Bihar Politics: आरएलजेपी अध्यक्ष पशुपति एनडीए का हिस्सा रहेंगे या नहीं बिहार की राजनीति में इस समय यह चर्चा का विषय बना हुआ है. बहुत जल्द ही पशुपति इसपर फैसला भी ले सकते हैं. हालांकि इन सबके बीच एक बार फिर से चाचा-भतीजा यानी की चिराग पासवान और पशुपति पारस आमने-सामने आ गए हैं. दोनों ही पार्टियों के द्वारा जमकर बयानबाजी देखने को मिल रही है. इस बीच चिराग पासवान के जीजा और जमुई से सांसद अरुण भारती ने पशुपति पारस को लेकर एक बड़ा खुलासा कर दिया है.
अरुण भारती ने पोस्ट कर किया खुलासा
अरुण भारती ने आज शुक्रवार 22 नवंबर को एक्स पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट लिखते हुए कहा कि, “चलिए आज मैं आपको एक अनकही वास्तविक कहानी सुनाता हूं. 2014 का साल भारतीय राजनीति में बड़े बदलावों का गवाह बना. लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के भीतर एक बड़ा फैसला लिया जाना था. भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल होना.”
अरुण भारती ने आगे कहा कि, “यह फैसला जितना राजनीतिक रूप से अहम था, उतना ही परिवार के भीतर विवादित भी. चिराग पासवान, युवा और दूरदर्शी नेता, इस गठबंधन को लेकर पूरी तरह अडिग थे. वे मानते थे कि एनडीए के साथ जाना न केवल एलजेपी के लिए, बल्कि बिहार और देश की राजनीति के लिए भी फायदेमंद होगा, लेकिन इस राह में चुनौतियां कम नहीं थीं. स्वर्गीय रामविलास पासवान जी, जिनका राजनीति में वर्षों का अनुभव था, इस फैसले को लेकर शुरू में आशंकित थे. वे समझते थे कि इस गठबंधन के राजनीतिक और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं.”
‘पशुपति कुमार पारस ने किया सबसे बड़ा विरोध’
पशुपति पारस को लेकर खुलासा करते हुए अरुण भारती ने अपने पोस्ट में लिखा, “हालांकि, सबसे बड़ा विरोध उनके छोटे भाई और पार्टी के वरिष्ठ नेता पशुपति कुमार पारस से आया. पारस इस विचार के पूरी तरह खिलाफ थे. उन्होंने इसे लेकर अपनी असहमति साफ जाहिर की और गठबंधन के खिलाफ अपनी बात रखी. इन सबके बीच चिराग पासवान ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपने तर्कों और दूरदर्शी सोच से न केवल अपने पिता को मनाया, बल्कि पार्टी के बाकी नेताओं को भी इस गठबंधन का समर्थन करने के लिए तैयार किया. उनके अडिग नेतृत्व ने पार्टी को एक नई दिशा दी.”
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‘चिराग पासवान की मेहनत रंग लाई’
अरुण भारती ने पोस्ट में लिखा कि, “आखिरकार, चिराग पासवान जी की मेहनत रंग लाई, और एलजेपी एनडीए का हिस्सा बनी. यह फैसला एलजेपी के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ, जिसने न केवल पार्टी को नई पहचान दी, बल्कि बिहार और राष्ट्रीय राजनीति में भी नई संभावनाओं के द्वार खोले. यह अनकही कहानी दिखाती है कि कैसे नेतृत्व, दूरदृष्टि और दृढ़ता के बल पर हर बाधा को पार किया जा सकता है.”
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