Asaduddin Owaisi News: बिहार में इसी साल नवंबर 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं, और राज्य में चुनावी सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं। इसी बीच मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर सियासी घमासान भी शुरू हो गया है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं और चुनाव आयोग को आड़े हाथों लिया है।

आयोग के बयान को बताया दुर्भाग्यपूर्ण

सोमवार, 14 जुलाई को ओवैसी ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक संवैधानिक संस्था (चुनाव आयोग) सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कह रही है और सारी बातें ‘सूत्रों’ के हवाले से सामने आ रही हैं। उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, “ये ‘सोर्सेस’ कौन हैं? चुनाव आयोग को किसने अधिकार दिया कि वह किसी की नागरिकता तय करे?”

ओवैसी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग “बैक डोर से एनआरसी” लागू करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने मांग की कि आयोग उन बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) के मोबाइल नंबर सार्वजनिक करे, जिनके जरिए तथाकथित विदेशी नागरिकों की जानकारी एकत्र की जा रही है। ओवैसी ने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता बीएलओ से मिलकर पूछेंगे कि नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के कौन से लोग यहां हैं, जिनकी बात की जा रही है।

2003 में कितने विदेशी नागरिक मिले?

ओवैसी ने यह भी कहा कि, साल 2003 में जब SIR हुआ था, तब कितने विदेशी नागरिक मिले थे? साथ ही 2019 में संसद में तत्कालीन कानून मंत्री ने खुद कहा था कि 2016, 2017 और 2019 में कोई भी विदेशी नागरिक नहीं मिला था। ओवैसी ने आरोप लगाया कि “सूत्रों” के जरिये गलत जानकारी फैलाई जा रही है और इससे संवैधानिक संस्थाओं की साख को नुकसान पहुंच रहा है।

बैक डोर से हो रहा NRC- ओवैसी

उन्होंने साफ कहा, “चुनाव आयोग के पास नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है। यह गृह मंत्रालय का काम है। अगर आयोग के पास अधिकार नहीं है, तो वह ऐसा क्यों कर रहा है? हमें डर है कि यह बैक डोर एनआरसी न बन जाए।” ओवैसी ने यह भी सवाल उठाया कि सीमांचल जैसे इलाकों के लोगों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें चुनाव से पहले शक्तिहीन करने की कोशिश क्यों हो रही है। बिहार में चुनाव से पहले ओवैसी का यह बयान राजनीतिक तापमान को और बढ़ा सकता है।

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