथ, आये दिन रेल रद्द होने की ख़बरें.

अब रेल हिले न हिले उद्घाटन की झंडियां हिलाई जाती है. अब आये दिन रेल रद्द ..रद्द ..रद्द डराने लगा है. डराती तो वो खबरें भी हैं कि ‘चलती रेल में गैंग रेप’. कभी इस देश में प्रधानमंत्री के बाद बच्चों तक को रेल मंत्री का नाम रटा रहता था. आज कौन है रेल का माई -बाप पता नहीं. क्यों कैसे किसके इशारे पर आये दिन रेल रद्द ..रद्द और बस रद्द रहती है पता नहीं !

बहुत हुई रेलवे की मार…पर मेरे भाई, जब दुनिया सही नहीं चलती तो आप कहते हैं न ‘change the world ‘ तो इस दूसरी दुनिया को पटरी पर लाना चाहते हैं तो अब की बार सीधे बदलाव लाइए …enough is enough … “Every single person has the power to change the world and help people.” तो भाइयों या तो बैलगाड़ी युग में लौटें या बदलाव लाएं … चुनाव आपका ! पर हैं यात्री , मुसाफ़िर बस थकना मत … नीरज जी कह गए हैं “वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें? हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें?”